बीएस बातचीत
नरेंद्र मोदी सरकार ने प्रोत्साहन पैकेज के जरिये सूक्ष्म, लघु एवं मझोले उद्योगों (एमएसएमई) को उबारने पर ध्यान दिया है। मेघा मनचंदा और ज्योति मुकुल के साथ साक्षात्कार में केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग और एमएसएमई मंत्री नितिन जयराम गडकरी ने कहा कि भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए लागत घटाकर प्रतिस्पर्धी बने रहना जरूरी है। हालांकि उन्होंने यह स्वीकार किया कि राज्य एवं केंद्र सरकार समेत सभी भागीदार मुश्किल में हैं। बातचीत के अंश :
एमएसएमई की परिभाषा में बदलाव से इस क्षेत्र की समस्याएं किस हद तक दूर होंगी?
इस परिभाषा में पिछला बदलाव 2006 में हुआ था, जिसे उद्योग अड़चन भरा पा रहा था। पहले विनिर्माण एवं सेवा अलग-अलग थे और संयंत्र एवं इस्तेमाल होने वाली मशीनरी के लिए मापदंड अलग-अलग थे। सूक्ष्म उद्योगों के लिए पहले निवेश सीमा 25 लाख रुपये और टर्नओवर 10 लाख रुपये था, जो न के बराबर था। इसे बढ़ाकर एक करोड़ रुपये निवेश और पांच करोड़ रुपये टर्नओवर किया गया है। लघु उद्योग के लिए निवेश सीमा पांच करोड़ रुपये और टर्नओवर दो करोड़ रुपये था, जिसे बढ़ाकर हमने 10 करोड़ रुपये और 50 करोड़ रुपये किया है। इस तरह इसमें 25 गुना बढ़ोतरी की गई है। मझोले उद्योग सबसे महत्त्वपूर्ण हैं। इसमें निवेश 10 करोड़ रुपये और टर्नओवर पांच करोड़ रुपये था। मगर बहुत सी इकाइयां निर्यात करती थीं और इसलिए उन्हें दिक्कत आती थी। अब निवेश सीमा 20 करोड़ रुपये और टर्नओवर 100 करोड़ रुपये करने का फैसला किया गया है। मझोले उद्योग की परिभाषा में बदलाव की मांग की जा रही थी, इसलिए हमने प्लांट एवं मशीनरी में निवेश की सीमा बढ़ाकर 50 करोड़ रुपये और टर्नओवर 250 करोड़ रुपये कर दिया।
क्या निर्यात टर्नओवर को बाहर करने से वे निर्यातक नुकसान में नहीं रहेंगे, जो एमएसएमई से बाहर हैं? इससे कैसे मदद मिलेगी?
एमएसएमई में फुटवियर, हैंडीक्राफ्ट, हैंडलूम आदि के विनिर्माता शामिल हैं। पहले लोग लाभ लेने के लिए पांच कंपनियां खोलते थे, इसलिए सीमा बढ़ाना ज्यादा व्यावहारिक होगा। किसी स्तर पर आपको सीमा तय करनी पड़ती है। अगर कोई जोधपुरी जूती बनाता है और उसका टर्नओवर उस सीमा को पार कर जाता है क्योंकि वह अधिक निर्यात करता है तो उसका एमएसएमई का दर्जा छिन जाता है।
क्या आप उद्योगपति राजीव बजाज से सहमत हैंं कि बड़े उद्योगों को बढ़ावा देने से छोटे उद्योग स्वत: ही आगे बढ़ेंगे?
राजीव बजाज के आधे बजाज स्कूटर निर्यात होते हैं। हाल में उनसे बातचीत में मैंने पूछा कि रुपया गिरने से आपको मदद मिली होगी। उन्होंने स्वीकार किया कि उन्हें फायदा हुआ है क्योंकि जो निर्यात करते हैं उन्हें फायदा होता है और जो आयात करते हैं, उन्हें नुकसान होता है। यह सही है कि बड़े उद्योग अपने कलपुर्जों के लिए एमएसएमई पर निर्भर होते हैं। बड़े उद्योग जितना फलते-फूलते हैं, एमएसएमई को भी उतना ही फायदा मिलता है।
इसका फायदा आपूर्ति शृंखला से जुड़े सभी लोगों को मिलता है।
एमएसएमई के बकाये को लेकर बहुत से आंकड़े हैं और भुगतान में बड़े डिफॉल्ट सरकारी कंपनियों ने किए हैं।
आपने इस समस्या को दूर करने के लिए क्या योजना बनाई है और क्या ‘समाधान’ योजना सफल रही है?
कानूनी दर्जे के बिना समाधान अक्षम है। एमएसएमई का बकाया केंद्र सरकार एवं उसकी कंपनियों और राज्य सकारों एवं उनकी कंपिनयों और प्रमुख उद्योगों पर है। यह राशि करीब पांच लाख करोड़ रुपये होने का अनुमान है। केंद्र सरकार ने फैसला किया है कि केंद्र सरकार एवं उसकी कंपनियों पर बकाये का 45 दिन में भुगतान कर दिया जाएगा। हमने राज्यों से भी बकाया 45 दिन में चुकाने का आग्रह किया है। मैंने बड़े उद्योगों से भी कहा कि वे एमएसएमई का जल्द बकाया चुकाने की कोशिश करें। इस समय हम कोई कड़ा कानून नहीं ला सकते क्योंकि हर कोई मुश्किल में है। हम एमएसएमई को राहत देने के लिए कई विकल्पों पर विचार कर रहे हैं।
अर्थशास्त्रियों ने कहा कि सरकार को तत्काल उन लोगों के हाथ में ज्यादा पैसा देना चाहिए, जो मुश्किल दौर से गुजर रहे हैं। क्या इससे सहमत हैं?
हमारी सरकार ने करीब 35 करोड़ लोगों के जन धन खातों में पैसा जमा किया है। केंद्र सरकार ने गोदाम खोले हैं और दो रुपये की दर पर गेहूं एवं चावल दिए हैं। मगर सभी भागीदार मुश्किल में हैं। कुछ ऐसी राज्य सरकार हैं, जिनके पास अगले महीने वेतन देने के लिए पैसे नहीं हैं। केंद्र सरकार की राजस्व स्थिति भी बहुत अच्छी नहीं है। इसलिए यह स्वाभाविक है कि योजनाएं सरकार के खजाने को ध्यान में रखते हुए तैयार की जाएंगी।
आर्थिक गतिविधियों को बढ़ाने में सड़क क्षेत्र की भूमिका को आप कैसे देखते हैं?
दो साल में 15 लाख करोड़ रुपये की सड़क परियोजनाएं शुरू होंगी। हम विश्व बैंक, एशियाई विकास बैंक, पेंशन एवं बीमा फंड आदि से विचार-विमर्श करेंगे। इससे श्रमिकों, वास्तुकारों और इंजीनियरों को रोजगार मिलेगा। जब उनकी कमाई होगी तो इससे अर्थव्यवस्था को मदद मिलेगी। सड़क क्षेत्र से सरकार को 20 फीसदी राजस्व मिलता है। ऐसे मुश्किल समय में निर्माण उपकरण बनाने वाले उद्योग की बिक्री में 80 फीसदी इजाफा हुआ है। इसकी वजह यह है कि हमने सड़क क्षेत्र में बड़े पैमाने पर परियोजनाएं आवंटित की हैं। नकदी के लिए विदेशी निवेश लाना, लागत घटाना और प्रतिस्पर्धी बनाना बहुत महत्त्वपूर्ण है। इससे ही अर्थव्यवस्था रफ्तार पकड़ेगी।
विदेशी निवेश हासिल करने के अहम मॉडल को फिर से कैसे वजूद में लाएंगे?
एक मॉडल टोल ऑपरेट ट्रांसफर (टीओटी) है। वहीं हाइब्रिड एन्यूटी एवं बीओटी टॉल मॉडल हैं। मैंने महाराष्ट्र के मंत्री के रूप में राजमार्ग क्षेत्र में पीपीपी परियोजनाएं शुरू की थीं। उदाहरण के लिए आप मेरठ-दिल्ली एक्सप्रेस को ही लें। इसके जरिये व्यक्ति 40 से 45 मिनट में पहुंच सकता है, जबकि पहले 4 से 4.5 घंटे लगते थे। आपको टोल मिलता है और अगर मैं इस टोल पर किसी बैंक से पैसा ले लूं। माना कि परियोजना लागत 12,000 करोड़ रुपये है और मैं उन्हें कहता हूं कि आपको मासिक आमदनी मिलेगी और मैं भी साथ-साथ अपनी मरम्मत लागत वसूल लूंगा।
लॉकडाउन और कोविड-19 की वजह से मंदी के कारण इस साल टोल संग्रह पर कितना असर होगा?
इस साल टोल संग्रह करीब 4,000 से 5,000 करोड़ रुपये कम होगा। यह 26,000 से 28,000 करोड़ रुपये रहेगा। हालांकि हमने 40,000 का लक्ष्य तय किया है। कोविड-19 संकट दो या तीन महीने में खत्म हो जाएगा।
भारत की रेटिंग घटाए जाने से एनएचएआई की धन जुटाने की क्षमता पर कितना असर पड़ेगा?
एनएचएआई की रेटिंग एएए है और यह सरकार की गारंटी के बिना भी धन जुटा सकता है। हमारा प्रयास ज्यादा धन जुटाने का है। हम डॉलर और येन में ऋण लेने के पक्ष में बहुुत ज्यादा नहीं हैं क्योंकि हमें यह कर्ज उसी मुद्रा में लौटाना होगा और हमें फॉरेक्स दरों में उतार-चढ़ाव से सुरक्षा के लिए हेजिंग करनी होगी।
क्या आपको कोरोना संकट के कारण विदेशी फंडों, सॉवरिन फंडों या बहुपक्षीय वित्त प्रदाता एजेंसियों के निवेश के तरीके में कोई बदलाव नजर आया है?
इस समय निवेश सुरक्षित निवेश करना चाहते हैं। उन्हें उद्योग एवं कारोबार में निवेश करने में जोखिम नजर आ रहा है, जो हमारे क्षेत्र के लिए एक छिपा वरदान है। हम सुरक्षित हैं और अच्छी बैलेंस शीट रखते हैं, इसलिए निवेशकों को सड़क क्षेत्र में निवेश सुरक्षित नजर आ रहा है।
परिवहन मंत्री के रूप में राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र को लेकर आपका क्या मानना है? आर्थिक गतिविधियां खुलने के बाद बोर्डरों को सील कर दिया गया और यहां तक कि दिल्ली मेट्रो भी बंद है।
प्रत्येक राज्य सरकार को अपनी सीमाएं बंद करने का अधिकार है और कोरोनावायरस के कारण बहुत सी राज्य सरकारों ने ऐसे फैसले किए हैं। हम इन दिक्कतों को दूर करने के लिए राज्यों के साथ बातचीत कर रहे हैं।