अगर वैश्विक बाजार के हालात अस्थिर बने रहते हैं और विदेश में माल भेजने पर कोई प्रतिबंध नहीं लगता है तब देश का गेहूं निर्यात मौजूदा वित्त वर्ष के 70 लाख टन से बढ़कर 2022-23 में एक करोड़ टन के नए रिकॉर्ड को छू सकता है। वैश्विक ट्रेडिंग कंपनियों के अधिकारियों और बाजार पर नजर रखने वालों के मुताबिक रूस-यूक्रेन संकट से भारत के प्रति न केवल वैश्विक खरीदारों का आकर्षण बढ़ा है बल्कि भारतीय गेहूं की कीमतें भी महज 10 दिनों से भी कम समय में 320 डॉलर प्रति टन से बढ़कर 360 डॉलर प्रति टन हो गईं।
खाद्य सचिव सुधांशु पांडेय ने शनिवार को संवाददाताओं से कहा था कि गेहूं का फरवरी के अंत तक निर्यात 66 लाख टन के स्तर तक पहुंच चुका है और मार्च के अंत तक विदेश निर्यात 70 लाख टन के स्तर तक पहुंचेगा। पांडेय ने कहा, ‘भारत वैश्विक बाजार के लिए एक हाजिर बाजार है और हमारा आकलन यह है कि मौजूदा तेजी का दौर आने वाले वक्त में खत्म होता है और रूस के संकट का समाधान भी हो जाता है तब भी कीमतें 330-335 डॉलर प्रति टन से नीचे नहीं जाएंगी जिससे एशिया और अरब देशों में ज्यादा गेहूं का निर्यात होगा।’ अप्रैल-जून 2022 (भारतीय गेहूं के निर्यात के लिए तीन सबसे बेहतर महीने) में संभावना यह है कि 30-40 लाख टन गेहूं का निर्यात हो सकता है और उम्मीद है कि बाद की तिमाहियों में यह रफ्तार बनी रह सकती है। अगर हम 76.42 रुपये प्रति डॉलर विनिमय दर की बात करें तब भारतीय गेहूं के लिए 360 डॉलर प्रति टन की निर्यात दर 2752 रुपये प्रति क्विंटल होती है और 400 रुपये डॉलर प्रति टन के हिसाब से बंदरगाहों पर भारतीय गेहूं की दर 3056 रुपये प्रति क्विंटल होती है।
एक कारोबारी ने कहा, ‘हमारा मोटा अनुमान यह है कि अगर भारतीय गेहूं कि निर्यात दर 360 रुपये प्रति टन है तो मध्य और पश्चिमी भारत में यह मंडी के बार 2100-2300 रुपये प्रति क्विंटल होगी। अगर यह दर आगे 400 डॉलर प्रति टन होती है तब मंडी से बाहर औसतन यह दर 2800-3000 रुपये प्रति क्विंटल होगी।’ एक व्यापारी ने बताया, ‘गेहूं की अगली फसल के बीच अंतर आने वाले 15-20 दिनों में दिखना शुरू हो जाएगा और यूक्रेन से नई फसल जुलाई के वक्त आएगी जिसका पूरा इस्तेमाल होगा क्योंकि यूक्रेन का उत्पादन भी काफी बड़ा है।’
किसानों की बंपर फसल
संकट की वजह से कीमतों में बढ़ोतरी के असर से किसान भी अछूते नहीं हैं। मध्य प्रदेश की कई मंडियों में गेहूं की कटाई से पहले की दर 2015 रुपये प्रति क्विंटल के हिसाब से 2022-2023 के न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) से कम से कम 100-300 रुपये प्रति क्विंटल अधिक है।
मंदसौर मंडी में गेहूं की नई फसलों की कीमत करीब 2200 रुपये प्रति क्विंटल है। वहीं रतलाम की मंडी में कुछ लॉट 2300 रुपये प्रति क्विंटल की दर पर बेची गईं। मंदसौर में एक कारोबारी ने बिज़नेस स्टैंडर्ड से कहा, ‘मध्यप्रदेश के मालवा और निमाड़ क्षेत्र की कुछ मंडियों में नए फसलों की आवक शुरू हो गई है हालांकि मात्रा कम ही है और कीमतें एमएसपी की मात्रा से कीमत अधिक होगी। लेकिन होली के बाद आवक की रफ्तार बढऩे पर यही स्थिति बनी रहेगी या नहीं इसको देखना होगा।’ गुजरात में जहां नई फसलों की आवक शुरू हो गई है वहां की कुछ मंडियों में 2400-2500 रुपये प्रति क्विंटल की दर बोली जा रही है। भारत में अप्रैल-मार्च में 11.1 करोड़ टन गेहूं के फसल की कटाई रिकॉर्ड स्तर पर हुई जो इस साल के लगभग 20 लाख टन से अधिक है।
क्या हैं बाधाएं
वैश्विक परिस्थितियों में अचानक बदलाव से इतर अगले साल 1 करोड़ टन के संभावित निर्यात को हासिल करने में एकमात्र बाधा केंद्र के निर्यात पर प्रतिबंध है ताकि वित्त वर्ष 2023 के 4.44 करोड़ टन के सालाना गेहूं खरीद लक्ष्य को हासिल किया जा सके। रिपोर्ट में कहा गया है कि अगर निजी खरीदार अपनी खरीद बढ़ाते हैं तब केंद्र को गेहूं के 4.44 करोड़ टन लक्ष्य तक खरीदारी करने की जरूरत नहीं होगी।
वैश्विक ट्रेडिंग कंपनी के अधिकारी ने बताया, ‘आमतौर पर केंद्र को बैठ जाना चाहिए और निजी खिलाडिय़ों को गेहूं की पूरी खरीद करनी चाहिए अगर वे एमएसपी की कीमतों के मुकाबले अधिक भुगतान करना चाहते। लेकिन कौन जानता है कि सरकार क्या सोच रही है।’