डेटा संरक्षण | संपादकीय / January 22, 2019 | | | | |
अहमदाबाद में वाइब्रेंट गुजरात सम्मेलन को संबोधित करते हुए रिलायंस इंडस्ट्रीज के चेयरमैन मुकेश अंबानी ने व्यक्तिगत डेटा के स्वामित्व से जुड़े ऐसे सवालों की ओर ध्यान आकृष्ट किया जो आने वाले दिनों में नियामकों के लिए महत्त्वपूर्ण विषय हो सकते हैं। अंबानी ने कहा कि नई विश्व व्यवस्था में डेटा की महत्ता पुरानी व्यवस्था में महत्त्वपूर्ण रहे तेल के समान है और यह नई तरह की संपदा है। उन्होंने कहा कि इसी वजह से भारतीय डेटा का नियंत्रण और स्वामित्व भारतीयों के पास होना चाहिए, न कि कंपनियों, खासतौर पर विदेशी कंपनियों के पास। इस मसले को लेकर अंबानी की राय सही है और उन्हें इस बात के लिए बधाई दी जानी चाहिए कि वह निरंतर इस मुद्दे को उठाते रहे हैं कि डेटा स्वामित्व भविष्य में देश की वृद्धि के लिहाज से अहम है। बहरहाल, देश में हालिया नियामकीय और नीतिगत कदमों के संदर्भ में देखे तो कुछ ऐसे सवाल भी हैं जो अंबानी के कदमों से संबंधित हैं।
अंबानी, जियो के भी मालिक हैं जिसने देश के दूरसंचार और डेटा क्षेत्र में उथलपुथल मचा दी है। ऐसे में जब वह कहते हैं कि देश के डेटा पर कंपनियों का नहीं बल्कि भारतीयों का नियंत्रण और अधिकार होना चाहिए तो वह गलत नहीं कहते। यह बात अलग है कि भारतीय और वैश्विक कंपनियों के बीच अंतर रेखांकित किए जाने को यहां उनके द्वारा अपने फायदे के लिए इस्तेमाल की गई बात कहा जा सकता है। परंतु इसे देश में डेटा स्वामित्व की उपभोक्तान्मुखी नीति तैयार करने का न तो आधार माना जा सकता है और न ही माना जाना चाहिए। एक बार जब डेटा स्वामित्व का अधिकार निजी तौर पर भारतीयों को मिल गया है तो यह उन पर छोड़ देना चाहिए कि वे उसका क्या करते हैं। आखिरकार यह उनकी संपत्ति ठहरी। अगर उनको किसी गैर भारतीय कंपनी से अच्छी कीमत या अच्छी सेवा मिलती है तो उसे यह अधिकार उन्हें देने का हक होना चाहिए। हां, ऐसा राष्ट्रीय सुरक्षा को ध्यान में रखकर ही किया जाना चाहिए। यह मुक्त व्यापार का मूलभूत सिद्धांत है जो यहां भी लागू होता है। अन्य क्षेत्रों की तरह यहां भी यह सुनिश्चित करेगा कि उपभोक्ताओं को प्रतिस्पर्धी शक्तियों के बीच उच्चतम संभावित मूल्य प्राप्त हो। इसका विकल्प यह हो सकता है कि प्राथमिकता वाली भारतीय कंपनियों का एक समूह बनाया जाए जो प्रतिस्पर्धा से परे हो ताकि वे उपभोक्ताओं का लाभ ले सकें। डिजिटल क्षेत्र में बॉम्बे क्लब जैसी लॉबीइंग की दलील स्वीकार्य नहीं है।
इस चर्चा का संदर्भ ध्यान देने लायक है। हाल के दिनों में कंपनियों और नियामकों के बीच डेटा के स्थानीयकरण की बात कई बार उभरी है। भारतीय रिजर्व बैंक ने गत वर्ष विभिन्न पेमेंट सिस्टम को आदेश दिया था कि वे अपने डेटा को स्थानीय स्तर पर रखें ताकि केंद्रीय बैंक उसकी बेहतर निगरानी कर सके। यह सुविचारित कदम नहीं था क्योंकि इससे भुगतान तंत्र की लागत में इजाफा होना था और देश के नागरिकों की निजता में कमी भी आनी तय थी। इतना ही नहीं सरकार द्वारा नियुक्त एक समिति ने मांग की कि न केवल भुगतान बल्कि भारतीय नागरिकों से जुड़े काम कर रही तमाम कंपनियों के डेटा सेंटर भारत की सीमा में स्थापित किए जाएं। ऐसा ही नियम ई-कॉमर्स कंपनियों पर भी लागू किया जा सकता है। ये तमाम बातें कारोबार के लिए अस्वीकार्य गतिरोध खड़े करती हैं और भारतीय डेटा के संरक्षण के नाम पर उपभोक्ताओं को ही नुकसान पहुंचाती हैं। ऐसे नियमन के केंद्र में भारतीय उपभोक्ता होने चाहिए, न कि भारतीय कंपनियां या अफसरशाह। सरकार और नियामकों को अंबानी की बातों पर ध्यान देना चाहिए लेकिन उनका क्रियान्वयन इस तरह नहीं किया जाना चाहिए कि केवल भारतीय कंपनियों को लाभ हो।
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