भारत में ऑनलाइन दवा कंपनियों से जुड़े व्यापक कानून के अभाव में इस क्षेत्र की कंपनियां कुछ समय से देश में जांच के दायरे में हैं। भारत के औषधि महानियंत्रक (डीसीजीआई) वी जी सोमानी ने 8 फरवरी को ऑनलाइन दवा बेचने वाली कंपनियों से यह बताने को कहा था कि कानून का उल्लंघन कर, बिक्री और वितरण करने के लिए उनके खिलाफ कार्रवाई क्यों नहीं की जानी चाहिए।
दिसंबर 2018 के दिल्ली उच्च न्यायालय के आदेश का हवाला देते हुए मई और नवंबर 2019 में डीसीजीआई ने राज्य दवा नियंत्रकों को कार्रवाई और अनुपालन के लिए नोटिस भेजे जिसकी वजह से ई-फार्मेसी से जुड़ी कंपनियों पर बिना लाइसेंस के दवाएं बेचने पर रोक लगा दी गई थी। इन नोटिसों की वजह से दवा उद्योग में भ्रम की स्थिति बनी क्योंकि जनवरी 2019 में मद्रास उच्च न्यायालय के एक खंडपीठ ने एक न्यायाधीश द्वारा पहले दिए गए इस आदेश पर रोक लगा दी कि ऑनलाइन दवाओं की बिक्री पर प्रतिबंध लगाया जाए।
उद्योग के एक सूत्र ने कहा, ‘दवा, चिकित्सा उपकरण और प्रसाधन सामग्री विधेयक, 2022 के मसौदे में केंद्र ने ई-फार्मेसियों पर नियमन करने के प्रावधान किए हैं। इसलिए इस बात की संभावना है कि ऑनलाइन चैनल के माध्यम से दवाओं की बिक्री को शामिल करने के लिए कानून में संशोधन किए जा सकते हैं।’
इत्तफाक से 8 फरवरी को ऑल इंडिया ऑर्गनाइजेशन ऑफ केमिस्ट्स ऐंड ड्रगिस्ट्स (एआईओसीडी) ने इसी मुद्दे पर केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री मनसुख मांडविया से भी मुलाकात की थी। ऑफलाइन दवा विक्रेताओं का यह संगठन पिछले कुछ समय से ई-फार्मेसियों के खिलाफ सरकार से लॉबिइंग कर रहा है। एआईओसीडी के अध्यक्ष जे एस शिंदे ने कहा, ‘ई-फार्मेसियों द्वारा ग्राहकों को लुभाने के लिए सस्ती दरों पर मूल्य निर्धारण और ‘अवैध गतिविधियों’ की वजह से करीब 12 लाख खुदरा दवा विक्रेताओं की आजीविका प्रभावित हुई।’
उन्होंने कहा कि मरीजों को दवाओं की सीधी अंतरराज्यीय आपूर्ति की वजह से राज्य के खाद्य और औषधि प्रशासन (एफडीए) के लिए इस पर निगाह रखना मुश्किल हो गया है। ऑनलाइन दवा क्षेत्र में टाटा 1एमजी, रिलायंस समर्थित नेटमेड्स, एमेजॉन और फ्लिपकार्ट जैसी बड़ी कंपनियों की दिलचस्पी देखी गई है हालांकि मुख्य रूप से व्यापक कानूनी ढांचे के अभाव में बनी अस्पष्टता की स्थिति के चलते इस पर एतराज बढ़ रहा है।
निशीथ देसाई एसोसिएट्स में फार्मा और लाइफ साइंसेज प्रैक्टिस के लीडर डैरेन पुन्नेन ने बताया, ‘दवा एवं प्रसाधन सामग्री अधिनियम, 1940 औपचारिक रूप से ऑनलाइन दवा कंपनियों की अवधारणा को ही मान्यता नहीं देता है। हालांकि, स्वास्थ्य मंत्रालय ने मार्च 2020 में एक अधिसूचना के माध्यम से ई-मेल और अन्य माध्यम से मिले प्रिस्क्रिप्शन के आधार पर दवाओं की डिलिवरी लोगों के घरों में करने की अनुमति दी थी।’
उन्होंने कहा कि इन जरूरतों को देखते हुए हमने यह देखा है कि जिस तरह से ई-दवा कंपनियां वर्तमान में काम करती हैं, उसमें लाइसेंस प्राप्त खुदरा फार्मेसी से दवा के ऑर्डर का वितरण करना और लोगों के घरों तक दवाओं की डिलिवरी की अधिसूचना का अनुपालन सुनिश्चित करना शामिल है जिसमें दवा कंपनियों के राजस्व वाले जिले के भीतर वितरण और मादक पदार्थों का वितरण नहीं करना शामिल है।
अब सवाल यह है कि ऑफलाइन खुदरा दवा विक्रेता इन ऑनलाइन खिलाड़ियों के खिलाफ क्यों खड़े हैं? आंकड़े इस बात की तस्दीक करती है। वर्तमान में देश के 1.7 लाख करोड़ रुपये के भारतीय फार्मा बाजार (आईपीएम) में ई-फार्मेसियों की 3 प्रतिशत हिस्सेदारी है और वे तेजी से बढ़ रहे हैं। इस उद्योग में पारंपरिक असंगठित खुदरा फार्मेसी स्टोरों की 89 प्रतिशत हिस्सेदारी है और संगठित फार्मेसी खुदरा श्रृंखला में 8 प्रतिशत हिस्सेदारी है।
मार्च 2022 की सिस्टमैटिक्स इंस्टीट्यूशनल इक्विटी रिपोर्ट के अनुसार, वित्त वर्ष 2015-21 में ऑनलाइन दवा कंपनियों की कमाई में 96 प्रतिशत की सालाना चक्रवृद्धि दर (सीएजीआर) थी जबकि इसकी तुलना में, पारंपरिक दवा विक्रेता कंपनियों में 8 प्रतिशत की सीएजीआर और संगठित खुदरा श्रृंखलाओं के लिए यह दर 18 प्रतिशत थी।
अगर यह मान लिया जाए कि आईपीएम वृद्धि दर 8-9 प्रतिशत है और वित्त वर्ष 2021-25 में ई-फार्मेसी खंड में 25 प्रतिशत सीएजीआर दर्ज किया गया है, तब ई-फार्मेसी खंड की बाजार हिस्सेदारी दोगुनी होकर 6 प्रतिशत और राजस्व के लिहाज से इनका आंकड़ा 13,800 करोड़ रुपये तक पहुंच जाएगा। लेकिन इस क्षेत्र में अनिश्चितताएं हैं, जिसके चलते पूंजी प्रवाह की रफ्तार धीमी हो सकती है और इसमें निवेशकों की दिलचस्पी कम हो सकती है।
इक्विरस के प्रबंध निदेशक (उपभोक्ता एवं स्वास्थ्य सेवा बैंकिंग) भावेश शाह ने बिज़नेस स्टैंडर्ड को बताया कि नियामकीय चिंताओं के अलावा
निवेशक ई-फार्मेसियों के बुनियादी कारोबार मॉडल और भविष्य में मुनाफा कमाने की क्षमता को लेकर भी चिंतित हैं।
शाह ने कहा, ‘ई-फार्मेसियों को छूट, मुफ्त या कम लागत वाले वितरण मॉडल के बलबूते ही आगे बढ़ने में सफलता मिली है जिनमें से सभी का मतलब भारी खर्च है जो लाभ कमाने की उनकी क्षमता को प्रभावित करता है। उन्हें कारोबारी मॉडल को फिर से तैयार करने और निवेशकों की दिलचस्पी फिर से बढ़ाने के लिए नियामकीय चिंताओं को दूर करने की जरूरत होगी।’
लेकिन यह सब परिचालन से जुड़े कानूनी ढांचे की कमी के कारण होता है। निशीथ देसाई एसोसिएट्स के फार्मा और लाइफ साइंसेज प्रैक्टिस के लीड मिलिंद अंतानी ने कहा, ‘ऑनलाइन दवा कंपनियों के लिए लाइसेंस से जुड़ा कोई प्रारूप न होने से प्रवर्तन एजेंसियों के पास इसको फिर से स्पष्ट करने के लिए गुंजाइश बची है। अधिकांश स्थापित ई-फार्मेसियों द्वारा दवाओं की बिक्री लाइसेंस प्राप्त खुदरा फार्मेसियों के माध्यम से होती है, ऐसे में कार्रवाई उन संस्थाओं के लिए होनी चाहिए जो परिसर से दवाएं वितरित कर रही हैं और जिनके पास खुदरा लाइसेंस नहीं है।’
एक फार्मेसी कंपनी के संस्थापक ने नाम न छापने की शर्त पर कहा कि चूंकि उसके पास ऑफलाइन रिटेल स्टोर हैं, इसलिए इसका मॉडल अब तक जांच के दायरे में नहीं आया है। उन्होंने कहा, ‘हम अपनी दुकानों से मरीजों को सेवाएं दे रहे हैं जबकि ऑनलाइन ऑर्डर पाया जा सकता है. अधिकांश ऑनलाइन कंपनियों के पास ऑफलाइन स्टोर का एक बड़ा नेटवर्क नहीं है और यही वह जगह है जहां उनके लिए कानूनी बाधा शुरू होती है।’
इस क्षेत्र पर नजर रखने वाले मुंबई के एक विश्लेषक ने कहा कि बड़ी कंपनियां इसे छोड़ने की घोषणा नहीं करने जा रही हैं। उन्होंने कहा, ‘कंपनियों के साथ हमारी चर्चा हुई है और उनमें से ज्यादातर इस बात को लेकर आश्वस्त हैं कि नियम जल्द ही लागू हो जाएंगे। डेटा गोपनीयता और यहां तक कि इस क्षेत्र में आने वाले चीन के प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) के बारे में कुछ चिंताएं हैं; लेकिन चीजों को जल्द से जल्द सुलझा लिए जाने की संभावना है। ऑनलाइन क्षेत्र में प्रिस्क्रिप्शन जांच का क्या आधार है इस पर विश्लेषक का कहना है, ‘निश्चित रूप से इसमे्ं वृद्धि होने जा रही है।’ पुन्नेन ने कहा, ‘डेटा गोपनीयता सरकार की चिंता का विषय है, खासतौर पर यह देखते हुए कि ई-फार्मेसी नियमों के मसौदे में ऐसी संस्थाओं द्वारा रखे गए डेटा के स्थानीयकरण से संबंधित विशिष्ट प्रावधान शामिल हैं।’
अंतानी ने इस तथ्य पर जोर दिया कि अमेरिका जैसे अन्य न्यायधिकार क्षेत्रों और भारत में भी यही प्राथमिक चिंता है कि इंटरनेट के माध्यम से नकली और घटिया उत्पादों की बिक्री होती है । ऐसे में मरीजों की सुरक्षा के दृष्टिकोण से उपाय (नियामक के लिहाज से भी) किए गए हैं कि दवाएं लाइसेंस प्राप्त दवा दुकानों से वितरित की जाती हैं और उसके लिए एक वैध प्रिस्क्रिप्शन होना जरूरी है और साथ ही इसका वितरण पंजीकृत दवा विक्रेता की देखरेख में होना चाहिए।’
भारत में इस दिशा में विनियमन बढ़ने की संभावना है। पूर्व आईएएस अरुणा शर्मा, सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों के लिए एक गैर-लाभकारी पहल, फोरम फॉर इंटरनेट रिटेलर्स, सेलर्स एंड ट्रेडर्स की महासचिव हैं। उन्होंने 22 फरवरी को डीसीजीआई को लिखा कि उनके कई सदस्यों को महामारी के समय के दौरान स्पष्ट आदेशों से बेहद फायदा हुआ जिसने ई-कॉमर्स के माध्यम से दवाओं को ऑनलाइन बेचने की अनुमति दी।
इसमें कहा गया है, ‘इसने ऑफलाइन दवा विक्रेताओं के कारोबार के लिए एक बड़ा आधार तैयार किया है क्योंकि वे उन ग्राहकों के एक बड़े समूह को लक्षित कर सकते हैं जिनके पास वैध प्रिस्क्रिप्शन है।’ शर्मा ने कहा कि महामारी के दौरान फार्मासिस्टों को टाटा 1 एमजी, फ्लिपकार्ट, नेटमेड्स आदि की बेहतर तकनीकों से लाभ हुआ।’