चालू वित्त वर्ष की पहली छमाही (वित्त वर्ष 24 की पहली छमाही) में रुपये ने एशिया की अपनी अधिकांश प्रतिस्पर्धी मुद्राओं को पछाड़ दिया है। अमेरिकी डॉलर के मुकाबले सबसे कम नरमी की वजह से हॉन्गकॉन्ग डॉलर के बाद रुपया दूसरे स्थान पर रहा है। अप्रैल और सितंबर के बीच भारतीय मुद्रा में 1.04 प्रतिशत तक की गिरावट आई है। शुक्रवार को यह प्रति डॉलर 83.04 रुपये पर बंद हुआ।
पहली तिमाही के दौरान तुलनात्मक रूप से स्थिर रहने के बाद रुपये को वित्त वर्ष 24 की दूसरी तिमाही में दबाव का सामना करना पड़ा। अमेरिकी ब्याज दरों और कच्चे तेल की कीमतों में बढ़ोतरी के कारण ऐसा हुआ। जुलाई और सितंबर के बीच इसमें 1.2 प्रतिशत की गिरावट आई। 19 सितंबर को यह डॉलर के मुकाबले अब तक के सबसे निचले बंद भाव 83.27 पर पहुंच गया।
इसके विपरीत मजबूत विदेशी प्रवाह की वजह से वित्त वर्ष 24 की पहली तिमाही के दौरान इसमें 0.2 प्रतिशत और कैलेंडर वर्ष की पहली छमाही में 0.16 प्रतिशत तक की मजबूती आई।
बाजार के भागीदारों के अनुसार विदेशी मुद्रा बाजार में भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) द्वारा के समय पर किए गए हस्तक्षेप ने डॉलर के मुकाबले दूसरी तिमाही के दौरान रुपये को मजबूत बनाए रखा। आरबीआई ने बार-बार कहा है कि वह विदेशी मुद्रा बाजार में अस्थिरता से निपटने के लिए विदेशी मुद्रा भंडार का उपयोग करता है।
आईडीबीआई बैंक के कार्यकारी निदेशक (ट्रेजरी प्रमुख) अरुण बंसल ने कहा कि अमेरिकी ट्रेजरी और भारतीय बॉन्ड के बीच ब्याज दर का अंतर कम हो रहा है। डॉलर सूचकांक खुद में बढ़ रहा है। लेकिन हमारी मुद्रा का अवमूल्यन अन्य मुद्राओं जितना तीव्र नहीं है।
उन्होंने आगे कहा कि अन्य क्षेत्रों की तुलना में विदेशी मुद्रा भंडार कम करने की भारत की क्षमता तथा वैश्विक स्तर पर 80 से 85 डॉलर प्रति बैरल की तुलना में कम दरों पर रूस से कच्चा तेल मिलने से रुपये पर दबाव कम करने में मदद मिली है। उन्होंने कहा कि इसके अलावा हमने पिछले महीने तक इक्विटी में काफी ज्यादा विदेशी प्रवाह देखा है। केवल इस महीने ही इक्विटी में विदेशी निकासी देखी गई है।