भारतीय फूड एग्रीगेटर कंपनी जोमैटो ने हाल ही में महिला कर्मचारियों के लिए माहवारी अवकाश की घोषणा की, जिसे लेकर इंटरनेट पर अलग-अलग तरह की बातचीत होने लगी। पहले इस तरह की नीतियों पर काम कर चुकी कंपनियों का कहना है कि इन तरह की नीतियों से न तो कारोबार पर असर पड़ता है और न ही महिला कर्मियों की काम करने की क्षमता प्रभावित होती है।
जोमैटो ने 7 अगस्त को कहा कि ट्रांसजेंडरों समेत सभी महिलाएं एक साल में 10 दिन तक का माहवारी अवकाश ले सकती हैं। हालांकि इस तरह की घोषणा करने वाली यह पहली कंपनी नहीं है। स्टील निर्माता टाटा स्टील तथा डिजिटल स्टार्टअप गोजूप भी इससे पहले माहवारी अवकाश की घोषणा कर चुकी हैं। गोजूप में वर्ष 2017 में प्रायोगिक तौर पर शुरू की गर्ईं इस तरह की छुट्टियां साल 2020 में काफी बेहतर तरीके से उपयोग की जा रही हैं। गोजूप के सह-संस्थापक रोहन भंसाली कहते हैं, ‘साल 2017 में हम इसे दूसरी नीतियों की तरह की लेकर आए और उस समय ऐसी घोषणा किसी ने भी नहीं की थी।’ उनका अनुभव बताता है कि इस नीति से कारोबार प्रभावित नहीं हुआ है और महिलाओं सहित पुरुष कर्मियों के बीच भी गर्व की भावना विकसित हुई है।
हालांकि कुछ लोग कह सकते हैं कि छोटे डिजिटल स्टार्टअप के लिए माहवारी अवकाश कारगर हो सकता है लेकिन टाटा स्टील जैसी बड़ी कंपनियां साल 2018 से बीमारी वाली छुट्टियों के साथ माहवारी अवकाश भी उपलब्ध करा रही है। स्टील निर्माता कंपनी ने साल 2018 में यह नीति लागू की थी और प्रत्येक महीने माहवारी के लिए एक अवकाश उपलब्ध कराती है, जिसके लिए महिला कर्मी को केवल अपने सुपरवाइजर को जानकारी देनी होती है और किसी तरह की पूर्व-अनुमति की आवश्यकता नहीं होती। कंपनी फैक्टरी कर्मियों सहित सभी श्रेणियों की महिला कर्मचारियों को यह अवकाश देती है। टाटा स्टील के एक प्रवक्ता ने कहा, ‘हमने इसके दुरुपयोग जैसा कुछ भी नहीं देखा। सभी तरह की नीतियों तथा अवकाश संबंधी प्रावधानों में दुरुपयोग करने की संभावनाएं होती हैं।’ माहवारी अवकाश को लेकर ट्विटर पर इसके दुरुपयोग करने, महिला-पुरुष भेदभाव तथा महिला कर्मियों को मातृत्व अवकाश आदि सुविधाओं से उनकी क्षमता पर असर को लेकर चर्चाएं हो रही हैं। महिला कर्मियों को पहले ही मातृत्व अवकाश तथा दो बच्चों तक उनको पालने के लिए एक साल के शिशु केयर अवकाश दिए जाते हैं। यदि महिला कर्मचारी सरकारी उपक्रम में कार्यरत है तो कर्मचारी कल्याण उपाय के तौर पर छुट्टियों को और बढ़ाया जा सकता है।
वरिष्ठ पत्रकार बरखा दत्त ने 11 अगस्त को ट्वीट किया, ‘सॉरी जोमेटो, आपकी पीरियड लीव गेटोजी-महिलाओं के लिए है। हम सेना में शामिल नहीं होना चाहते, युद्ध की रिपोर्टिंग नहींं करना चाहते, युद्धक विमान में नहीं उडऩा है, अंतरिक्ष में नहीं जाना है, कोई असाधारण काम नहीं करना है, लेकिन माहवारी अवकाश लेना है। प्लीज।’ इस ट्वीट के कारण दत्त को कई महिला कार्यकर्ताओं तथा मासिक धर्म के समय असह्य दर्द से गुजरने वाली महिलाओं के विरोध का सामना करना पड़ा।
मार्च महीने में महिला दिवस पर दत्त ने कांग्रेस नेता शशि थरूर के खिलाफ मोर्चा खोला था। थरूर चेंज.ओआरजी पर अपनी पार्टी के प्लेटफॉर्म द्वारा ‘भारत में प्रगतिशील राजनीति की ओर कदम’ संबंधी याचिका के समर्थन की बात कर रहे थे। इस याचिका में महिलाओं को माहवारी अवकाश देने जैसे प्रस्ताव भी शामिल हैं।
ट्रस्ट फॉर रिटेलर्स ऐंड रिटेल एसोसिएशन ऑफ इंडिया (ट्रेन) की मुख्य कार्याधिकारी अमीषा प्रभु इससे असहमत हैं। वह कहती हैं, ‘मैं नहीं मानती कि महिलाओं की नियुक्ति करते समय किसी बायोलॉजिकल कारक की भूमिका होनी चाहिए। हम कई खुदरा इकाइयों के साथ काम करते हैं और मैंने उन्हें यह कहते कभी नहीं सुना कि वे ‘महिलाओं वाली समस्याओं’ के कारण महिलाओं को नौकरी पर नहीं रखना चाहते।’ ट्रेन रिटेल उद्योग से जुड़े कामगारों के कौशल उन्नयन तथा प्रशिक्षण देने पर काम करती है। प्रभु बताती हैं कि रिटेल कारोबार में यह अनकही समझ के तौर पर विकसित हो चुका है कि आप इन समस्याओं के लिए छुट्टी ले सकते हैं। वह कहती हैं, ‘उन दिनों में असहज एवं बेचैनी के चलते महिलाएं घर पर रहना चाहती हैं। यह काफी अच्छी समझ का उदाहरण है जब वे अपने प्रबंधक से यह साझा करती हैं और घर पर रह सकती हैं।’
हालांकि रिटेल एक ऐसा क्षेत्र है जहां महिलाएं अच्छा प्रदर्शन कर रही हैं, खासकर कपड़ों के शोरूम में, क्योंकि वह महिलाओं से संबंधित क्षेत्र ही है। भंसाली इस बात को लेकर संशय में हैं कि क्या यह सभी संगठनों के लिए उचित नीति है। वह कहते हैं, ‘मैं सभी के लिए इस नीति की अनुसंशा नहीं करूंगा। किसी भी संस्था को देखना होगा कि क्या यह नीति उनके यहां काम करेगी। कोई भी कंपनी इसे पहले प्रायोगिक तौर पर करके देख सकती है कि क्या यह कारगर है।’ भंसाली का अनुभव बताता है कि महिलाओं की कार्य क्षमता तथा माहवारी अवकाश में कोई सह-संबंध नहीं है। वह कहते हैं, ‘साल 2017 से हमारे कर्मचारियों में महिलाओं का प्रतिशत लगातार बढ़ रहा है। इस नीति की वजह से हमने किसी भी तरह महिलाओं की नियुक्तियों को प्रभावित नहीं किया।’
भारत में मासिक चक्र तथा उससे जुड़ी स्वास्थ्य संबंधी बीमारियों को लेकर काफी कम आंकड़े उपलब्ध हैं। दिसंबर 2019 में महिला एवं बाल विकास मंत्रालय से संसद में पूछा गया था कि क्या सरकारी एवं निजी क्षेत्रों में महिला कर्मियों के लिए मासिक चक्र संबंधी किसी नीति पर विचार किया जा रहा है। जुलाई 2019 में स्वास्थ्य मंत्रालय से पूछा गया था कि क्या सरकार देश में बढ़ रहे पॉलिसिस्ट ओवरी सिंड्रोम (पीसीओएस) को लेकर जागरूक है?
लगातार तथा अनिश्चित समय तक काम करने के साथ तनाव की स्थिति, जीवनशैली से जुड़े मामले तथा कुछ आनुवांशिक लक्षण पीसीओएस के चिकित्सकीय कारण माने जा रहे हैं, जिसमें महिलाओं को लगातार 15 दिन तक काफी अधिक मात्रा में रक्तस्राव होता है। इस लेख में शामिल दो कंपनियों का अनुभव महिलाओं द्वारा अवकाश लेने के तरीकों को लेकर अलग-अलग रहा है। टाटा स्टील का कहना है कि करीब 50 फीसदी महिला कर्मचारियों ने कम से कम एक बार इस अवकाश को लिया है। वहीं, भंसाली कहते हैं कि उनके यहां सभी महिलाएं उपलब्ध नहीं थीं।
प्रभु का मानना है कि यह नीति का नहीं, बल्कि कर्मचारी एवं प्रबंधक के बीच समन्वय का मामला है। वह कहती हैं, ‘कई कारणों से महिला या पुरुष कर्मियों को एक महीने में दो बार अवकाश दिया जाता है। कुछ महिलाओं को इसकी जरूरत नहीं होगी लेकिन कुछ ऐसी महिलाएं हैं, जो इस पीड़ा से गुजरती हैं। किसी भी संगठन के लिए अपने कर्मचारियों को समर्थन देना काफी अहम होता है।’ टाटा स्टील जैसी कंपनियों का कहना है कि इसमें आर्थिक तत्त्व भी मौजूद हैं। कंपनी के प्रवक्ता ने कहा, ‘हां, जब कर्मचारी कल्याण सुरक्षित होगा तो इससे एक खुशहाल एवं उत्पादक माहौल विकसित होता है तथा सकारात्मक आर्थिक कारक स्पष्ट होते हैं।’
