भारतीय वाहन विनिर्माता इलेक्ट्रिक वाहन (ईवी) उद्योग को भविष्य में संभावित आपूर्ति बाधाओं से बचाने के लिए दुर्लभ खनिज मैग्नेट से आगे देख रहे हैं। कई सूत्रों के अनुसार सभी प्रमुख यात्री और वाणिज्यिक वाहन विनिर्माता वित्त वर्ष 2027 तक मैग्नेट रहित मोटर से चलने वाले वाहन लाने की दिशा में काम कर रहे हैं। हालांकि कंपनियां इस घटनाक्रम पर चुप्पी साधे हुए हैं लेकिन ज्यादातर इस बात को स्वीकार करती हैं कि ईवी के विकास के साथ तालमेल बिठाने के लिए इस तरह का बदलाव जरूरी है। कई आपूर्तिकर्ता और मूल उपकरण विनिर्माता (ओईएम) ऐसी तकनीक पर पिछले कुछ वर्षों से काम कर रहे हैं क्योंकि उन्हें मौजूदा संकट जैसी स्थिति का अनुमान था। अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप द्वारा चीन के उत्पादों पर शुल्क बढ़ाए जाने के बाद चीन के वाणिज्य मंत्रालय ने कई दुर्लभ खनिज और मैग्नेट के निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया। इससे दुनिया भर की वाहन कंपनियों पर असर पड़ा है।
स्टर्लिंग टूल्स के डायरेक्टर जयदीप वाधवा ने बिज़नेस स्टैंडर्ड को बताया कि वे पिछले 4-5 साल से दुर्लभ मैग्नेट रहित मोटर बनाने के लिए कई ओईएम के साथ काम कर रहे हैं। स्टर्लिंग टूल्स ब्रिटेन की एडवांस्ड इलेक्ट्रिक मशीन्स (एईएम) के साथ भी इस तकनीक के लाइसेंस पर बातचीत कर रही थी और आखिरकार 14 मई को उसने एईएम के साथ तकनीक लाइसेंसिंग समझौते पर हस्ताक्षर किए।
वाधवा ने कहा, ‘तकरीबन सभी प्रमुख ओईएम अपने वाहनों में दुर्लभ मैग्नेट रहित मोटर का परीक्षण करने का कार्यक्रम चला रहे हैं। यह हर किसी के प्रौद्योगिकी रोडमैप का हिस्सा है। हम किसी कंपनी का नाम नहीं बता सकते।’
भारतीय वाहन विनिर्माता दुर्लभ खनिज मैग्नेट रहित मोटर के संबंध में रणनीति में बदलाव से इनकार नहीं कर रहे हैं। वाणिज्यिक वाहन विनिर्माता अशोक लीलैंड की इलेक्ट्रिक वाहन इकाई स्विच मोबिलिटी के सीईओ महेश बाबू ने कहा, ‘दीर्घकालिक योजना के रूप में सभी कंपनियों को दुर्लभ मैग्नेट के दीर्घकालिक विकल्पों पर विचार करना होगा। हमें इस दिशा में काम करने की जरूरत है। कुछ मामलों में समयसीमा 2027 हो सकती है जबकि अन्य में अधिक समय लग सकता है।’
प्रमुख संस्थान भी तकनीक को बढ़ावा देने में मदद कर रहे हैं। स्वदेशी इलेक्ट्रिक मोबिलिटी समाधान की विशेषज्ञ नई पीढ़ी की ओईएम नुमेरोस मोटर्स ने भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) भुवनेश्वर के साथ अनुसंधान के लिए रणनीतिक साझेदारी की है। दोनों संस्थाओं ने संयुक्त रूप से गैर-चुंबकीय या दुर्लभ मैग्नेट रहित मोटर टोपोलॉजी की खोज और मूल्यांकन के लिए दो साल की अनुसंधान पहल शुरू करने के लिए समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं। नुमेरोस मोटर्स के संस्थापक और सीईओ
श्रेयस शिबलाल ने कहा, ‘हमारा मानना है कि दुर्लभ मैग्नेट रहित मोटर तकनीक टिकाऊ, किफायती और सही मायने में स्वदेशी ईवी के निर्माण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाएगी। इससे आयात निर्भरता कम करने, उत्पादन लागत घटाने और अधिक आत्मनिर्भर ईवी ईकोसिस्टम में सार्थक योगदान करने में मदद मिलेगी।’
वाधवा ने दावा किया कि मौजूदा भू-राजनीतिक संकट ने इस कवायद को तेज कर दिया है और अब कई भारतीय ओईएम वित्त वर्ष 2027 तक दुर्लभ मैग्नेट रहित मोटर आधारित वाहन लाने की संभावना देख रहे हैं।
भारतीय वाहन उद्योग दुर्लभ मैग्नेट रहित मोटर समाधन की तलाश कर रहा है क्योंकि वैश्विक आपूर्ति जल्द ही मांग से अधिक हो सकती है। 2014 में चीन और जापान के बीच भू-राजनीतिक संकट के कारण दुर्लभ मैग्नेट की कीमतें तीन गुना बढ़ गई थीं और चीन ने हमेशा इसे एक हथियार के रूप में इस्तेमाल किया है।
इलेक्ट्रिक मोटर में दुर्लभ मैग्नेट की लागत भी अधिक आती है। आम तौर पर बड़े मोटर की कुल लागत में दुर्लभ मैग्नेट की हिस्सेदारी 30 फीसदी होती है और वाणिज्यिक वाहन में इसी तरह के मोटर का इस्तेमाल होता है। दोपहिया वाहनों के मोटर लागत में इसका खर्च करीब 15 से 20 फीसदी आता है। हालांकि भारत के पास दुर्लभ खनिज के भंडार हैं लेकिन कलपुर्जा विनिर्माताओं ने दावा किया कि इसका खनन और शोधन से काफी ज्यादा प्रदूषण होता है।