अर्थशास्त्रियों का कहना है कि जेपी मॉर्गन के ईएम बॉन्ड बेंचमार्क में केद्र सरकार के बॉन्डों को शामिल किए जाने से देश में निवेश की आवक बढ़ेगी और तेल के उच्च दाम के कारण भुगतान संतुलन (बीओपी) बिगड़ने का संभावित डर कम होगा।
बार्कलेज के अर्थशास्त्रियों ने एक इंपैक्ट नोट में कहा, ‘ज्यादातर धन अगले साल आएगा, वहीं हम उम्मीद करते हैं कि कुछ अतिरिक्त धन वित्त वर्ष 23-24 में भी आएगा। क्योंकि वास्तव में इसे शामिल किए जाने के पहले कुछ सक्रिय फंड प्रबंधक निवेशक करेंगे।’
ऐसा अनुमान है कि धन का यह प्रवाह 10 अरब डॉलर के आसपास हो सकता है, जो इस वित्त वर्ष के शेष महीनों में आएगा। विशेषज्ञों का कहना है कि इससे तेल की उच्च कीमत के कारण संभावित जोखिम का असर कम होगा।
अगर तेल की कीमत 10 डॉलर प्रति बैरल बढ़ती है तो भारत के चालू खाते के संतुलन पर करीब 10 से 12 अरब डॉलर (सकल घरेलू उत्पाद का 30-32 आधार अंक) का विपरीत असर पड़ता है।
बार्कलेज का कहना है कि इसकी वजह से अगर कच्चे तेल की कीमत 10 डॉलर प्रति बैरल बढ़कर 85 डॉलर प्रति बैरल के ऊपर भी जाती है तो भुगतान संतुलन हमारे अनुमान के करीब ही रहेगा।
बैंक आफ बड़ौदा के मुख्य अर्थशास्त्री मदन सबनवीस ने कहा कि शामिल किए जाने का मतलब है कि देश में ज्यादा विदेशी मुद्रा आएगी। उन्होंने कहा, ‘यह 30 अरब डॉलर सा इससे ज्यादा हो सकता है, जो समय के साथ बढ़ेगा। यह भारत के भुगतान संतुलन के हिसाब से बेहतर है और इससे हम भंडार में वृद्धि देख सकते हैं। बहरहाल यह इस बात पर निर्भर है कि चालू खाते का घाटा (सीएडी) और अन्य पूंजीगत प्रवाह किस तरह से व्यवहार करते हैं।’
एमके ग्लोबल फाइनैंशियल सर्विसेज में अर्थशास्त्री माधवी अरोड़ा ने कहा कि चल रहे सुस्त प्रवाह के बाद इस कदम से ऋण बाजार में नया सक्रिय प्रवाह हो सकता है।
अरोड़ा ने कहा कि इससे भारत के वित्त, राजकोषीय और सीएडी को मदद मिलेगी। साथ ही इससे जी-सेक के मालिकाना आधार व नकदी में बढ़ोतरी होगी।
अरोड़ा ने कहा, ‘हमें वित्त वर्ष 23 के अंत में 10 से 12 अरब डॉलर के भुगतान संतुलन के जोखिम का अनुमान है। लेकिन हम शुद्ध प्रवाह पर नजर रख रहे हैं। यह बॉन्ड समावेशन से इतर वजहों जैसे वैश्विक जोखिम के स्तर और बाहरी वृद्धि की गति से भी प्रभावित हो सकता है।’