डीएचएल एक्सप्रेस का शीर्ष प्रबंधन टैरिफ संबंधी उथल-पुथल कम होने और लॉजिस्टिक तथा विनिर्माण क्षेत्र में भारत के बढ़ते दबदबे के संबंध में आशावादी है। इस शीर्ष प्रबंधन में वैश्विक मुख्य कार्य अधिकारी जॉन पियर्सन, एशिया-प्रशांत के मुख्य कार्य अधिकारी केन ली और दक्षिण एशिया के वरिष्ठ उपाध्यक्ष आरएस सुब्रमण्यन शामिल हैं। वे इस आशावाद का श्रेय देश में बुनियादी ढांचे पर दिए जा रहे जोर और सहायक नीतिगत पहलों को देते हैं। प्राची पिसाल के साथ बातचीत में इन तीनों ने कहा कि वैश्विक कंपनियों की विस्तार योजनाओं में भारत प्रमुखता से शामिल है। संपादित अंश :
अपने क्षेत्र के लिए आपने पिछले कुछ वर्षों में भारत में किस तरह का बदलाव देखा है?
पियर्सन : मुझे लगता है कि भारत इस समय सबसे अच्छे स्थानों में से एक है, क्योंकि यह लॉजिस्टिक और विनिर्माण के क्षेत्र में वैश्विक मंच पर भूमिका निभाने में अधिक रुचिपूर्ण और सक्षम हो गया है। हमने बुनियादी ढांचे, स्थानों और सुविधाओं में खासा विकास देखा है। प्रशासन ने राष्ट्रीय लॉजिस्टिक नीति (एनएलपी) के जरिये बहुत अच्छा काम किया है। स्वाभाविक रूप से कारोबार अब भी चीन में बने रहने पर विचार कर रहे हैं, लेकिन कई कारोबार भारत में भी मौजूदगी चाहते हैं। कुछ भू-राजनीतिक घटनाक्रम भारत के पक्ष में रहे हैं और निश्चित रूप से कुछ ऐसे भी रहे हैं जो भारत के पक्ष में नहीं रहे हैं। भारत अब कंपनियों की विस्तार योजनाओं और बोर्डरूम की चर्चाओं में काफी प्रमुखता से शामिल हो रहा है। उसे इन उम्मीदों पर खरा उतरना होगा, खास तौर पर बुनियादी ढांचे और डिजिटल माहौल के संबंध में।
टैरिफ के संबंध में आपकी क्या राय है?
पियर्सन : मुझे वास्तव में उम्मीद है कि टैरिफ का जल्द समाधान हो जाएगा और मुझे विश्वास है कि ऐसा होगा। भारत उन आखिरी देशों में से है, जो किसी समझौते के लिए बातचीत कर रहे हैं और यह न तो स्वाभाविक रूप से अच्छा है और न ही बुरा। पूरी उम्मीद है कि क्रिसमस से पहले इस सुलझा लिया जाएगा। भारत और अमेरिका मजबूत व्यापारिक साझेदार हैं।
आप भारत के लिए विस्तार के क्या अवसर देख रहे हैं, खास तौर पर इस वैश्विक संदर्भ में?
आरएस सुब्रमण्यन : भारत की आर्थिक बुनियाद की मजबूती बरकरार है। हमारे पास कुशल श्रम शक्ति, बेहतर होता बुनियादी ढांचा और विभिन्न उत्पाद श्रेणियों में दमदार क्षमता है। भारत के परिदृश्य का झुकाव तेजी से विनिर्माण केंद्र बनने की ओर हो रहा है। इसने वाहन जैसे क्षेत्रों से शुरुआत की, अब यह प्रौद्योगिकी की ओर बढ़ रहा है और दवा उद्योग में पहले से ही उत्कृष्टता प्राप्त कर रहा है।
केन ली : टैरिफ से शायद कुछ अल्पकालिक अस्थिरता हो, लेकिन दीर्घकाल में यह अपने आप सुलझ जाएगा। वैश्विक व्यापार का स्वरूप किसी एक ही देश पर निर्भरता से हट रहा रहा और यह भारत को आकर्षक विकल्प बना रहा है। इसकी रणनीतिक स्थिति, विस्तृत होता विनिर्माण आधार तथा गतिशक्ति, मेक इन इंडिया और एनएलपी जैसी पहल इसके आकर्षण को मजबूत करती हैं।
इस अनिश्चित समय में वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला में आप क्या बदलाव देख रहे हैं?
पियर्सन : देखने के लिए काफी कुछ है। टैरिफ के कुछ महीने बाद कंपनियां उन्हें अस्थायी रूप से सहन कर सकती हैं, लेकिन जैसे-जैसे हम अगले साल में प्रवेश करेंगे, वे संगठित होकर फैसला लेने के लिए तैयार हो जाएंगी।