भारत से बाहर जाने वाला प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) अक्टूबर 2023 में 12.14 प्रतिशत गिरकर 1.88 अरब डॉलर रह गया, जबकि सितंबर में यह 2.14 अरब डॉलर से अधिक था। इससे विश्व की आर्थिक वृद्धि में सुस्ती का पता चलता है। भारतीय रिजर्व बैंक के आंकड़ों से यह भी पता चलता है कि अक्टूबर 2022 में यह 2.66 अरब डॉलर से अधिक था।
बाहर जाने वाले प्रत्यक्ष विदेशी निवेश में वित्तीय प्रतिबद्धताएं शामिल होती हैं, जिसके 3 घटक इक्विटी, ऋण और गारंटी हैं। खासकर विकसित देशों में आर्थिक और कारोबारी गतिविधियों में सुस्ती के कारण बाहरी और आंतरिक दोनों प्रत्यक्ष निवेश पर असर पड़ा है।
इस तरह के एफडीआई में ज्यादातर निवेश सहायक इकाइयों या विदेशी कंपनियों में हिस्सेदारी लेने में हुआ है। बैंकरों के मुताबिक विकसित देशों में सुस्ती से अवसर कम होते हैं।
विदेश में एफडीआई के आंकड़ों की तरह आंतरिक एफडीआई यानी विदेश से भारत आने वाले धन की आवक भी सुस्त रही है। रिजर्व बैंक के आंकड़ों के अनुसार भारत में शुद्ध एफडीआई तेजी से घटकर अप्रैल-अगस्त 2023-24 (वित्त वर्ष 24) में 2.99 अरब डॉलर रह गया है, जो अप्रैल-अगस्त 2022-23 (वित्त वर्ष 23) के 18.03 अरब डॉलर की तुलना में कम है। इससे वैश्विक निवेश गतिविधियों में सुस्ती का पता चलता है।
अगर विदेश के एफडीआई घटकों पर नजर डालें तो इक्विटी प्रतिबद्धता अक्टूबर 2023 में बढ़कर 86.528 करोड़ डॉलर हो गई है, जो सितंबर 2023 के 48.508 करोड़ डॉलर से कम है, लेकिन यह अक्टूबर 2022 के 1.42 अरब डॉलर की तुलना में उल्लेखनीय रूप से कम है।
अक्टूबर में ऋण प्रतिबद्धताएं घटकर 25.581 करोड़ डॉलर रह गईं, जो सितंबर के 51.029 करोड़ डॉलर की तुलना में कम है। साथ ही यह अक्टूबर 2022 के 51.556 करोड़ डॉलर की तुलना में भी कम है।
विदेशी इकाइयों के लिए गारंटी घटकर अक्टूबर में 77.419 करोड़ डॉलर रह गई, जो सितंबर में 1.14 अरब डॉलर थी। बहरहाल रिजर्व बैंक के आंकड़ों से पता चलता है कि यह एक साल पहले के 72.143 करोड़ डॉलर की तुलना में कम है।