देश में राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम (एनकैप) जैसे अहम कार्यक्रम के पांच साल पूरे हो गए हैं। इसे 10 जनवरी, 2019 को सबसे प्रदूषित शहरों में वायु गुणवत्ता में सुधार के मकसद से शुरू किया गया था।
मगर ताजा आंकड़े बताते हैं कि पांच वर्षों में वायु में दूषित कणों यानी पार्टिकुलेट मैटर (पीएम) वाले 49 शहरों में से महज 27 शहरों में ही पीएम 2.5 के स्तर में सुधार हुआ है।
2.5 माइक्रोमीटर या उससे भी छोटे कण वायु प्रदूषण का आकलन करने के लिहाज से महत्त्वपूर्ण हैं क्योंकि वे हवा में व्यापक रूप से मौजूद होते हैं और उन पर शरीर की प्राकृतिक प्रतिरोधी सुरक्षा के स्तर का भी कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। ये छोटे कण फेफड़ों में प्रवेश कर सकते हैं, जिससे अस्थमा, हृदयाघात और फेफड़ों के कैंसर जैसी कई स्वास्थ्य समस्याएं हो सकती हैं।
पीएम 2.5 और पीएम 10 को मापने से वायु प्रदूषण के स्रोतों की पहचान के साथ उसे समझने में मदद मिलती है। सरकार ने 131 शहरों में वायु के इन घातक कणों के स्तर को वर्ष 2017 के स्तर से वर्ष 2026 तक 40 फीसदी कम करने के लिए 9,631 करोड़ रुपये का आवंटन किया है।