महाराष्ट्र में पुणे शहर के दक्षिण-पश्चिम में करीब 17 किलोमीटर दूर खडकवासला में राष्ट्रीय रक्षा अकादमी (एनडीए) स्थित है, जो सेना के तीनों अंगों वाला दुनिया का ऐसा पहला सैन्य स्कूल है, जहां कैडेट एक साथ थल सेना, नौ सेना और वायु सेना के लिए प्रशिक्षण प्राप्त करनी की चाह रखते हैं। आस-पास पहाडिय़ों, एक प्राचीन झील और 24.3 डिग्री सेल्सियस के औसत तापमान के साथ यह स्फूर्तिदायक जलवायु वाला एक मनोरम परिसर है, जो 28 वर्ग किमी में फैला हुआ है।
पहाड़ी के ऊपर सिंहगढ़ किला नजर आता है, जिसे 2,000 साल से अधिक पुराना माना जाता है और यह कई लड़ाइयों का स्थल रहा है। कैडेटों के लिहाज से अकादमी से किले तक पूरी साज-सज्जा के साथ पैदल यात्रा और दौड़ लगाना एनडीए में उनकी तीन साल की अनुशासित दिनचर्या और कठोर प्रशिक्षण का हिस्सा होता है।
यह एक ऐसी अकादमी है जिसे उन लड़कों या जैसा कि एनडीए में कहा जाता है ‘छात्र योद्धाओं’ को सैनिक बनाने का गर्व प्राप्त है, जो दिल्ली के जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय से डिग्री और आधुनिक युद्ध की गहरी समझ के साथ पास होकर निकलते हैं।
हालांकि एनडीए की इस दुनिया में अभी तक महिलाएं अनुपस्थित रही हैं। जब से जवाहरलाल नेहरू ने प्रधानमंत्री के रूप में वर्ष 1949 में इसकी आधारशिला रखी थी (अकादमी का उद्घाटन 16 जनवरी, 1955 को हुआ था), कुछेक अकादमिक विषय की अध्यापिकाओं के अलावा एनडीए पूरी तरह से पुरुषों का ही गढ़ बना रहा है। लेकिन अब इसमें बदलाव होने वाला है।
रविवार 14 नवंबर को, जो संयोगवश नेहरू की जयंती है, इतिहास लिखा जाएगा, क्योंकि सर्वोच्च न्यायालय द्वारा केंद्र को बिना किसी और बखेड़े के महिलाओं केलिए अकादमी के द्वार खोलने के लिए कहने के बाद सैकड़ों युवतियां एनडीए की प्रवेश परीक्षा दे रही हैं।
इसका मतलब है कि वर्ष 2022 की शरदकालीन अवधि में एनडीए की पहली महिला कैडेट दिखाई देंगी। इसकी पुष्टि करते हुए रक्षा मंत्रालय के आधिकारिक सूत्र कहते हैं कि लिखित परीक्षा उत्तीर्ण करने और एसएसबी (सेवा चयन बोर्ड) पास करने के बाद, जो संभवत: फरवरी से अप्रैल 2022 को होनी है, चयनित कैडेट जून 2022 तक एनडीए में शामिल हो जाएंगी। एसएसबी की पांच दिवसीय एक गहन आकलन प्रक्रिया होती है, जिसमें बुद्धि, व्यक्तित्व, मनोवैज्ञानिक और समूह परीक्षण शामिल रहते है।
अर्हता प्राप्त करने के लिए कैडेटों को एनडीए की शारीरिक फिटनेस और चिकित्सा मानदंडों – ऊंचाई, वजन, दृष्टि आदि को भी पूरा करना होता है। रक्षा मंत्रालय के आधिकारिक सूत्र कहते हैं ‘शारीरिक और अन्य पहलुओं के संबंध में महिला कैडेटों के मानदंड पहले से ही मौजूद हैं, क्योंकि वे चेन्नई की अधिकारी प्रशिक्षण अकादमी (ओटीए) के एसएसबी को पास करने के लिए इनसे गुजरती रही हैं।’ ओटीए वर्ष 1992 से सेना के अधिकारी संवर्ग में महिलाओं को भर्ती कर रही है और अब तक इसके माध्यम से 1,200 महिलाओं को कमीशन दिया जा चुका है।
हालांकि ओटीए में स्नातक होने के बाद पुरुषों और महिलाओं को लिया जाता है, जबकि एनडीए के लिए कक्षा 12 के बाद से ही प्रवेश हो जाता है (आयु पात्रता 16.5 वर्ष और 19.5 वर्ष के बीच है)। नाम न बताने की शर्त पर सेवारत कुछ सेना अधिकारी कहते हैं कि शारीरिक फिटनेस मानकों को निर्धारित करते समय रक्षा मंत्रालय को इस बात को ध्यान में रखना होगा।
रक्षा मंत्रालय के सूत्रों का कहना है कि पहली महिला कैडेटों के आने में आठ महीने से भी कम समय रह गया है। इस बीच एनडीए आवश्यक बुनियादी ढांचा तैयार करने की प्रक्रिया में है और प्रशिक्षण पाठ्यक्रम पर भी काम कर रही है। कुछ खबरों से यह संकेत मिलता है कि इस अभूतपूर्व बैच में 20 महिला कैडेट शामिल होंगी, लेकिन रक्षा मंत्रालय के सूत्रों ने इसकी पुष्टि नहीं की है।
ओटीए से सबक लिया जा रहा है। और अधिक मजबूत सुरक्षा उपकरण के रूप में रहने के अलग क्वार्टर और शौचालय दिए जाने हैं। इनके अलावा मदद के लिए अतिरिक्त स्टाफ, महिला डॉक्टर और संभवत: महिला प्रशिक्षक भी होंगी। अगर जरूरत पड़ती है, तो इसके लिए अतिरिक्त स्क्वाड्रनों पर भी काम किया जा रहा है। वर्तमान में एनडीए के पास 18 स्क्वाड्रन हैं, जिनमें से प्रत्येक में 110 से 120 कैडेट हैं।
अनुभा राठौर, जो वर्ष 1995 में ओटीए से पास हुई थीं और सेना में पांच साल तक कैप्टन के रूप में सेवा कर चुकी हैं, कहती हैं कि चेन्नई अकादमी में प्रशिक्षण की अवधि और व्यवस्था समान हैं तथा पुरुषों और महिलाओं में कोई भेद-भाव नहीं है। एनडीए में भी लिंग-आधारित भेद-भाव दिखने की संभावना नहीं है। डुंडिगल (तेलंगाना) में वायु सेना अकादमी और एझिमाला (केरल) में भारतीय नौसेना अकादमी भी वर्षों से महिलाओं को प्रशिक्षण दे रही हैं।
हालांकि एनडीए में प्रशिक्षण को और अधिक कड़ा माना जाता है। जीवन रक्षा, हथियार, टेलीफोनी, छद्मावरण, युद्ध और इस तरह के प्रशिक्षण के अलावा, अकादमी में तीन शिविर हैं जो मानव शरीर को उस सीमा तक पहुंचा देते हैं, जिसके बारे में उसे पता ही नहीं होता कि वह इतना सहन करने में सक्षम है। इनमें से चौथे प्रशिक्षण काल (द्वितीय वर्ष) के अंत में आयोजित किया जाने वाला पांच दिवसीय ‘कैंप रोवर’ को इस आयु वर्ग में दुनिया के सबसे कठिन प्रशिक्षण में से एक माना जाता है।