भारत कई दशकों से अपने तेल भंडार का पता लगाने में विफल रहा है, लेकिन अब एक तेल आयातक से निर्यातक बनने की राह तैयार की
जा रही है। बता रहे हैं अजय कुमार
यूरोपीय संघ और चीन के बाद भारत कच्चे तेल का दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा आयातक है। भारत के उपभोग में तेल आयात का हिस्सा वर्ष 2022-23 में बढ़कर 87.3 प्रतिशत हो गया, जो भारत के कुल आयात का 23.6 प्रतिशत है।
तेल एवं गैस आयात से न केवल विदेशी मुद्रा भंडार कम होता है बल्कि इससे रणनीतिक स्तर पर असुरक्षा की स्थिति बनती है और यह इराक युद्ध, ईरान पर लगाए गए प्रतिबंध और मौजूदा रूस-यूक्रेन संघर्ष जैसे भू-राजनीतिक संकट से भी जाहिर होता है। इस वजह से भारत को रूस के तेल के लिए चीनी युआन में भुगतान करने को कहा जा रहा है।
बड़े तेल भंडार पर नियंत्रण से किसी एक देश की स्थिति अन्य देशों के मुकाबले बेहतर हो सकती है विशेष रूप से उन देशों की जो तेल आयात पर बहुत अधिक निर्भर हैं। तेल भंडार से समृद्ध देश, उत्पादन की मात्रा, कीमतों में नियंत्रण करने के साथ ही इस तक पहुंच में प्रतिबंध लगाकर अन्य तेल आयातक देशों के मुकाबले फायदा उठा सकते हैं।
तेल के लिए भारत की अन्य देशों पर निर्भरता इसलिए है कि यहां सीमित स्तर पर तेल क्षेत्र की खोज की गई है। हालांकि भारत ने अपतटीय क्षेत्रों में तेल खोज के संदर्भ में अपेक्षाकृत अधिक सफलता देखी है, जैसे कि 1970 के दशक में बंबई हाई और बेसिन तेल क्षेत्रों की खोज की गई और बाद में 2000 के दशक में कृष्णा-गोदावरी बेसिन और खंभात की खाड़ी में तेल उत्पादन का पैमाना, हिंद महासागर के अन्य हिस्सों या सऊदी अरब, पश्चिम में कतर और ओमान और पूर्व में मलेशिया, इंडोनेशिया और वियतनाम जैसे देशों की तुलना में मामूली बना हुआ है।
वर्ष 2022 में, बांग्लादेश को बंगाल की खाड़ी में खरबों घन फुट गैस भंडार मिला और यह भंडार एक सदी तक की अपनी जरूरतें पूरी करने के लिए पर्याप्त था। केन्या और सोमालिया के तट से एक लाख वर्ग किलोमीटर के दायरे में एक विशाल तेल भंडार की खोज की गई थी।
भारत का करीब 23.6 लाख वर्ग किलोमीटर के विशाल क्षेत्र वाला विशेष आर्थिक क्षेत्र (ईईजेड), समान भू-स्तर साझा करता है और इसमें अब तक खोजे गए तेल भंडार की तुलना में बहुत अधिक भंडार मिलने की संभावना है।
कुछ असत्यापित रिपोर्ट के मुताबिक बंगाल की खाड़ी में 30 अरब टन तेल (बीटीओई), इराक के भंडार का 2.5 गुना और सऊदी अरब के लगभग बराबर है। अगर मोटे अनुमानों पर गौर करें तो इसके अनुसार, भारत के ईईजेड में अब तक नहीं खोजे गए तेल संसाधन 7.4 बीटीओई से अधिक है, जो 50 से अधिक वर्षों तक की जरूरतों को पूरा करने के लिए पर्याप्त है। हालांकि भारत इन तेल-गैस भंडारों का पता लगाने में अब तक विफल रहा है और उसने लगातार तेल आयात पर जोर दिया है जिससे गंभीर सवाल खड़े होते हैं।
तेल की खोज के संभावित क्षेत्रों के नजदीक जुड़े बड़े क्षेत्रों का आवंटन जरूरी हो जाता है। यह भूवैज्ञानिकों को भूवैज्ञानिक संरचनाओं को समझने, संभावित तेल जाल और उसके भंडार स्थल की पहचान करने में मददगार होता है।
इसके साथ ही यह भूकंपीय सर्वेक्षणों का उपयोग करके सतहों की अधिक सटीक तस्वीरें लेने और संभावित तेल भंडार की कनेक्टिविटी और सीमा को बेहतर ढंग से समझने में कारगर होता है। इसके अलावा महत्त्वपूर्ण बात यह भी है कि आर्थिक रूप से व्यावहारिक और तकनीकी रूप से बेहतर खोज के लिए ऐसे तेल भंडार क्षेत्र के आसपास एक बड़े क्षेत्र के आवंटन की आवश्यकता होती है।
हालांकि, यह भारतीय ईईजेड में संभव नहीं हो पाया है क्योंकि लगभग 42 प्रतिशत ईईजेड, यानी 10 लाख वर्ग किलोमीटर से अधिक क्षेत्र को विभिन्न सरकारी एजेंसियों द्वारा ‘नो गो जोन’ क्षेत्र घोषित किया गया है। यह ऐसा क्षेत्र है जहां किसी भी तरह की गतिविधि की अनुमति नहीं है।
नो-गो जोन किसी एक क्षेत्र तक ही सीमित नहीं हैं, बल्कि ये बिखरे हुए क्षेत्र हैं जो ईईजेड से जुड़े अधिकांश नजदीकी क्षेत्रों में बाधाकारी साबित होते हैं। हालांकि विभिन्न सुरक्षा कारणों से ऐसे क्षेत्रों की जरूरत थी जहां कोई गतिविधि न हो।
रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (DRDO) ने मिसाइल परीक्षण के लिए एक सुरक्षा क्षेत्र तय किया है, वहीं भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने भी उपग्रह प्रक्षेपण के मलबे के लिए सुरक्षित क्षेत्र तय किए हैं। इसके अलावा रक्षा तैयारी को ध्यान में रखते हुए नौसेना भी विशेष रूप से पानी के नीचे ऐसे क्षेत्र तैयार करता है। हालांकि ये कारण निर्विवाद रूप से महत्त्वपूर्ण रहे हैं लेकिन भारतीय अर्थव्यवस्था को इसकी एक बड़ी आर्थिक कीमत चुकानी पड़ी।
वर्ष 2022 के मध्य में हालात बदलने शुरू हुए। तकनीकी प्रगति और उन्नत रडार और सेंसर के चलते चीजों पर निगाह रखना पहले से बेहतर हुआ और भौगोलिक सूचना प्रणाली तथा उपग्रह नेविगेशन तंत्र ने सटीक स्थान की ट्रैकिंग करने के साथ ही सूचना साझेदारी का दायरा भी बढ़ाया। इसके साथ ही नई तकनीक ने जागरूकता में भी काफी सुधार किया। इसके चलते ही नो-गो जोन की आवश्यकता पर भी दोबारा विचार करने की प्रेरणा मिली।
इसके अलावा, यह तर्क दिया गया था कि मिसाइल परीक्षण और उपग्रह प्रक्षेपण असामान्य और योजनाबद्ध घटनाक्रम हैं जिससे तेल की खोज करने वाले जहाज भी तालमेल बिठा सकते हैं। पोत सुरक्षा के लिए नोटम/नवेरा प्रोटोकॉल का पालन करने और तेल खोजी पोतों तथा डीआरडीओ और इसरो के बीच समन्वय के लिए एक समझौते पर सहमति हुई।
इसके अलावा इस बात पर भी सहमति बनी कि किसी अप्रत्याशित दुर्घटना की स्थिति में सरकारी एजेंसियों को पर्याप्त बीमा कवर के जरिये क्षतिपूर्ति की भरपाई की जाएगी।
इस समीक्षा के परिणामस्वरूप, ईईजेड के 99 प्रतिशत हिस्से में खोजी गतिविधियों की अनुमति देने का फैसला किया गया। वर्ष 2015 में विभिन्न एजेंसियों और विभिन्न मंत्रालयों से संबंधित मुद्दों को हल करने के लिए एक सलाहकार तंत्र, सचिवों के क्षेत्रवार समूह का गठन किया गया था ताकि इन मुद्दों को उच्च अधिकारियों तक ले जाने की आवश्यकता नहीं पड़े। समूह ने बाकी मामले से निपटने के लिए रक्षा सचिव की अध्यक्षता में एक समिति भी बनाई।
समझौते के बाद पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्रालय (एमओपी ऐंड एनजी) ने एक नया नक्शा पेश किया जो तेल की खोज के लिए भारतीय ईईजेड को मुक्त करता है। नया नक्शा, भारत की आजादी के 75 साल पूरे होने के उपलक्ष्य में 15 अगस्त, 2022 को पेश किया गया था। तब से काफी तेजी से प्रगति हुई है।
सितंबर 2022 में पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्रालय ने एक परिचालन मसौदा जारी किया। जून 2023 तक उसने भारतीय ईईजेड का पहला व्यापक भूकंपीय सर्वेक्षण पूरा किया। पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्रालय ने बड़े अपतटीय तेल ब्लॉकों का पता लगाने के वास्ते कंपनियों को आकर्षित करने के लिए बोली लगाने की प्रक्रिया शुरू की जो अब तक की सबसे बड़ी बोली प्रक्रिया है।
वर्ष 2025 तक 5 लाख वर्ग किलोमीटर को कवर करने का लक्ष्य है। पहली बोली से पहले की बैठक, जुलाई 2023 में टेक्सस के ह्यूस्टन में आयोजित की गई थी।
भारत विशेषतौर पर अपनी हरित नवीकरणीय ऊर्जा की योजनाओं के जरिये खपत से अधिक तेल एवं गैस का उत्पादन करने की कोशिश में है। अगर 2050 तक शुद्ध शून्य उत्सर्जन का वैश्विक लक्ष्य पूरा नहीं होता है तब अगले 30 से 50 वर्षों में जैव ईंधन की मांग में अच्छी-खासी कमी देखी जा सकती है।
ऐसे में भारत अपने भंडार का लाभ उठाते हुए तेल एवं गैस का निर्यात कर सकता है। यह इस खेल में बदलाव का एक अहम कारक होगा। भारत कई दशकों से अपने तेल भंडार का पता लगाने में विफल रहा।
ऐसे में अवसर गंवाने पर अफसोस जताने का कोई मतलब नहीं है। अमृत काल का यह शुरुआती दौर भारत के लिए तेल सुरक्षा और नए रणनीतिक विकल्पों की उम्मीद देता है।
(लेखक पूर्व रक्षा सचिव और आईआईटी कानपुर में विजिटिंग प्रोफेसर हैं)