वाहन बनाने वाली कंपनियों से पूरी तरह तैयार यानी फुली बिल्ट बसें ज्यादा मांगी जा रही हैं। कोविड-19 वैश्विक महामारी के बाद यात्रियों की आवाजाही बढ़ने के साथ ही यह चलन ज्यादा दिख रहा है।
टाटा मोटर्स में वाइस प्रेसिडेंट और हेड (वाणिज्यिक यात्री वाहन कारोबार) आनंद एस ने बिज़नेस स्टैंडर्ड से कहा कि पिछले 5-6 साल में कंपनी के पास फुली बिल्ट बसों की मांग बहुत अधिक बढ़ी है।
उन्होंने कहा, ‘वित्त वर्ष 2019 में बसों की कुल मांग में फुली बिल्ट बसों की हिस्सेदारी करीब 55 फीसदी थी। मगर वित्त वर्ष 2025 की पहली तिमाही में आंकड़ा बढ़कर करीब 75 फीसदी हो गया है। इससे पता चलता है कि ग्राहक कारखानों में ही पूरी तरह तैयार बसों को ज्यादा तरजीह दे रहे हैं।’
आनंद ने कहा कि बदलती जरूरतों और बाजार की बदलती तस्वीर के कारण ग्राहक फुली बिल्ट बसों को ज्यादा पसंद कर रहे हैं। उन्होंने कहा, ‘गुणवत्त बेहतर होने के कारण ग्राहक फुली बिल्ट बसों की ओर झुक रहे हैं। इन बसों में सवारी ज्यादा आरामदेह होती है, खूबसूरती है और इंटीरियर भी बेहतरीन होता है। इसके अलावा बेहतर सर्विस एवं वारंटी, विनिर्माता कंपनी पर भरोसा और इस्तेमाल के लिए फौरन तैयार होने जैसी बातें भी फुली बिल्ट बसों को ग्राहकों के लिए अधिक सहूलियत भरा विकल्प बनाती हैं।’
फाइनैंस यानी कर्ज की बात करें तो पूरी तरह तैयार बसों के लिए ज्यादा कर्ज मिल जाता है क्योंकि उनका लोन टु वैल्यू अनुपात अधिक होता है। इसका मतलब है कि बस की कुल कीमत का ज्यादा से ज्यादा हिस्सा फाइनैंस कर दिया जाता है। इसके अलावा एग्रीगेटर कारोबार बढ़ने से भी फुली बिल्ट बसों की मांग बढ़ रही है।
आनंद ने कहा, ‘नियमों में सख्ती जैसे बस बॉडी कोड, फायर अलार्म ऐंड प्रोटेक्शन सिस्टम आदि के कारण भी फुली बिल्ट बसें बेहतर साबित हो रही हैं क्योंकि बाजार से बनवाई गई बॉडी या दूसरे हिस्से पैमानों पर खरे नहीं उतरते।’ पूरी तरह तैयार बसों की सबसे अधिक मांग स्कूलों और कर्मचारियों को लाने-ले जाने वाली श्रेणी में दिख रही है। उसके बाद शहरों के भीतर चलने वाली इंट्रा-सिटी बसों के लिए फुली बिल्ट बसें मांगी जा रही हैं।
टाटा मोटर्स ने कहा, ‘हमें लगता है कि यह चलन आगे भी जारी रहेगा और इन श्रेणियों में आवाजाही की जरूरतें पूरी करने के लिए फुली बिल्ट बसें ही पहली पसंद बनी रहेंगी।’
अशोक लीलैंड के पास भी फुली बिल्ट बसों की ज्यादा मांग आ रही है। कंपनी के प्रेसिडेंट (मझोले एवं भारी वाणिज्यिक वाहन) संजीव कुमार ने बिज़नेस स्टैंडर्ड से कहा कि कोविड-19 के बाद राज्य परिवहन निगमों ने ही नहीं निजी खरीदारों ने भी ऐसी बसों की मांग काफी बढ़ा दी है।
कुमार ने कहा, ‘बसों की बॉडी बनाने वाले इतनी बड़ी मांग पूरी नहीं कर पा रहे थे। राज्य परिवहन विभागों के अधिकारियों को भी लगा कि उन्हें कंपनियों से पूरी तरह तैयार बसें ही मिलनी चाहिए।’ उन्होंने कहा कि अशोक लीलैंड जितनी भी बसें बेचती है, उनमें करीब 60 फीसदी हिस्सेदारी फुली बिल्ट बसों की है।
अशोक लीलैंड ने पिछले साल गुजरात राज्य मार्ग वाहन व्यवहार निगम (जीएसआरटीसी) को 1,600 पूरी तरह तैयार बसें दी थीं। उसे महाराष्ट्र राज्य मार्ग परिवहन महामंडल (एमएसआरटीसी) से भी ऑर्डर मिला है। पिछले महीने ही एमएसआरटीसी ने अशोक लीलैंड को 2,104 वाइकिंग सवारी बसों का ऑर्डर दिया। तमिलनाडु ने भी अशोक लीलैंड को पूरी तरह तैयार अल्ट्रा-लो फ्लोर बसों का ऑर्डर दिया है।
कुमार ने कहा कि राज्य परिवहन विभाग कहीं से चैसि खरीदने और कहीं से बॉडी बनवाने के बजाय एक ही जगह से पूरी तरह तैयार बस खरीदना पसंद करते हैं क्योंकि इससे बसें खरीदते ही इस्तेमाल में लाई जा सकती हैं। अशोक लीलैंड लखनऊ में बस बनाने का कारखाना लगा रही है, जहां बैटरी और डीजल दोनों से चलने वाली बसें बनेंगी।
महाराष्ट्र के रायगड जिले के तलोजा में स्कूल बसों, इंटरसिटी बसों और लग्जरी बसों के लिए बॉडी बनाने वाले एक काराबोरी ने बताया कि लग्जरी और इंट्रा-सिटी बसों के लिए उन्हें लगातार ऑर्डर मिल रहे हैं।