भारतीय सिनेमा के कारोबार ने शानदार तरीके से वापसी की है। तीन वर्षों के निराशाजनक दौर के बाद सिनेमाघरों की कमाई उच्चतम स्तर पर है। वर्ष 2019 (पिछले सामान्य वर्ष) में फिल्मों के बलबूते थियेटरों की कुल कमाई 11,500 करोड़ रुपये थी, जो वर्ष 2023 में 13,000 करोड़ रुपये के स्तर को पार करने के लिए तैयार है।
ऑरमैक्स मीडिया के आंकड़ों के अनुसार इस साल अक्टूबर तक यह कमाई 10,000 करोड़ रुपये से थोड़ी ही कम थी और इसमें ‘सैम बहादुर’, ‘12 वीं फेल’ और ‘एनिमल’ जैसी हाल में सफल फिल्मों की कमाई के आंकड़े नहीं हैं।
इस महीने कुछ और बड़ी फिल्में रिलीज होने वाली हैं। इनमें प्रभाष अभिनीत फिल्म ‘सालार’ और शाहरुख खान अभिनीत फिल्म ‘डंकी’ है, जो इस साल ‘पठान’ और ‘जवान’ की तरह ही जलवा दिखाने के लिए तैयार है। अगर इसमें, स्ट्रीमिंग, सैटेलाइट टीवी अधिकार, म्यूजिक के साथ-साथ विदेश में फिल्म रिलीज करने के अधिकार के जरिये होने वाली कमाई को शामिल करें, तो कारोबार के आंकड़े आसानी से 21,000 करोड़ रुपये के स्तर को पार कर जाना चाहिए। यह वर्ष 2023 में भारत के 2.1 लाख करोड़ रुपये के मीडिया एवं मनोरंजन उद्योग से मिलने वाली सबसे बेहतरीन खबर है।
सिनेमा एक गंगोत्री के रूप में कार्य करता है, जो वास्तव में कारोबार का मूल है। टीवी का लगभग एक-चौथाई और ओटीटी का अधिकांश हिस्सा फिल्मों से जुड़ा है। करीब 70 प्रतिशत से अधिक म्यूजिक अधिकार की बिक्री, फिल्म संगीत से जुड़ी होती है। सिनेमा के दम पर विज्ञापन, शॉर्ट वीडियो और सोशल मीडिया तंत्र भी फलता-फूलता है। इसमें किसी भी तरह के सुधार का प्रभाव इस कारोबार से जुड़े सभी क्षेत्रों पर पड़ता है।
मीडिया एवं मनोरंजन कारोबार में फिल्म उद्योग की सेहत में सुधार एकमात्र अच्छी खबर है। इससे इतर यहां से चीजें निराशाजनक दौर से और भी बेहद खराब स्तर पर जा रही हैं।
डिजिटल मीडिया के उदाहरण को ही लें जो अब तक तेज वृद्धि वाला क्षेत्र रहा और कॉमस्कोर के मुताबिक वर्ष 2018 के एक महीने में इसके 27.3 करोड़ उपयोगकर्ताओं की तुलना में फिलहाल उपयोगकर्ताओं की तादाद 51 करोड़ है। हालांकि इसे अब कई मोर्चे पर मात खानी पड़ रही है।
अब सबसे बड़ी चुनौती इंटरनेट के इस्तेमाल की वृद्धि में दिख रही कमी है। भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण (ट्राई) के आंकड़ों के अनुसार, वर्ष 2016 से 2020 तक इंटरनेट की दो अंकों की वृद्धि दर वर्ष 2021 और 2022 में घटकर लगभग 4 प्रतिशत रह गई। वर्ष 2023 की पहली तिमाही में यह वर्ष 2022 की अंतिम तिमाही की तुलना में सिर्फ 1.7 प्रतिशत बढ़ी।
इसकी बड़ी वजह शुरुआती और मध्यम स्तर के स्मार्टफोन की बिक्री में आई कमी है। लाखों भारतीयों के लिए स्मार्टफोन, इंटरनेट से जुड़ने का पहला माध्यम होता है। ऐसे स्मार्टफोन बैंडविड्थ की प्रोसेसिंग करता है, जिससे आपको एक फिल्म देखने, संगीत सुनने या ऑनलाइन मीटिंग करने की सहूलियत मिल सकती है। इससे सोशल मीडिया, स्ट्रीमिंग और ऑनलाइन पब्लिशिंग की रफ्तार बढ़ी है।
हालांकि, इंटरनैशनल डेटा कॉरपोरेशन का कहना है कि वर्ष 2021 की तुलना में 2022 में स्मार्टफोन की बिक्री में 10 प्रतिशत की बड़ी गिरावट देखी गई है। इस साल, यह कमी एक अंक में सिमट गई है। भारत अब स्मार्टफोन की बिक्री के लिहाज से कमोबेश 2019 के स्तर पर वापस आ गया है। इसी वजह से पिछले साल दिसंबर से ही नियमित इंटरनेट उपयोगकर्ताओं की संख्या 51 करोड़ पर अटकी हुई है।
वहीं 65 करोड़ भारतीयों में करीब 78 प्रतिशत के पास स्मार्टफोन है। अगर यह शत-प्रतिशत स्मार्टफोन उपयोगकर्ता भी होते तब भी इसका मतलब होगा कि इंटरनेट केवल आधी भारतीय आबादी के लिए उपलब्ध है। आप यह तर्क दे सकते हैं कि भारत के 1.41 अरब नागरिकों में से हर कोई इंटरनेट उपयोगकर्ता नहीं हो सकता है।
यदि आप 14 वर्ष से कम उम्र वाले 35.2 करोड़ लोगों की गणना नहीं भी करते हैं तब भी बिना स्मार्टफोन और बिना इंटरनेट वाले लोगों की तादाद 40.8 करोड़ होगी। यह शिक्षा, मीडिया, ऑनलाइन खुदरा और अन्य सेवाओं के दायरे से बाहर एक बड़ा बाजार है।
इस साल की शुरुआत तक मौजूदा उपयोगकर्ताओं द्वारा इंटरनेट पर बिताए गए समय में बढ़ोतरी होती रही, जिससे कमाई में वृद्धि हुई। अब, मौजूदा उपयोगकर्ताओं द्वारा बिताए गए समय में स्थिरता है तब वृद्धि नए उपयोगकर्ताओं की तरफ से दिखनी चाहिए। हालांकि इंटरनेट पर आने वाले नए उपयोगकर्ताओं की तादाद बेहद कम है।
दूसरी बात यह है कि डिजिटल मीडिया राजस्व को प्रभावित करने में डीडी फ्रीडिश, यूट्यूब, जियोसिनेमा आदि की मुफ्त वीडियो की बढ़ती खपत है। मीडिया पार्टनर्स एशिया का अनुमान है कि स्ट्रीमिंग वीडियो सेवाओं के ग्राहक वर्ष 2022 के 11.2 करोड़ से कम होकर करीब 8 करोड़ गए।
तीसरा कारक, शुल्क नियंत्रण और सेंसरशिप से जुड़ी आशंकाएं हैं। यह तब संभव है जब स्ट्रीमिंग को प्रसारण सेवा (विनियमन) विधेयक, 2023 के तहत लाया जाएगा जो फिलहाल मसौदा तैयार करने और परामर्श के चरण में है। वर्ष 2004 में ही टेलीविजन पर मूल्य विनियमन लागू होने के बाद से प्रोग्रामिंग से जुड़े सभी जोखिम लेने की क्षमता और नए प्रयोग खत्म हो गए।
एक ऐसा कारोबार जो पहले से ही विज्ञापन से होने वाली कमाई पर निर्भर था, उसमें विकल्प और विविधता खत्म हो गई, क्योंकि इसने ज्यादा दर्शक जोड़ने और अधिक विज्ञापनदाताओं को लुभाने की कोशिश की। टीवी एक तरह से पूरे परिवार के मनोरंजन का साधन है, जबकि स्ट्रीमिंग निजी मनोरंजन की चीज है। यदि इसमें सामग्री से जुड़ा एक ही तरह का दिशानिर्देश लाया जाएगा और कीमतों पर नियंत्रण किया जाएगा तब रचनात्मकता खत्म हो जाएगी।
एक दुखद खबर टेलीविजन के क्षेत्र से मिल रही है, जहां केबल और डीटीएच दोनों में लगातार गिरावट देखी जा रही है। पिछले चार वर्षों में भुगतान वाली टीवी सेवाओं के दर्शकों की तादाद 76.8 करोड़ से कम होकर अब केवल 48 करोड़ रह गई है। हालांकि टीवी देखने वाले दर्शकों की तादाद कम नहीं हुई है। अहम बात यह है कि वे इसे डीटीएच या केबल कनेक्शन के माध्यम से नहीं देख रहे हैं।
भारतीय बाजार ऐतिहासिक रूप से बंटा-बंटा सा रहा है, लेकिन जैसे-जैसे तकनीकी-मीडिया कंपनियां हावी होने लगती हैं तब उनके एकीकरण का खतरा मंडराने लगता है। यदि रिलायंस (वायकॉम 18, जियो, टीवी 18) और डिज्नी सहयोगी कंपनियां हैं और सोनी-ज़ी करार पूरा हो जाता है तब खबरों, मनोरंजन और खेल से जुड़े भारतीय मीडिया बाजार में चार दिग्गज कंपनियों का वर्चस्व होगा, मसलन गूगल (25,000 करोड़ रुपये की कमाई), मेटा ( 18,000 करोड़ रुपये की कमाई), रिलायंस-डिज़्नी (23,000 करोड़ रुपये की कमाई) और सोनी-ज़ी ( 15,000 करोड़ की कमाई)।
शीर्ष 10 मीडिया कंपनियों की सूची में हर दूसरी कंपनी इनके आकार के एक-चौथाई से भी कम है। भारत में मीडिया कंपनियों के एक बड़े हिस्से का दायरा 100 करोड़ रुपये से 1,000 करोड़ रुपये की सीमा के दायरे में है। इस तरह की परिस्थितियां स्वतंत्र मीडिया और रचनात्मक स्वतंत्रता को किस मुकाम पर ले जाकर छोड़ेंगी, यह एक बड़ा सवाल है।