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महंगाई की चिंता कायम

Last Updated- May 12, 2023 | 10:03 AM IST
SBI research report

भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर, 12वें वित्त आयोग के चेयरमैन और प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद के प्रमुख के रूप में सी रंगराजन ने अर्थव्यवस्था को दिशा देने में अहम भूमिका निभाई है। आर्थिक मसलों पर सक्रिय रंगराजन ने इंदिवजल धस्माना के साथ बातचीत में कहा कि उच्च महंगाई (inflation) दर का मसला अभी खत्म नहीं हुआ है और अभी भी इसके लिए कुछ कार्रवाई की जरूरत पड़ सकती है। उन्होंने जीएसटी सुधार, गरीबी के अनुमान, मॉनसून और अर्थव्यवस्था सहित कई मसलों पर बात की। प्रमुख अंश…

आर्थिक वृद्धि दर को लेकर आपका क्या अनुमान है?

कम अवधि के अनुमान को लेकर हमेशा कठिनाई आती है। इस समय वृद्धि अनुमान रिजर्व बैंक के 6.5 प्रतिशत से लेकर आईएमएफ के 5.9 प्रतिशत की सीमा में है। मेरा अपना अनुमान है कि वृद्धि दर 6 प्रतिशत के आसपास रहेगी। अगर अलनीनो के कारण मॉनसून सामान्य से कम रहता है तो वृद्धि दर 6 प्रतिशत से नीचे रहेगी। रूस-यूक्रेन युद्ध को लेकर भी अनिश्चितता है। अगर स्थिति खराब होती है तो विकसित अर्थव्यवस्थाओं पर असर होगा और इसका असर विकासशील देशों पर भी पड़ेगा। अगर अंतरराष्ट्रीय स्थिति में सुधार होता है तो वृद्धि दर 6.5 प्रतिशत पहुंचने की संभावना बनती है। घरेलू स्तर पर वृद्धि निजी निवेश पर निर्भर है।

मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) की आगे की नीतिगत कार्रवाई को लेकर आपकी क्या राय है?

मौद्रिक अधिकारियों ने अस्थायी विराम लिया है। खुदरा महंगाई दर 6 प्रतिशत की ऊपरी सीमा से नीचे आई है। लेकिन यह अभी भी 4 प्रतिशत लक्ष्य के ऊपर है। इसलिए महंगाई पर काबू पाने का लक्ष्य अभी खत्म नहीं हुआ है। यह तर्क करना गलत है कि भारत में महंगाई (Inflation) आपूर्ति में व्यवधान या झटकों की वजह से है। महंगाई दर की बड़ी वजह नकदी या धन है। कोविड के दौरान सभी देशों ने राजकोषीय नीति को प्रसार दिया और राजकोषीय घाटा बढ़ा, नकदी का प्रसार हुआ। मौद्रिक प्राधिकारियों को नकदी बढ़ने की स्थिति पर नजर रखने की जरूरत है।

राजस्थान, हिमाचल प्रदेश, छत्तीसगढ़ और झारखंड जसे राज्यों ने पुरानी पेंशन व्यवस्था अपनाने का फैसला किया है, केंद्र सरकार ने भी नई पेंशन व्यवस्था में सुधार के लिए समिति बनाई है। सरकार को इस मसले में क्या करना चाहिए?

पेंशन व्यवस्था पर कार्रवाई व्यय को लेकर सरकार की प्राथमिकताओं पर बहुत ज्यादा निर्भर है। सातवें वेतन आयोग ने सरकारी कर्मचारियों के पेंशन लाभों और देयताओं में उल्लेखनीय बढ़ोतरी की सिफारिश की है। उन्हें स्वीकार कर लिया गया। डीए से जुड़ी गारंटीयुक्त पेंशन व्यवस्था बड़ा बोझ है। नई पेंशन व्यवस्था में सेवानिवृत्त सरकारी कर्मचारियों को बचत और अंशदान पर मिलने वाले रिटर्न के आधार पर पेंशन दिया जाता है। कर्मचारियों को पेंशन देने का यह उचित तरीका है। प्रतिष्ठानों पर किया जा रहा व्यय सरकारी व्यय का बड़ा हिस्सा है। इसे देखते हुए नई पेंशन व्यवस्था बनाई गई। अगर कोई पुरानी पेंशन योजना पर जाना चाहता है, पेंशन तय करने का फॉर्मूला वही नहीं रह सकता। सरकार के विभिन्न दायित्वों को देखते हुए इसमें बदलाव करना होगा।

अगर मॉनसून सामान्य नहीं रहता है तो अर्थव्यवस्था पर क्या असर पड़ेगा?

अलनीनो का असर हमेशा चिंता का विषय होता है। अगर इस साल अलनीनो का विपरीत असर पड़ता है तो स्वाभाविक रूप से आय का अनुमान प्रभावित होगा और बजट के आंकड़ों पर इसका असर होगा। कई साल से लगातार कृषि की स्थिति बेहतर है। भले ही सकल मूल्यवर्धन (जीवीए) में कृषि की हिस्सेदारी 15 प्रतिशत से कम है, लेकिन अगर कृषि क्षेत्र का प्रदर्शन खराब रहता है तो इससे न सिर्फ खाद्यान्न का उत्पादन प्रभावित होगा बल्कि औद्योगिक वस्तुओं की ग्रामीण खपत घटेगी।

विश्व व्यापार संगठन ने वस्तुओं का कारोबार 2023 में 1.7 प्रतिशत रहने का अनुमान लगाया है, जो 2022 में 2.7 प्रतिशत था। हमारे वाणिज्यिक निर्यात पर इसका क्या असर होगा?

2022-23 में 6 महीनों में वाणिज्यिक निर्यात में नकारात्मक वृद्दि रही है। 2023-24 में भारत का निर्यात विकसित देशों की वृद्धि के प्रदर्शन पर निर्भर होगा, जिसमें सुधार की उम्मीद नहीं है। वैश्विक वृद्धि की दर घटने का अनुमान है। अगर वैश्विक व्यापार की मात्रा गिरने का अनुमान है तो हमारे निर्यात की वृद्धि भी घट सकती है, जब तक कि वैश्विक निर्यात में हम अपनी हिस्सेदारी नहीं बढ़ाते। वाणिज्यिक आयात में कम वृद्धि, सेवा का निर्यात बढ़ने और रेमिटेंस के कारण भारत के चालू खाते के घाटे की स्थिति बेहतर है। यही स्थिति 2023-24 में भी रह सकती है।

राजनीति का एक धड़ा जीएसटी में सुधार और कर की एक न्यूनतम दर की बात करता है। इस तरह के जीएसटी के बारे में आपका क्या विचार है?

कर के रूप में जीएसटी के तमाम लाभ हैं और यही वजह है कि सभी देशों में इसे स्वीकार करने की सिफारिश की गई है। लेकिन भारत में जीएसटी लागू किए जाने की राह में कई मोड़ रहे हैं। हमारे यहां कई दरें हैं। एक दावा जीएसटी की सरलता को लेकर भी है। इसमें सभी जिंसों के लिए एक दर भी आता है। इसमें जिंसों को अलग परिभाषित करने की जरूरत नहीं मानी जाती। लेकिन इस विचार की स्वीकार्यता आसान नहीं है। हम कोई नई व्यवस्था नहीं दे रहे हैं। जिंसों पर कर लगाने का हमारा लंबा इतिहास रहा है। इस बात को लेकर हमेशा विवाद रहा है कि आवश्यक वस्तुओं और विलासिता की वस्तुओं पर एक समान कर होना चाहिए। हम ऐसे में दरों का 3 ढांचा बना सकते हैं। एक मानक दर हो, एक आवश्यक वस्तुओं के लिए कम दर हो और एक विलासिता की वस्तुओं के लिए दर हो। इसे अपनाने में भी लंबा वक्त लगेगा।

First Published - May 12, 2023 | 10:03 AM IST

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