केंद्र सरकार ने आज साफ किया है कि अमेरिका से सेब और अखरोट सहित 8 कृषि उत्पादों के आयात से अतिरिक्त प्रतिकारी शुल्क हटाए जाने का घरेलू उत्पादकों पर कोई नकारात्मक असर नहीं पड़ेगा। हालांकि इस मसले पर सत्तासीन और विपक्षी दलों के बीच जुबानी जंग छिड़ गई है।
वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने कहा कि दरअसल इस कदम से प्रीमियम मार्केट सेग्मेंट में प्रतिस्पर्धा बढ़ेगी, जिससे ग्राहकों को बेहतर मूल्य पर बेहतर गुणवत्ता सुनिश्चित हो सकेगी। खासकर सेब के मामले में इसका फायदा ग्राहकों को मिलेगा।
वाणिज्य विभाग में अतिरिक्त सचिव पीयूष कुमार ने संवाददाताओं से बातचीत में कहा, ‘कुछ चिंता व्यक्त की गई थी, जिस पर आपसी सहमति से समाधान कर लिया गया है। खासकर 7-8 कृषि उत्पादों को लेकर यह चिंता जताई गई थी, जिनके आयात पर हमने उस समय प्रतिकार शुल्क लगाया था, जब अमेरिका ने स्टील व एल्युमीनियम पर शुल्क लगाया था।’
कुमार ने कहा, ‘इस तरह से सिर्फ अतिरिक्त (आयात शुल्क) ही हटाया गया है। बुनियादी आयात शुल्क 50 प्रतिशत (सेब के मामले में) लागू रहेगा। जब हमने अमेरिका के खिलाफ अतिरिक्त शुल्क लगाया था, इसका एक नुकसान था। इसने एक बाजार गंवा दिया, जिसकी जगह कुछ अन्य देशों ने ले ली, जिनमें ईरान, न्यूजीलैंड, चिली, तुर्की शामिल हैं। यह अतिरिक्त शुल्क हटाने से अमेरिका इन बाजारों से प्रतिस्पर्धा करने में सक्षम हो सकेगा।’
इसके अलावा सेब पर भूटान को छोड़कर सभी देशों से आयात पर 50 रुपये प्रति किलो न्यूतम आयात शुल्क (एमआईपी) लगता है, जिससे खराब गुणवत्ता के सेब की डंपिंग से बचा जा सके और भारतीय बाजार को किसी प्रभावित करने ॅवाली मूल्य नीति से बचाया जा सके।
वाणिज्य विभाग के एक आधिकारिक बयान में कहा गया है, ‘अमेरिका का सेब, बादाम, और अखरोट अन्य देशों के साथ प्रतिस्पर्धा करेगा।’
बयान ऐसे समय आया है, जब स्थानीय किसानों और उत्पादकों ने नुकसान का अनुमान लगाया है। खासकर कश्मीर के सेब और अखरोट के किसानों ने आपत्ति जताई थी, क्योंकि अब अमेरिका को इन सामानों के लिए व्यापक बाजार तक पहुंच मिल जाएगी।
भारत में जम्मू कश्मीर और हिमाचल प्रदेश में बड़े पैमाने पर सेब का उत्पादन किया जाता है। दोनों राज्य मिलकर भारत का करीब 97 प्रतिशत सेब उत्पादन करते हैं। भारत में सालाना 24 से 25 लाख टन सेब का उत्पादन होता है।
ऐपल फार्मर्स फेडरेशन आफ इंडिया के संयोजक सोहन ठाकुर ने कहा, ‘अतिरिक्त आयात शुल्क खत्म करने के सरकार के इस फैसले से अमेरिका से भारत में बड़ी मात्रा में सेब आएगा और इसकी कीमत भारत के किसानों को चुकानी पड़ेगी। अमेरिका के सेब निश्चित रूप से बेहतर गुणवत्ता के होते हैं क्योंकि उन्हें मशीनी तरीके से उगाया जाता है। साथ ही अमेरिका में किसानों को भारत के किसानों की तुलना में बहुत ज्यादा सब्सिडी मिलती है। इसलिए यह बदलाव अमेरिकी किसानों के पक्ष में रहेगा।’
विपक्षी दल कांग्रेस ने भी किसानों से सहमति जताई है। पार्टी प्रवक्ता सुप्रिया श्रीनेत ने कहा, ‘वोकल फॉर लोकल नारे का क्या हुआ? छूट की पेशकश करके प्रधानमंत्री अमेरिका को क्यों खुश करना चाहते हैं?’
वहीं भाजपा के आईटी विभाग के राष्ट्रीय प्रभारी अमित मालवीय ने कहा कि कांग्रेस को सेब के आयात शुल्क में बदलाव के मसले पर झूठ बोलना बंद करना चाहिए।
बहरहा केंद्रीय वाणिज्य विभाग ने भय को खत्म करते हुए कहा है कि वह इन वस्तुओं के आयात पर नजदीकी से नजर रखेगा और गृह मंत्रालय, कृषि मंत्रालय और कश्मीर से इस मसले पर बातचीत होती रहेगी।
वाणिज्य विभाग द्वारा किए गए विश्लेषण के मुताबिक अमेरिका से इतर देशों से सेब का आयात बढ़ा है और यह वित्त वर्ष 19 के 16 करोड़ डॉलर से बढ़कर वित्त वर्ष 23 में 29 करोड़ डॉलर हो गया है। इसी तरह से अखरोट का आयात वित्त वर्ष 19 के 3.511 करोड़ डॉलर की तुलना में वित्त वर्ष 23 में बढ़कर 5.395 करोड़ डॉलर हो गया है।
बयान में कहा गया है, ‘पिछले 3 साल में बादाम का आयात करीब 233 हजार एमटी रहा है, जबकि केंद्र सरकार का कहना है कि अमेरिकी सेब के आयात पर शुल्क में कटौती करने का किसानों पर असर नहीं होगा ।
सरकार के मुताबिक अमेरिका का सेब, बादाम, व अखरोट अन्य देशों के साथ प्रतिस्पर्धा करेगा वहीं विपक्षी दलों और किसान समूहों ने शुल्क घटाए जाने को गलत बताया। उत्पादकों का कहना है कि अमेरिका से भारत में बड़ी मात्रा में सेब आएगा और इसकी कीमत भारत के किसानों को चुकानी पड़ेगी।