बीएस बातचीत
तीन कृषि कानूनों को वापस लिए जाने के बाद विरोध प्रदर्शन कर रहे किसानों की एक प्रमुख मांग एमएसपी व्यवस्था को कानूनी बनाना है। संजीव मुखर्जी से बातचीत में नीति आयोग के सदस्य रमेश चंद ने इसके विभिन्न पहलुओं के बारे में बताया। प्रमुख अंश…
एमएसपी को कानूनी बनाने को लेकर खजाने पर पडऩे वाले बोझ को लेकर कई आंकड़े आ रहे हैं। आपका क्या अनुमान है?
एमएसपी को कानूनी बनाने पर खजाने पर आने वाली लागत का अनुमान सैद्धांतिक कवायद है। बहरहाल व्यापक रूप से यह अनुमान लगाया जा रहा है कि सरकार द्वारा खरीदे गए कृषि उत्पाद के मूल्य का 40 प्रतिशत बोझ खजाने पर पड़ेगा। और जब तक खरीद की मात्रा नहीं पता चलती, खजाने पर पडऩे वाली वास्तविक लागत का अनुमान लगाना मुश्किल है। वित्तीय वजहों के अलावा एमएसपी को कानूनी बनाने का गंभीर असर कृषि कारोबार में बाजार क्लियरेंस, निजी हिस्सेदारी और आयात व निर्यात प्रतिस्पर्धा पर पड़ेगा।
आप इसे सैद्धांतिक कवायद क्यों बता रहे हैं?
वित्तीय असर एमएसपी के स्तर और उसके खुले बाजार में भाव के हिसाब से पडऩा है। एमएसपी को कानूनी बनाने का तर्क यह है कि मांग और आपूर्ति के आधार पर कीमत क्या होगी और किसानों को मिलने वाले बाजार भाव के बीच अंतर की भरपाई हो। अगर बाजार में प्रतिस्पर्धा कम है या कारोबारियों में साठगांठ है और इसकी वजह से किसानों को उचित बाजार भाव से कम मूल्य मिल रहा है तो उचित कदम उठाने के तर्क बनते हैं। न्यूनतम समर्थन मूल्य का यही मतलब है।
कुछ लोगों का कहना है कि एमएसपी को कानूनी बनाने का मतलब निजी कारोबारियों को पहले से तय दर पर खरीदने से नहीं है। इसका मतलब है कि अगर कीमतें एमएसपी से नीचे जाती हैं तो सरकार हस्तक्षेप की गारंटी देगी। क्या आपको इस अवधारणा में खामी लगती है?
एमएसपी का मकसद यह सुनिश्चित करना है कि किसानों को उचित एवं लाभकारी मूल्य से वंचित न किया जाए। यह दो तरीके से हो सकता है। एक सरकारी हस्तक्षेप से और दूसरा प्रतिस्पर्धी बाजार बनाकर। अगर प्रतिस्पर्धी बाजार उचित और लाभकारी मूल्य देने में असफल होता है तो सरकार को हस्तक्षेप की जरूरत है। वापस लिए गए 3 कृषि कानूनों में कृषि उत्पाद के लिए प्रतिस्पर्धी वातावरण बनाने की व्यवस्था थी, जिससे उचित एवं लाभकारी मूल्य को टिकाऊ आधार पर हासिल किया जा सके और अलाभकारी कृषि उत्पाद मूल्य का टिकाऊ समाधान मिल सके।
एमएसपी को कानूनी बनाने के अलावा क्या संभावित विकल्प हैं, जिससे किसानों को कीमत सुनिश्चित की जा सके?
सरकार ने 3 कृषि कानूनों के माध्यम से बेहतर प्रतिस्पर्धा के लिए कृषि बाजारों को उदार बनाए जाने की कवायद की थी, जिस पर लंबे समय से बहस चल रही थी। इन्हें वापस लिए जाने के बाद प्रधानमंत्री ने विशेषज्ञों व हिस्सेदारों की समिति बनाने की घोषणा की है, जो कृषि के विभिन्न पहलुओं पर विचार करेगी। उसके बाद ही नया खाका आ पाएगा।