यूक्रेन के मुद्दे पर अलग-अलग रुख की वजह से जी-20 नेताओं के शिखर सम्मेलन से पहले संयुक्त बयान के लिए आम सहमति बनाने की कोशिश में जुटे भारतीय राजनयिकों के सामने बड़ी चुनौती पैदा हो गई है
हम्पी में विरुपक्ष मंदिर के दौरे के दौरान गाइड ने जी-20 देशों के प्रतिनिधियों को इस मंदिर के प्रवेश द्वार के पास मौजूद पवित्र पत्थर के पास कोई मन्नत मांगने के लिए प्रेरित किया ताकि अगर वार्ता के मौजूदा चरण के दौरान कोई बाधा आ रही हो तो वह दूर हो जाए। भारतीय शेरपा अमिताभ कांत ने जवाब दिया, ‘बहुत सारी बाधाएं हैं।’
यह सुनकर सभी हंस पड़े। जैसे ही मुख्य वार्ताकारों या शेरपाओं ने हम्पी में संयुक्त बयान के मसौदे पर चर्चा शुरू की वैसे ही भारत की जी-20 अध्यक्षता का दौर अपने सबसे महत्त्वपूर्ण चरण में प्रवेश कर गई। जुलाई की शुरुआत में पहले मसौदे की विज्ञप्ति सदस्यों में वितरित की गई थी जिसके आधार पर कर्नाटक के इस बेहद सुंदर वैश्विक धरोहर स्थल पर 17 घंटे तक मिल-जुल कर मसौदा तैयार करने के बेहद थकाऊ सत्र आयोजित किए गए थे।
शेरपा सितंबर की शुरुआत में हरियाणा के मानेसर में आखिरी बार मिलेंगे
भारत ने सदस्यों द्वारा की गई बदलाव की पेशकश को इस मसौदे में शामिल किए जाने के बाद जुलाई के अंत से पहले एक दूसरा मसौदा भेजने की योजना बनाई है। शेरपा सितंबर की शुरुआत में हरियाणा के मानेसर में आखिरी बार मिलेंगे। इसके बाद नेता 9-10 सितंबर को नई दिल्ली में इकट्ठा होंगे जहां संयुक्त बयान को मंजूरी दी जा सकती है या उसे अस्वीकार किया जा सकता है। भारत ने पिछले साल इंडोनेशिया के बाली में जी-20 की बैठक में एक संयुक्त बयान जारी करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की इस घोषणा का रूस सहित सभी सदस्यों ने समर्थन किया कि ‘आज का युग युद्ध का नहीं होना चाहिए’। अब, रूस का मानना है कि स्थिति बाली शिखर सम्मेलन के दौरान की तुलना में बदल गई है, जिसमें विकसित अर्थव्यवस्थाओं के जी-7 देशों के समूह ने यूक्रेन को हथियारों और गोला-बारूद की आपूर्ति करके संघर्ष में खुद को शामिल किया था।
दूसरी ओर, जी-7 देश यूक्रेन युद्ध के लिए रूस की कड़ी निंदा चाहते हैं, लेकिन बाली भाषा के लिए समझौता करने के इच्छुक हैं। उन्होंने कहा, ‘बाली (भाषा) को शुरुआती बिंदु बनाने की जरूरत है। अमेरिका के रुख से वाकिफ जी-20 के एक प्रतिनिधि ने कहा, ‘बाली (भाषा) में कुछ तत्त्व जैसे कि परमाणु अस्वीकार्यता पर बयान महत्त्वपूर्ण हैं।’
जी-20 ‘भू-राजनीतिक मुद्दों पर चर्चा करने के लिए सही मंच नहीं: चीन
वहीं दूसरी ओर, चीन ने हाल ही में गांधीनगर में संपन्न हुई फाइनैंस ट्रैक बैठक में कहा कि जी-20 ‘भू-राजनीतिक मुद्दों पर चर्चा करने के लिए सही मंच नहीं है’।
भारत बेहद सावधानीपूर्वक और कुशलता से इस रास्ते पर चल रहा है। यह मंत्री स्तर के संयुक्त बयान पर जोर नहीं दे रहा है बल्कि यह अध्यक्ष के तौर पर संक्षिप्त ब्योरे से समझौता करने के लिए तैयार है ताकि ऐसी स्थिति से बचा जा सके जहां भारत की जी-20 अध्यक्षता पर रूस-यूक्रेन युद्ध विवाद हावी हो जाए।
रूस-यूक्रेन युद्ध हमारी प्राथमिकता नहीं: कांत
हम्पी में, भारत ने समूह स्तर पर यूक्रेन युद्ध पर चर्चा से परहेज किया जबकि द्विपक्षीय और अन्य अनौपचारिक ‘वार्ता’ के माध्यम से प्रत्येक देश के रुख का अंदाजा लगाने की कोशिश की।
कांत ने हम्पी में मीडिया को जानकारी देते हुए कहा, ‘रूस-यूक्रेन युद्ध हमारी प्राथमिकता नहीं है। हमारी प्राथमिकता विकास के मुद्दे हैं। यही कारण है कि हम इस पर अंत में चर्चा करेंगे।’
सार्वजनिक रूप से, भारतीय राजनयिक सख्त मुद्रा बनाए रखते हैं। हालांकि निजी तौर पर वे आम सहमति बनाने के बारे में चिंतित रहते हैं। अगर जी 20 सदस्य रूस-यूक्रेन युद्ध को लेकर एक आम संदेश देने को लेकर सहमति बनाने में असफल रहते हैं तब वर्ष 2008 के बाद ऐसा पहली बार होगा जब किसी जी-20 के शीर्ष नेताओं के शिखर सम्मेलन में संयुक्त बयान नहीं दिए जाएंगे।
भारत ने जी-20 की अध्यक्षता को प्रतिष्ठा का मुद्दा बना लिया है और इसे बढ़ावा देने में कोई कसर नहीं छोड़ रहा है, ऐसे में उसे इस तरह के परिणाम पसंद नहीं आएंगे। हालांकि जी-20 में एक ‘संयुक्त विज्ञप्ति’ द्विपक्षीय या बहुपक्षीय समझौतों के विपरीत कानूनी रूप से बाध्यकारी नहीं है लेकिन यह सभी सदस्यों द्वारा सहमत सामान्य न्यूनतम एजेंडे का प्रतिनिधित्व करता है और अक्सर भविष्य के बहुपक्षीय समझौतों की दिशा भी तय करता है।
वहीं दूसरी ओर, अध्यक्षता कर रहा देश चर्चाओं को संक्षेप में पेश करता है, जिसमें किए गए प्रमुख निर्णयों पर जोर दिया जाता है लेकिन कुछ विवादास्पद मुद्दों पर आम सहमति नहीं होने के संकेत मिलते हैं। अध्यक्षता कर रहे देश का बयान, शिखर सम्मेलन का सबसे कमजोर दस्तावेज है और यह अध्यक्ष देश के निजी विचारों को दर्शाता है और यह चर्चाओं को सारांश में पेश करने का दावा नहीं कर सकता है।
एक भारतीय जी-20 राजनयिक ने कहा, ‘संयुक्त बयान को लेकर काफी उम्मीदें हैं। मैं इसे पूरे दावे के साथ कहूंगा। इसके लिए कुछ बड़े कदम उठाने की आवश्यकता हो सकती है। इसके लिए जमीन तैयार करने की जरूरत है। हम समझते हैं कि अगर हम यूक्रेन युद्ध का कोई संदर्भ नहीं देते हैं तब कोई परिणाम नहीं हो सकता है।’
हालांकि, उन्होंने स्वीकार किया कि अंतिम समय में चीजें नाटकीय रूप से बदल सकती हैं। पिछले साल जी-20 शिखर सम्मेलन के लिए नेताओं के बाली पहुंचने के बाद, एक मिसाइल ने पोलैंड को निशाना बनाया और संदेह था कि यह मिसाइल रूस से छोड़ी गई है। जी-7 देशों ने चर्चा के लिए बैठक की। लेकिन जब यह बात सामने आई कि मिसाइल रूस से नहीं छोड़ी गई है तब शांतिपूर्ण स्थिति बनी। अधिकारी ने कहा, ‘अगर मिसाइल रूस से आई होती तो बाली में संयुक्त आधिकारिक विज्ञप्ति भी नहीं दी जाती।’
हालांकि रूस-यूक्रेन युद्ध पर आम सहमति से जुड़े संदेश के लिए एक स्पष्ट रास्ता अभी तक दिखाई नहीं दे रहा है, लेकिन भारतीय राजनयिकों ने आम सहमति बनाने के लिए लगभग आधा दर्जन विकल्प तैयार किए हैं। पिछली घोषणाएं संदर्भ बिंदु के रूप में काम कर सकती हैं। मई में जी-7 के शिखर सम्मेलन में रूस का 23 बार जिक्र किया गया है और यूक्रेन पर आक्रमण के लिए रूस की कड़ी निंदा की गई है। हालांकि, जी-7 बैठक से इतर क्वाड शिखर सम्मेलन में बहुत नरम भाषा इस्तेमाल करने पर सहमति बनी क्योंकि भारत इसमें एक सदस्य है।
प्रधानमंत्री मोदी की अमेरिका यात्रा के दौरान भारत-अमेरिका के संयुक्त बयान में रूस शब्द का उल्लेख नहीं है। एक दूसरे भारतीय राजनयिक ने कहा, ‘हम सुलह की पूरी गुंजाइश देखते हैं। जब यह वास्तव में महत्त्वपूर्ण हो जाता है तब आधिकारिक विज्ञप्ति क्यों नहीं दी जानी चाहिए। आधिकारिक संयुक्त बयान में रूस-यूक्रेन युद्ध पर विचारों की विविधता के साथ-साथ एक समावेशी पैराग्राफ की जरूरत है। हम आधिकारिक संयुक्त बयान के माध्यम से हर किसी को खुश नहीं कर सकते हैं। पहले भारतीय राजनयिक ने चुटकी लेते हुए कहा, ‘यह विचार सभी को समान रूप से नाखुश करने के लिए है।’