भारत में क्रिप्टोकरेंसी पारिस्थितिकी तंत्र को विनियमित करने के लिए एक न्यायसंगत प्रणाली की मांग काफी समय से उठ रही है। हालांकि, भारतीय रिजर्व बैंक के आदेश पर उच्चतम न्यायालय द्वारा रोक लगा देने बाद इस तरह की मांग और अधिक होने लगी है। शीर्ष अदालत ने अनुरूपता (यह कि वांछित परिणाम के लिए की गई यह कार्रवाई जरूरत से ज्यादा कठोर थी एवं इस मामले में विनियमन की आवश्यकता थी) के आधार पर आरबीआई के इस आदेश पर रोक लगाई थी। क्रिप्टोकरेंसी के क्षेत्र में धोखाधड़ी के बढ़ते मामलों और कई पीडि़त नागरिकों द्वारा अदालत के दरवाजे खटखटाने के साथ विशेषज्ञों का मानना है कि इसके लिए एक नियामक तंत्र की तत्काल आवश्यकता है।
नई दिल्ली स्थित साकेत जिला न्यायालय द्वारा पिछले दिनों देश भर के समाचार पत्रों में एक नोटिस के प्रकाशन का आदेश दिया गया था, जिसमें ऑनलाइन क्रिप्टोकरेंसी ट्रेडिंग प्लेटफॉर्म-आईक्यू ऑप्शन द्वारा धोखाधड़ी का शिकार होने वालों को आमंत्रित करते हुए एक क्लास ऐक्शन मुकदमें में शामिल होने की बात की गई थी।
अचिन शर्मा बनाम आईक्यू ऑप्शन यूरोप वाला यह मामला, किसी ऑनलाइन क्रिप्टोकरेंसी ट्रेडिंग प्लेटफॉर्म के खिलाफ होने वाले शुरुआती मामलों में से एक है। दिल्ली के व्यवसायी शर्मा का दावा है कि उन्हें इस मंच पर अपने क्रिप्टोकरेंसी वॉलेट में 320 डॉलर जमा करने के बाद छिपी हुई सुविधा शुल्क के तौर पर अत्यधिक शुल्क लगाया गया। उन्होंने बताया, ‘रुपये जमा के बाद जब मैंने अपना पैसा निकालने की कोशिश की, तो मुझे बताया गया कि मेरे खाते को ‘सत्यापित’ करने की आवश्यकता है।’
शर्मा ने बताया कि जब भी उन्होंने अपने खाते को सत्यापित करने की कोशिश की, तो वेबसाइट में एरर हासिल हुआ। अंत में, जब वेबसाइट ने उनके खाते को सत्यापित किया, तो उनके रुपये निकासी अनुरोध को अस्वीकार कर दिया गया। उनका दावा है कि साइप्रस स्थित कंपनी से उनके द्वारा एवं उनके वकील निपुण सक्सेना द्वारा बार-बार प्रयास करने के बाद एक ही प्रतिक्रिया मिली, कि शर्मा कंपनी के क्लाइंट नहीं हैं।
आईक्यू ऑप्शन का दावा है कि उनके कई देशों में 4 करोड़ से अधिक सत्यापित ग्राहक हैं। हालांकि बिज़नेस स्टैंडर्ड द्वारा संपर्क करने पर कंपनी ने इस मामले पर कोई टिप्पणी करने से मना कर दिया।
पिछले दो वर्षों में, क्रिप्टोकरेंसी से संबंधित कई पोंजी योजनाएं सामने आई हैं। इस तरह का एक और कथित मामला अमित भारद्वाज का है, जिन पर 30 करोड़ डॉलर के घोटाले का आरोप लगाया गया है। वह बहु-स्तरीय विपणन योजनाओं के तहत बिटकॉइन निवेश पर 10 प्रतिशत मासिक रिटर्न का वादा करते थे।
पहले फरार होने और फिर बैंकॉक में साल 2018 में पुलिस द्वारा पकड़े जाने के बाद, उनके खिलाफ चंडीगढ़, मुंबई, पुणे और दिल्ली में चार्जशीट दायर की गई। कुछ दिन पहले बिटकॉइन की कीमत 40,000 डॉलर के पार पहुंच गई थी और इसके बाद इन क्षेत्रों में धोखाधड़ी करने वालों की संख्या तेजी से बढ़ी है। इसके चलते क्रिप्टोकरेंसी के क्षेत्र में बेहतर विनियमन की मांग तेजी से उठी है। डीएसके लीगल में पार्टनर ऋ षि आनंद ने कहा, ‘भारत में क्रिप्टोकरेंसी को विनियमित करने वाला कोई विशिष्ट कानून नहीं है और एक निर्वात की स्थिति बन गई है। इसलिए, ऐसे लेनदेन जोखिम से भरे हैं।’ उच्चतम न्यायालय में एडवोकेट-ऑन-रिकॉर्ड और ‘क्रिप्टोकरेंसी इन इंडिया:नॉट इललीगल बट नॉट क्वाइट लीगल’ के लेखक दिनकर कालरा के अनुसार, क्रिप्टोकरेंसी विनियमन हमेशा ही एक ग्रे क्षेत्र रहा है। वह कहते हैं, ‘कई बिल पेश किए गए, लेकिन कुछ भी ठोस हासिल नहीं हुआ। कई कंपनियों ने सरकार से संपर्क किया है और बताया है कि उन्होंने व्यापार के लिए एक विश्व स्तरीय सेटअप बनाया है, लेकिन सरकार इसपर कोई विचार नहीं कर रही है।’ क्रिप्टोकरेंसी पर प्रतिबंध एवं आधिकारिक डिजिटल मुद्रा विनियमन विधेयक 2019 का मसौदा अभी तक संसद में नहीं लाया गया है। इस विधेयक के तहत क्रिप्टोकरेंसी का उपयोग करने पर 10 साल तक का जुर्माने या कारावास का प्रावधान है।
हालांकि, भारतीय रिजर्व बैंक के सर्कुलर पर शीर्ष अदालत के फैसले को ध्यान में रखते हुए यह विधेयक आनुपातिकता के परीक्षण में भी विफल हो सकता है और वकीलों का कहना है कि शायद इसी वजह के चलते सरकार ने अभी तक इस पर दोबारा विचार नहीं किया है। मसौदा विधेयक के साथ ही साल 2018 में गठित अंतर-मंत्रिस्तरीय समिति की प्रारंभिक रिपोर्ट भी पुनर्विचार की मांग करती है। यह विधेयक मान्यता प्राप्त और विनियमित एक्सचेंजों में क्रिप्टोकरेंसी की बिक्री और खरीद की अनुमति देता है।
हालांकि कुछ कानून निवेशकों को कुछ सुरक्षा प्रदान करने के लिए मौजूद हैं, जैसे- उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, आपराधिक कानून और विदेशी मुद्रा प्रबंधन अधिनियम (लेनदेन को नियंत्रित करने के लिए)। हालांकि, विशेषज्ञों ने बेहतर सुरक्षा के लिए एक विशिष्ट कानून की आवश्यकता पर जोर दिया है।
निशीथ देसाई एसोसिएट्स में लीडर जयदीप रेड्डी का कहना है कि लगभग सभी वित्तीय मध्यस्थ एक नियामक के अंतर्गत आते हैं। एक्सचेंजों और वॉलेट प्रदाताओं के लिए एक समान लाइसेंसिंग पद्धति पेश की जा सकती है, ताकि उन्हें जवाबदेह ठहराया जा सके। इससे आत्मविश्वास बढ़ेगा और बेहतर उपभोक्ता सुरक्षा हासिल होगी।
रेड्डी कहते हैं कि कई एक्सचेंज पहले से ही स्व-नियमन का पालन कर रहे हैं, हालांकि यह और अच्छा होगा यदि इस तरह की आचार संहिता को औपचारिक रूप दिया जाए।