भारत में खाद्य और ईंधन कीमतों में उतार-चढ़ाव अस्वाभाविक नहीं है। खाद्य कीमतों का निरंतर बना रहने वाला दबाव हेडलाइन मुद्रास्फीति (Inflation) को ऊंचे स्तर पर बनाए रखता है। ऐसे में यह समझना महत्त्वपूर्ण है कि ऐसी कीमतों का झटका किस प्रकार मुद्रास्फीतिक नतीजों के प्रबंधन की राह में रोड़ा बन सकता है।
मुद्रास्फीति संबंधी नतीजे अपेक्षाकृत अनुकूल हो चुके हैं और भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) की मौद्रिक नीति समिति (MPC) का अनुमान है कि चालू वर्ष में मुद्रास्फीति की दर औसतन 4.5 फीसदी रह सकती है। इस स्थिति में भी यह 4 फीसदी के लक्ष्य से ऊपर रहेगी। यह सही है कि मौद्रिक सख्ती और कच्चे माल की लागत में कमी के कारण कोर मुद्रास्फीति की दर 4 फीसदी से कम हुई है लेकिन खाद्य कीमतों के क्षेत्र में बार-बार बनने वाला दबाव हेडलाइन मुद्रास्फीति दर को कोर स्तर तक पहुंचने से रोकता है।
दिसंबर के 5.7 फीसदी के स्तर से गिरावट के बावजूद हेडलाइन मुद्रास्फीति की दर जनवरी-फरवरी 2024 में 5.1 फीसदी रही। जनवरी में गिरावट के बाद खाद्य मुद्रास्फीति की दर फरवरी में 7.8 फीसदी तक जा पहुंची। ऐसा प्राथमिक रूप से सब्जियों, अंडों, मांस और मछलियों की कीमतों की बदौलत हुआ।
मौद्रिक नीति के नजरिये से देखें तो यह समझना आवश्यक है कि कैसे खाद्य या ईंधन मुद्रास्फीति की कीमतों का दबाव समग्र मुद्रास्फीति को प्रभावित कर सकता है। रिजर्व बैंक अर्थशास्त्रियों के एक शोध आलेख में इस बात की पड़ताल की गई है कि खाद्य और ईंधन की हेडलाइन और कोर मुद्रास्फीति का दूसरा दौर भारत में किस तरह का असर डालेगा।
हेडलाइन और खाद्य मुद्रास्फीति की दरों की गति जहां परस्पर संबद्ध है, वहीं इस बात के भी प्रमाण हैं कि घरेलू मुद्रास्फीति के अनुमानों तथा खाद्य मुद्रास्फीति के बीच भी गहरा संबंध है। इसका कोर मुद्रास्फीति की दर के व्यवहार पर असर पड़ता है जो काफी हद तक आम परिवारों के मुद्रास्फीति संबंधी अनुमानों से संचालित होती है।
रिजर्व बैंक के अर्थशास्त्रियों ने यह भी पाया कि निकट भविष्य में कोर और हेडलाइन मुद्रास्फीति में समरूपता आ सकती है। इससे संकेत मिलता है कि गैर कोर घटकों से लेकर कोर मुद्रास्फीति तक झटके का प्रसार हो सकता है। सन 1990 के दशक के 0.37 फीसदी के उच्चतम स्तर से खाद्य मुद्रास्फीति में एक फीसदी की प्रतिक्रिया तब से लगातार कम हो रही है। 2023-24 की तीसरी तिमाही तक यह प्रतिक्रिया 0.14 फीसदी थी।
इतना ही नहीं ईंधन कीमतों के झटके का कोर मुद्रास्फीति पर असर मोटे तौर पर महत्त्वपूर्ण नहीं है हालांकि ऐसे झटके लंबी अवधि तक टिके रहते हैं। हाल के समय में कोर मुद्रास्फीति में जो गिरावट आई है, खासतौर पर 2016 में मुद्रास्फीति को लक्षित करने का लचीला ढांचा अपनाने के बाद, वह मौद्रिक नीति के लिए अहम रहा है। उसने मुद्रास्फीति के अनुमानों का बेहतर प्रबंधन किया है।
इसके बावजूद चिंताएं बरकरार हैं। खाद्य और ईंधन संबंधी वस्तुओं के अधिक भार के कारण कोर मुद्रास्फीति को लगने वाले झटके बढ़ सकते हैं। हाल में अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतों में इजाफा होने के बाद भी करीबी नजर डालने की आवश्यकता है। जलाशयों के जल स्तर में कमी, खासकर दक्षिण के राज्यों में इसमें कमी तथा सामान्य से अधिक तापमान का अनुमान भी अल्पावधि में चिंता का विषय है।
बहरहाल, औसत से बेहतर बारिश के कारण कृषि उत्पादन के क्षेत्र में राहत मिल सकती है। जलवायु संबंधी झटकों के कारण निकट भविष्य में खाद्य कीमतें अनिश्चित बनी रहेंगी और यह बात मुद्रास्फीति के परिदृश्य पर असर डालेगी।
खाद्य कीमतों में अस्थिरता के बारे में कोई भी अनुमान लगाना मुश्किल हो रहा है। खासतौर पर मौसम में लगातार बदलाव को देखते हुए ऐसा हो रहा है। अगर ऐसे ही झटके लगते रहे तो भविष्य में सख्त मौद्रिक नीति की जरूरत होगी। एमपीसी की टिकाऊ ढंग से मुद्रास्फीति के 4 फीसदी के लक्ष्य को पाने की प्रतिबद्धता से अनुमानों के प्रबंधन में मदद मिलेगी और अस्थिरता में कमी आएगी।