देश की सबसे बड़ी टायर निर्माता कंपनियों में से एक चेन्नई की एमआरएफ लिमिटेड है जो देश के सबसे महंगे शेयरों में से एक है। कंपनी के उपाध्यक्ष और प्रबंध निदेशक अरुण मम्मेन ने शाइन जैकब से बातचीत करते हुए कंपनी की वृद्धि से जुड़ी रणनीति, निर्यात से जुड़े रोडमैप और कच्चे माल की कीमतों से जुड़ी चिंताओं पर बात की। बातचीत के संपादित अंश
एमआरएफ तिमाही दर तिमाही दो अंकों में वृद्धि कर रही है। इसी तरह हम दुनिया में 11वीं सबसे बड़ी टायर कंपनी बन गए हैं। पिछले साल हम 15वें पायदान पर थे लेकिन अब हम चार पायदान ऊपर चढ़ गए हैं। एमआरएफ भारत की सबसे बड़ी टायर कंपनी है। हम सभी श्रेणियों में विकास कर रहे हैं चाहे वह ट्रक, दोपहिया वाहन या कार हो। सबसे अहम बात यह भी है कि हमारे मूल उपकरण (ओई) फिटमेंट में भी तेजी आ रही है। यही वजह है कि देश के बाजार में हमारी हिस्सेदारी बढ़ रही है।
हम बाजार के हिसाब से ही चलते हैं और अगर बाजार की आवश्यकता है तब हम विस्तार करते हैं। हम विकास के किसी भी संभावित मौके को भुनाने के लिए यहां मौजूद हैं। पिछले वर्ष हमारा राजस्व 25,000 करोड़ रुपये था। हम किसी भी तरह का अनुमान नहीं दे पाएंगे क्योंकि काफी चीजें बदल रही हैं। मैं बस इतना ही कह सकता हूं कि हम दोहरे अंक की वृद्धि के साथ आगे बढ़ रहे हैं।
हमें पूरा भरोसा है कि हम निकट भविष्य में वृद्धि की इसी रफ्तार को बरकरार रख सकते हैं। पिछले वित्त वर्ष में हमारा पूंजीगत खर्च करीब 2,100 करोड़ रुपये था। इस वर्ष पहले छह महीने में हमारा पूंजीगत खर्च 700 करोड़ रुपये रहा। बाजार में जिस तरह की जरूरत नजर आएगी, उसी के हिसाब से हम कुछ और भी करेंगे।
इलेक्ट्रिक वाहनों का दौर अभी चलेगा। हमारे पास इलेक्ट्रिक वाहनों का सबसे बड़ा फिटमेंट है। चाहे वह टाटा मोटर्स हो या नई मारुति सुजूकी या भारत मोबिलिटी के तहत जो भी नए लॉन्च हुए हों वे सभी एमआरएफ ईवी टायर हैं। एसयूवी के लिहाज से भी हम इस सेगमेंट के सबसे बड़े खिलाड़ी हैं।
कच्चे तेल की कीमत अब 81 डॉलर प्रति बैरल है और डॉलर के मुकाबले रुपया 86.5 के स्तर पर चला गया। इन सभी चीजों से कच्चे माल की कीमतों में बढ़ोतरी होती है। हमारे उद्योग में कच्चे माल के एक प्रमुख हिस्से का आयात किया जाता है। इन सभी चीजों का लागत पर असर पड़ता है। अभी यह कहना जल्दबाजी होगी कि कीमतों में बढ़ोतरी होगी या नहीं लेकिन निश्चित तौर पर लागत पर असर पड़ेगा। कच्चे तेल या रबड़ की कीमतों का सीधा असर हमारे मुनाफे पर पड़ता है।
कई वर्षों से हमारा जोर निर्यात पर नहीं रहा है। अब दुनिया के बाजार में हमारी पहुंच है और हमारे उत्पादों की मांग बढ़ रही है ऐसे में कारोबार भी बढ़ रहा है। हम निर्यात में प्रत्येक तिमाही में 25 फीसदी की दर से वृद्धि कर रहे हैं। रुपया-डॉलर विनिमय दर के अनुकूल होने पर हम कुछ मौके भुनाएंगे। आगे निर्यात एक अहम कारक होगा। दक्षिणपूर्व एशिया में हमारी मजबूत स्थिति है और हमारा प्रदर्शन अफ्रीका में भी बेहतर है और हमने दक्षिण अमेरिका में निर्यात करना शुरू कर दिया है। इन सभी बाजारों पर हमारा जोर है।
फिलहाल हम जो कर रहे हैं, हमारा जोर उस पर है। हमारा मुख्य कारोबार टायर से जुड़ा है। हम पेंट उद्योग, खिलौने, फनस्कूल ब्रांड में अपना दायरा बढ़ा रहे हैं। फनस्कूल देश में बिक्री करने के बजाय यूरोप, ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका में ज्यादा निर्यात करता है। हम वॉलमार्ट, टारगेट और अन्य ब्रांडों को बिक्री करते हैं। दुनिया भर में हमारे खिलौना निर्माता है और हम अनुबंध लेकर विनिर्माण करते हैं।