सरकार आर्टिफिशल इंटेलिजेंस (एआई) क्षेत्र में सार्वजनिक-निजी भागीदारी (पीपीपी) के लिए उद्योग जगत से बात कर रही है। केंद्रीय रेल, संचार, इलेक्ट्रॉनिक्स एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री अश्विनी वैष्णव ने सुरजीत दास गुप्ता और ध्रुवाक्ष साहा को बताया कि डिजिटल भुगतान प्रणाली की ही तरह ऐसी प्रणाली बनाने की सरकार की योजना है, जहां एआई के लिए जरूरी तंत्र का इस्तेमाल सभी कर सकें। मुख्य अंश:
2जी पर फैसला हमारे सामाजिक और राजनीतिक जीवन के लिए महत्त्वपूर्ण था। अब हमने स्पेक्ट्रम आवंटन के लिए नीलामी को पसंदीदा तरीका बनाने के लिए कानून में उसी सिद्धांत को समाहित किया है। रक्षा, विमानन (सार्वजनिक सुरक्षा), पुलिस, वन एवं समुद्र जैसे कुछ क्षेत्रों को स्पष्ट रूप से ऐसे क्षेत्र के रूप में परिभाषित किया गया है जहां स्पेक्ट्रम की नीलामी नहीं की जा सकती है। जबकि कुछ ऐसे क्षेत्र भी हैं जहां तकनीकी तौर पर नीलामी संभव नहीं है।
उदाहरण के लिए, मोबाइल टावरों के बीच पॉइंट-टू-पॉइंट बैक हॉल में इस्तेमाल होने वाले रेडियो तरंगों का दोबारा उपयोग किया जा सकता है। इसलिए तकनीकी या आर्थिक तौर पर उसकी नीलामी संभव नहीं होगी। उपग्रह का मामला भी ऐसा ही है जहां पेंसिल बीम का कहीं भी दोबारा उपयोग किया जा सकता है। नए कानून के तहत स्पष्ट तौर पर परिभाषित किया गया है कि क्या नीलाम हो सकता है और क्या नहीं, ताकि कोई कानूनी अस्पष्टता न रहे।
न्यायपालिका का काफी सम्मान किया जाता है। हम विभिन्न आवेदनों के साथ सर्वोच्च न्यायालय गए थे ताकि सभी संस्थानों में सामंजस्य बरकरार रहे।
पहला महत्त्वपूर्ण मुद्दा लाइसेंस सुधार होगा। इससे पहले 100 से अधिक लाइसेंस होते थे और उनमें से हरेक के अपने तमाम नियम होते थे। इससे विवाद की गुंजाइश होती थी। हमने लाइसेंस एवं विशेषाधिकार वाली पूरानी व्यवस्था को खत्म करते हुए वैश्विक बेंचमार्क के अनुरूप कानून बनाने का निर्णय लिया है।
दूसरा मुद्दा उपयोगकर्ता सुरक्षा है। हमने धोखाधड़ी के जरिये सिम कार्ड लेना काफी कठिन बना दिया है। इसके लिए जुर्माने एवं कैद का भी प्रावधान किया गया है। इसके अलावा बायोमेट्रिक केवाईसी को अनिवार्य कर दिया गया है।
तीसरा, हमने विवेकपूर्ण, समयबद्ध, कानूनी रूप से परिभाषित, रास्ते के अधिकार संबंधी प्रावधान सुनिश्चित किए हैं। और चौथा, हमने विवादों को तेजी से निपटाने की व्यवस्था की है जो सरकार और सेवा प्रदाताओं के बीच विवादों को निपटाएगी।
हम उम्मीद करते हैं कि 99 फीसदी विवाद विभिन्न तंत्रों के जरिये तुरंत निपटाये जाएंगे। ग्राहकों के लिए ऑनलाइन प्रणाली समयबद्ध तरीके से विवादों को निपटाएगी। मुद्दों की व्याख्या करने अथवा गणितीय गलतियों के लिए एक निर्णायक अधिकारी होगा। इसके अलावा हमारे पास अपील समितियां भी हैं। इसलिए केवल 1 फीसदी मामला ही दूरसंचार विवाद निपटान एवं अपीलीय ट्रिब्यूनल (टीडीसैट) तक पहुंचेगा।
वैश्विक स्तर पर एआई की रफ्तार तेजी से बढ़ रही है। ऐसे में हमें उन क्षेत्रों को विनियमित एवं प्रोत्साहित करने के लिए योजना बनाने की जरूरत हो सकती है जहां हमें बढ़त हासिल है। इस पर आप क्या कहेंगे?
इसके कई पहलू हैं। पहला, क्या हम समाज एवं अर्थव्यवस्था के लिए नए समाधान विकसित करने में एआई का उपयोग करते हैं। कई लोग पहले से ही इस दिशा में काम कर रहे हैं और हम सार्वजनिक निजी भागीदारी के लिए उद्योग के साथ चर्चा कर रहे हैं। हम डिजिटल भुगतान प्रणाली की ही तरह एक ऐसी प्रणाली तैयार करना चाहते हैं जहां सरकार प्लेटफॉर्म तैयार करे और लोग उससे जुड़ें। हम इसी तरह का एक पीपीपी प्लेटफॉर्म तैयार करने योजना बना रहे हैं जहां एआई के लिए आवश्यक गणना तक सभी की पहुंच हो।
इसका फायदा कंपनियों, शिक्षाविदों, शोधकर्ताओं और सरकार यानी सभी को मिलनी चाहिए। दूसरा पहलू डीपफेक और सोशल मीडिया का दुरुपयोग है। सोशल मीडिया कंपनियों के साथ हमारी दो दौर की बातचीत हो चुकी है। इसके आधार पर हम एडवाइजरी जारी करेंगे और उद्योग सहयोग करेगा। इसके अलावा हम एक समग्र नियामकीय ढांचे के लिए भी चर्चा कर रहे हैं।
इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण के कई आयाम हैं और वह महज एक या दो उत्पादों तक सीमित नहीं है। उदाहरण के लिए, दूरसंचार उत्पादों का उत्पादन 18,000 से 19,000 करोड़ रुपये तक पहले ही पहुंच चुका है और निर्यात 8,000 करोड़ रुपये को छू चुका है।
रक्षा इलेक्ट्रॉनिक्स निर्यात में भी तेजी दिख रही है। इसके अलावा वाहन, ट्रेन एवं उद्योग के लिए इलेक्ट्रॉनिक्स में भी काफी तेजी आई है। इसलिए मैं समझता हूं कि 300 अरब डॉलर के लक्ष्य को आसानी से हासिल किया जा सकता है।
उसका असर पड़ेगा। उद्योग टिकाऊ वृद्धि की ओर रुख कर रहा है और उसमें कई तत्व शामिल हैं जैसे डिजाइन, भू-राजनीतिक जोखिम, बाजार और मांग का आकलन। उद्योग इस पर विचार करने लगा है।
चीन ने भारत में कारोबार करने वाली अपनी कंपनियों से उचित व्यवहार करने के लिए कहा है, खासकर इन कंपनियों के कर्मचारियों की गिरफ्तारी के बाद। इस पर सरकार की क्या प्रतिक्रिया है?
भारत सरकार कानून के हिसाब से कार्रवाई करेगी।
अगले चार-पांच महीनों में सेमीकंडक्टर के लिए हमारे पास दो और अच्छे प्रस्ताव आने चाहिए। माइक्रॉन इकाई का निर्माण काफी अच्छा चल रहा है, लोगों को प्रशिक्षित किया जा रहा है और अन्य भागीदार अपने संयंत्र लगाने के लिए जगह तलाश रहे हैं।
सरकार सेमीकंडक्टर संयंत्र की 50 फीसदी लागत का एकमुश्त वहन कर रही है और उसके बाद राज्यों से 20 फीसदी सब्सिडी दी जा रही है। ऐसे में क्या हमें सतर्क रहने की जरूरत है?
सेमीकंडक्टर के लिए हमने अभी-अभी अपना सफर शुरू किया है। इसलिए हमें कुछ ठोस निर्णय लेने की जरूरत है। चीन, दक्षिण कोरिया, यूरोप और अमेरिका इस क्षेत्र में पहले से ही भारी निवेश कर रहे हैं। यह एक ऐसा उद्योग है जो आगे आर्थिक लेनदेन में संतुलन को परिभाषित करेगा। यह भू-राजनीतिक संतुलन का भी मामला होगा। इसलिए हमें किसी भी कीमत पर यह उद्योग विकसित करना होगा।