सरसों की सर्वश्रेष्ठ किस्म की तुलना में जीएम सरसों की हाईब्रिड डीएमएच-11 की उपज सरकारी चिह्नित परीक्षण स्थलों में स्पष्ट रूप से उजागर नहीं हो पाई है। इस मामले के जानकार सूत्रों ने बताया कि भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (ICAR) में किए गए प्रथम विशेष परीक्षण में जीएम सरसों डीएमएच-11 का वजन अपेक्षाकृत कम रहा है।
डेवलपरों के दावे के मुताबिक डीएमएच-11 ने प्रति हेक्टेयर 2.6 टन हेक्टेयर का उत्पादन किया। इसकी पुष्टि बीते सत्र में छह परीक्षण स्थलों पर किए गए परीक्षण स्थलों के सूत्रों ने भी की है। हालांकि यह स्पष्ट नहीं हुआ है कि परीक्षण स्थलों पर अन्य किस्मों की तुलना में कैसा प्रदर्शन किया।
सूत्रों के मुताबिक आईसीएआर की रेपसीड और सरसों की अखिल भारतीय समन्वित शोध परियोजना के प्रोटोकाल के मुताबिक सरसों के हाई ब्रिड का परीक्षण किया गया। परीक्षण के दौरान प्रतिस्पर्धी हाई ब्रिड की तुलना में कम से कम पांच प्रतिशत अधिक उपज देनी चाहिए। इसे परीक्षण के दौरान जांची गई किस्म की तुलना में 10 प्रतिशत अधिक उपज देनी चाहिए।
भारत में विभिन्न स्थानों पर छह अन्य प्रतिस्पर्धी किस्मों के साथ जीएमएच-11 लगाई गई थी और इसकी उपज का जांच किया गया। इससे जीएम सरसों को वाणिज्यिक रूप से जारी करने का मार्ग प्रशस्त होता। सूत्रों के मुताबिक संभावित उपज व वजन के मुकाबले में हाई ब्रि़ड ने कुछ परीक्षण स्थलों पर आशा के अनुरूप प्रदर्शन नहीं किया।
सूत्रों के मुताबिक, ‘प्रथम विशेष परीक्षण की जांच को सर्वोच्च न्यायालय में दाखिल किया जाएगा। इससे यह स्पष्ट होगा कि सभी परीक्षण स्थलों पर उपज के सभी दावे प्रोटोकॉल से मेल खाते हैं।’
सूत्रों के मुताबिक प्रोटोकाल के अनुसार सरसों के हाईब्रिड प्रति 1000 बीजों का वजन 4.5 ग्राम होना चाहिए। लेकिन डीएमएच-11 का वजन केवल 3.5 ग्राम रहा। अभी भारत से इस्तेमाल की जा रही सरसों की सर्वश्रेष्ठ किम्म के 1000 बीजों का वजन 5 से 5.5 ग्राम है। पूरे देश में व्यापक रूप से मशीनों से सरसों की कटाई हो रही है। बीज का वजन कम होने की स्थिति में मशीनीकृत कटाई मुश्किल हो जाती है।
सूत्रों के अनुसार ‘मशीन से कटाई के दौरान सरसों के हल्के बीज उड़ कर छिटक जाते हैं। इसलिए सरसों की बोआई वाले प्रमुख क्षेत्र उत्तरी भारत के किसान ऐसी किस्म को पसंद नहीं करते हैं।’
सूत्रों के मुताबिक डीएमएच-11 की व्यापक तौर पर किए गए प्रथम व्यापक परीक्षण के परिणाम आशानुरूप नहीं हैं। इससे दूसरे चरण में बाधा आ सकती है।
दरअसल आगामी परीक्षणों के दौरान आदर्श परिणाम हासिल करने के लिए बीजों को नवंबर के पहले सप्ताह में बोआई करनी होती है। कुछ लोगों ने कहा कि देरी से बोआई करने के कारण प्रतिस्पर्धी किस्म की तुलना में कम उपज प्राप्त हुई। हालांकि सूत्रों के मुताबिक सभी किस्मों की बोआई देरी से हुई थी।