बीएस बातचीत
बाजार नियामक भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) के प्रमुख के रूप में अजय त्यागी का 4 साल 9 महीने का कार्यकाल उल्लेखनीय और काफी हद तक सफल रहा है। उन्होंने बाजार तंत्र को महामारी से पार पाने में मदद की, आईपीओ से रिकॉर्ड रकम जुटने पर नजर रखी, भेदिया कारोबार पर शिकंजा कसने के लिए तकनीक बेहतर बनाई और बाजार में उतरने वाले लाखों नए निवेशकों की सुरक्षा के लिए जोखिम कम करने की नई व्यवस्था पेश की। त्यागी ने समी मोडक के साथ साक्षात्कार में बाजार से जुड़े तमाम मुद्दों पर अपनी बात रखी। प्रमुख अंश:
स्टार्टअप के आईपीओ की कीमत पर चिंता पैदा हुई हैं। क्या सेबी इसमें दखल देना चाहता है?
बतौर नियामक सेबी मूल्यांकन में न तो दखल देता है और न ही देना चाहता है। दुनिया भर में आईपीओ खुलासा आधारित प्रणाली अपनाते हैं। जहां तक कंपनियों की वृद्घि का सवाल है तो वे घाटे में हैं लेकिन निवेशक उनकी वृद्धि की संभावनाओं को मद्देनजर रखते हुए ही निवेश करते हैं। स्टार्टअप के आईपीओ हाल में ही आने शुरू हुए हैं। यह नए तरीके का निवेश है और निवेशकों को इसकी आदत पड़ रही है। पहले इनमें से कई तकनीकी कंपनियां विदेश में सूचीबद्घता के बारे में सोच रही थीं। यहां सूचीबद्धता से देसी निवेशकों को भागीदारी का मौका मिलता है। हम जैसे-जैसे आगे बढ़ेंगे, नई सीख मिलेंगी। हमने हाल ही में इस बारे में विमर्श पत्र जारी किया है।
विमर्श पत्र से लगता है कि सेबी ऐंकर लॉक-इन, द्वितीयक बिक्री और जुटाई गई नई पूंजी के इस्तेमाल को लेकर चिंतित है?
मैंने पहले ही कहा कि अनुभव और विभिन्न भागीदारों से मिली प्रतिक्रिया के आधार पर आगे नई सीख मिलेंगी। सेबी के लिए सबसे बड़ी चुनौती नियामकीय ढांचे में सही संतुलन कायम करना है। इसे यह सुनिश्चित करना है कि निवशकों के हित सुरक्षित रहें। साथ ही नियम इतने ज्यादा नहीं हों कि कंपनियां सूचीबद्घ ही नहीं होना चाहें।
इस साल आईपीओ के जरिये रिकॉर्ड एक लाख करोड़ रुपये जुटाए गए हैं। सेबी आईपीओ दस्तावेजों की जांच और मंजूरी के भारी बोझ से कैसे निपटा?
सेबी के कर्मचारियों ने ठीक से काम संभाला है। असल में इस साल आईपीओ दस्तावेज जमा कराने में बढ़ोतरी के बावजूद पर्यवेक्षण पत्र जारी करने में लिए जाने वाले औसत दिनों की संख्या घटी है। जो कंपनी बाजार के लिए सही नहीं है, उसके बाजार में दाखिल होने में पर्याप्त बाधा खड़ी कर दी गई हैं। सेबी ऐसी चुनौतियों का व्यवस्था को और सुधारने के एक मौके के रूप में इस्तेमाल करता है।
क्रिप्टोकरेंसी के नियमन को लेकर आपकी क्या राय है?
इस पर सरकार को राय बनानी है। हम सरकार के सामने अपने विचार रख चुके हैं। हमारे विचार हमारे और सरकार के बीच में हैं।
ऐसे म्युचुअल फंड ईटीएफ शुरू किए जा रहे हैं, जिनसे क्रिप्टो में परोक्ष निवेश हो रहा है। क्या सेबी इसे लेकर सहज है?
इसके लिए सरकार की नीति का इंतजार करना ही सही होगा।
सेबी ने टी+1 लागू करने के लिए लंबा समय दिया है। क्या एफपीआई के दबाव की वजह से ऐसा किया गया?
कोई दबाव नहीं है। लेकिन आपको ध्यान रखना होगा कि हम दुनिया के पहले ऐसे देश हैं, जिन्होंने टी+1 अपनाया है। अमेरिका तक में अभी इस पर चर्चा ही चल रही है। हम इसे ऐसे लागू करना चाहते हैं कि यह आसान और सभी को स्वीकार्य हो। टी+1 को फरवरी 2022 से चरणबद्ध तरीके से लागू किया जाएगा।
क्या इस समय एफपीआई प्रवाह को लेकर कोई चिंता है?
चालू वित्त वर्ष में अब तक द्वितीयक बाजार में शुद्ध एफपीआई प्रवाह ऋणात्मक है। इसके बावजूद व्यक्तिगत और घरेलू संस्थागत निवेशकों (डीआईआई) की तुलनात्मक रूप से बड़ी भागीदारी के कारण भारतीय बाजार लगातार लचीला बना हुआ है। फिलहाल इक्विटी में एफपीआई निवेश चिंता की कोई वजह नहीं लगता है।
कंपनियों के चेयरमैन और एमडी के पद अलग-अलग करने की समयसीमा नजदीक आ गई है। क्या इसे फिर बढ़ाया जाएगा?
इस नियम के दायरे में आने वाली कंपनियों को पहले ही पर्याप्त समय दिया जा चुका है। हम उनसे अंतिम तिथि से पहले अनुपालन का आग्रह करेंगे।
म्युचुअल फंड उद्योग का कहना है कि सेबी ने नियम अत्यधिक कड़े कर दिए हैं?
हम चाहते हैं कि म्युचुअल फंड फलें-फूलें। उन्होंने विदेशी फंडों के विपरीत पलड़े के रूप में काम कर हमारे बाजार को स्थिर बनाने में मदद दी है। हमने जो कदम उठाए हैं, उनसे उद्योग को मध्यम से लंबी अवधि में फायदा मिलेगा। आज यह उद्योग 37 लाख करोड़ रुपये की परिसंपत्तियों का प्रबंधन करता है। इसमें करीब 40 फीसदी ओपन एंडेड डेट फंड हैं, जिनमें यूनिटधारक किसी भी समय अपना निवेश भुना सकते हैं। हालांकि उनके पास जो प्रतिभूतियां हैं, उनमें कॉरपोरेट बॉन्ड भी शामिल हैं। भारत में कॉरपोरेट बॉन्ड के बाजार में तरलता नहीं होने की समस्या है। म्युचुअल फंड कारोबार भरोसे और विश्वास का है।
सेबी ने ब्रोकिंग उद्योग को भी कई कड़वी गोलियां निगलने पर मजबूर किया है?
हमने शेयर गिरवी रखने, मार्जिन नियमों और क्लाइंट कॉलेटरल को अलग करने के क्षेत्र में कुछ नियामकीय बदलाव किए हैं। सभी नए नियम वाजिब हैं। मुझे समझ नहीं आता कि इन पर कोई शिकायत कैसे कर सकता है। इन बदलावों से प्रणाली ज्यादा मजबूत हुई है। लोगों के साथ ठगी की आशंका कम हुई है और कारोबारी मात्रा में सुधार हुआ है।
क्या आप एनएसई आईपीओ के बारे में जानकारी देना चाहेंगे?
मैं किसी विशिष्ट मामले पर टिप्पणी नहीं देना चाहूंगा।
सेबी भेदिया कारोबार के लिए सोशल मीडिया का इस्तेमाल कैसे करता है, इसकी आलोचना हो रही है?
हमने बिग डेटा, आर्टीफिश्यिल इंटेलीजेंस (एआई) और मशीन लर्निंग जैसे तकनीकी टूल्स का इस्तेमाल शुरू किया है। हमारी इच्छा ऐसे और माध्यम इस्तेमाल करने की है। जैसे बाजार विकसित होंगे, गलत इरादे वाले लोग सभी तरह के गलत हथकंडे अपनाएंगे, और नियामक के तौर पर हमें एक कदम आगे रहना होगा। जब बात भेदिया कारोबार की हो तो महत्वपूर्ण हिस्सा है ‘टिपर और टिपी’ के बीच संबंध स्थापित करना। आपको ऐसे सभी मामलों से गुजरना होगा जो पहले कभी भी कारोबार से जुड़े नहीं रहे हैं, अचानक भाग्यशाली साबित हुए हैं और अच्छी कमाई शुरू कर रहे हैं। हमारे निगरानी विभाग के विश्लेषणों से ऐसे बदलावों का पता चलता है। तब हम संबंध तलाशने की कोशिश करते हैं। इसके लिए हम सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म का भी इस्तेमाल कर सकते हैं। मेरा मानना है कि विश्लेषण या इस पर आधारित कुछ भी गलत नहीं है। भेदिया कारोबार मामले में, ऐसा कभी नहीं होगा कि कोई अन्य पक्ष को लिखित में यह देगा कि यह जानकारी है, इसका इस्तेमाल किया जाना चाहिए।
क्या यह बड़ा संकट है?
मैं नहीं जानता कि यह कितना बड़ा है, लेकिन हम भेदिया कारोबार को बेहद गंभीर मानते हैं। यह प्रतिभूति बाजार में भरोसे के मूल सिद्घांतों के खिलाफ है। इन सभी लाखों नए निवेशकों के बाजार में प्रवेश करने से निवेशकों का भरोसा बरकरार रखने की जरूरत होगी।
क्या कुछ सूचीबद्घ कंपनियों में अस्पष्ट सार्वजनिक होल्डिंग को लेकर चिंताएं हैं?
सूचीबद्घ कंपनी में किसी शेयरधारक को सार्वजनिक शेयरधारक के तौर पर वर्गीकृत किया जा सकेगा, यदि ऐसे शेयरधारक का संबंध प्रवर्तकों से न हो। तरलता और बेहतर कीमत निर्धारण सुनिश्चित करने के लिए न्यूनतम सार्वजनिक शेयरधारिता मानक पेश किया गया है। उनके अनुपालन पर सेबी और एक्सचेंजों द्वारा नजर रखी जाती है। कोई सूचीबद्घ कंपनी अगर गलत तरीके से शेयरधारकों को श्रेणीबद्घ करती है तो इससे मौजूदा कानून का उल्लंघन होगा और उचित कानूनी कार्रवाई से गुजरना पड़ सकता है।
हाल के वर्षों के दौरान सेबी ने अधिक अधिकार हासिल किए हैं। क्या वे पर्याप्त हैं या और बदलाव लाए जाने की जरूरत है?
मोटे तौर पर कहें तो, हमारे पास मौजूदा अधिकार हमारे प्रवर्तन कार्य के संबंध में पर्याप्त हैं। लेकिन हमारे पास सरकार के लिए कुछ सुझाव हैं। हम यूनिफाइड सिक्युरिटी कोड के निर्माण की दिशा में संभावना तलाश रहे हैं, जिसकी घोषणा बजट में की गई थी।
क्या सिद्घांत-आधारित दृष्टिकोण की दिशा में नियम-केंद्रित नजरिये से बचने के लिए सेबी के पास गुंजाइश है?
एक परिपक्व बाजार में, हर कोई सिद्घांत-आधारित नजरिया पसंद करना चाहेगा। यह बहस हर समय होती रही है क्योंकि इसका संबंध व्यवसाय करने की प्रक्रिया आसान बनाने से है। लेकिन हमने ऐसे मामले भी देखे हैं जिनमें लोगों ने यह कहकर गलत इस्तेमाल या व्यवस्था के साथ गेम खेलने की कोशिश की है कि यह नियमावली में कहां वर्णित है। हम सिद्घांत-आधारित दृष्टिकोण के पक्ष में हैं, लेकिन आपको परिपक्वता और नैतिकता पर अमल करने की जरूरत नहीं है। अक्सर ऐसा नहीं होता है और फिर हम नियम बनाने के लिए बाध्य होते हैं। नियम बनाना जटिल कार्य है।
बड़ी तादाद में नए निवेशकों ने बड़ी गिरावट दर्ज नहीं की है। उनके लिए आप क्या संदेश देना चाहेंगे?
बड़ी संख्या में व्यक्तिगत निवेशक कम ब्याज दरों, अत्यधिक तरलता और वैकल्पिक निवेश अवसरों के अभाव की वजह से इक्विटी बाजार की तरफ आकर्षित हुए हैं। जहां तक प्रतिभूति बाजार में जोखिम प्रबंधन व्यवस्था का सवाल है, वे बेहद मजबूत हैं। उस संदर्भ में, हमने निवेशकों को काफी सहजता और सुविधाएं दी हैं। लेकिन दिन के अंत में, सभी नए निवेशक यह महसूस करते हैं कि कोई निवेश जोखिम से जुड़ा होता है। बाजार नहीं करते हैं, तो इसका मतलब यह नहीं है कि वे और ऊपर, सिर्फ ऊपर ही जाएंगे।
क्या सैट और सेबी में खाली पद आपके कामकाज को प्रभावित कर रहे हैं?
सरकार पहले ही प्रक्रिया शुरू कर चुकी है। हम चाहते हैं कि खाली पदों को जल्द से जल्द भरा जाए। इस दिशा में काफी प्रगति हुई है।
