अप्रैल की कड़क धूप में पीपल के पेड़ तले बैठा इस्लाम मध्य दिल्ली की ऊंची इमारतों को टकटकी लगाकर ताक रहा है। इन इमारतों से दूर यमुना के किनारे बनी इस्लाम की छोटी सी झुग्गी भी अब उजड़ने वाली है। इस्लाम पिछले 40 साल से दिल्ली में आईटीओ पुल के पास यमुना खादर में खेती करते आए हैं और वहीं उनकी झुग्गी भी है। मगर अब वह खेती छोड़कर मजदूरी के काम की तलाश कर रहे हैं।
इस्लाम की मुश्किल फरवरी में शुरू हुईं, जब करीब 6 एकड़ जमीन पर बोई उनकी गेहूं की फसल को दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए) के बुलडोजरों ने रौंद डाली। वहां बनी झुग्गियां भी उजाड़ दी गईं और चार-पांच झुग्गियां ही बचीं, जिनमें इस्लाम और उनका परिवार रहता है। झुग्गियां उजाड़ने की वजह पूछने पर इस्लाम कहते हैं, ‘आसपास के लोग कह रहे हैं कि यहां पार्क बनेगा, नाव चलेंगी।’
इस्लाम अकेले परेशान नहीं हैं। पिछले नौ साल से यमुना बैंक मेट्रो स्टेशन के पास रहते आए राम प्रकाश की हालत भी ऐसी ही है। उनके आसपास की करीब सभी झुग्गियां उजाड़ दी गई हैं और वह भी अपने जाने के दिन गिन रहे हैं। राम प्रकाश कहते हैं, ‘पहले डीडीए के लोग केवल खेत उजाड़ते थे। अब वे झुग्गियां भी उजाड़ने लगे हैं।’
इस्लाम और राम प्रकाश जैसी कहानी हजारों लोगों की है। संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (यूएनडीपी) द्वारा प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार, यमुना के किनारे डूब क्षेत्र या खादर में करीब 5,000 से 7,000 किसान खेती करते हैं, जिनमें ज्यादातर प्रवासी हैं। यमुना वजीराबाद बैराज से दिल्ली में दाखिल होती है और ओखला बैराज से निकल जाती है। इन दोनों के बीच 22 किलोमीटर तक फैली यमुना नदी के किनारे 24,000 एकड़ जमीन पर ऐसे ही किसान खेती करते हैं। इनमें से भी ज्यादातर किसानों को यहां खेती करते 20 साल से लंबा अरसा हो चुका है। मगर इस्लाम और राम प्रकाश समेत ज्यादातर किसानों के नाम यहां की जमीन नहीं है। कई किसान बिचौलियों से किराये पर जमीन लेकर खेती कर रहे हैं और कुछ जमीन में थोड़ी-बहुत हिस्सेदारी लेकर खेती कर रहे हैं। वास्तव में इस जमीन का मालिक डीडीए है।
डीडीए ने इस्लाम की झुग्गी पर नोटिस लगा दिया है, जिसमें झुग्गी जल्द से जल्द खाली करने के लिए कहा गया है। नोटिस पिछले साल नवंबर में लगाया गया था। इसमें लिखा है, ‘दिल्ली विकास प्राधिकरण को राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) से निर्देश मिला है कि वह यमुना डूब क्षेत्र से सभी प्रकार के अतिक्रमण हटा दे… इसलिए आप सभी डीडीए की जमीन से अपना सारा सामान समय से हटा लें और यमुना डूब क्षेत्र के विकास कार्यों में सहयोग करें। अन्यथा अतिक्रमणरोधी अभियान के दौरान हुई क्षति के लिए आप ही पूरी तरह जिम्मेदार होंगे।’
नदी के चारों ओर कब्जा कर ली गई जमीन फिर हासिल करने के लिए डीडीए ‘पुनर्स्थापना और कायाकल्प’ परियोजना चला रहा है। इसी के तहत इस्लाम की फसल नष्ट करने के बाद डीडीए ने वहां पीपल के पेड़ लगा दिए हैं ताकि फिर से बोआई नहीं की जा सके।
बिज़नेस स्टैंडर्ड ने डीडीए को ईमेल भेजकर इस बारे में सवाल किए मगर कोई जवाब नहीं आया।
यमुना के किनारे खेती कर रहे किसानों की सब्जियां बिकने के लिए आजादपुर मंडी और गाजीपुर मंडी जाती है। दिल्ली में फलों, सब्जियों और फूलों की मांग का बड़ा हिस्सा राम प्रकाश और इस्लाम जैसे किसानों की फसल से ही पूरा होता है। कृषि उपज विपणन समिति (एपीएमसी), आजादपुर के पूर्व सदस्य अनिल मल्होत्रा कहते हैं, ‘सीजन के दौरान इन इलाकों से आने वाला माल दिल्ली की ही मांग पूरी नहीं करता बल्कि कुछ उपज एनसीआर में भी भेजी जाती है।’
पुनर्विकास योजना
इस्लाम के नोटिस में एनजीटी के 2015 के जिस आदेश का जिक्र था, उसके मुताबिक यमुना डूब क्षेत्र की जमीन पर किसी भी प्रकार का अतिक्रमण प्रतिबंधित है और डीडीए को इस क्षेत्र का पुनर्विकास करना होगा। डीडीए का 2023-24 का बजट 7,643 करोड़ रुपये का है, जिसमें 405 करोड़ रुपये यमुना रिवरफ्रंट के पुनर्विकास में खर्च किए जाने की योजना है।
पुनर्स्थापना और कायाकल्प परियोजना पर 928 करोड़ रुपये खर्च होने का अनुमान है। इसमे नदी के किनारे बायोडाइवर्सिटी पार्कों का निर्माण भी शामिल है।
दिल्ली विश्वविद्यालय के सेंटर फॉर एनवायरन्मेंटल मैनेजमेंट ऑफ डिग्रेडेड इकोसिस्टम में प्रोफेसर और यमुना के पुनर्विकास की निगरानी के लिए एनजीटी द्वारा गठित समिति के सदस्य सी आर बाबू ने कहा कि यमुना डूब क्षेत्र में किसानों की खेती सीधे खतरा नहीं है मगर दूसरे तरीकों से परेशानी खड़ी कर सकती है। उन्होंने कहा कि जब खेती की जाती है तो डूब क्षेत्र में पानी सोखने की क्षमता कम हो जाती है और बाढ़ के समय पानी का स्तर और भी बढ़ जाता है।
दिल्ली में बायोडाइवर्सिटी पार्क बनाने के विचार में अहम भूमिका निभाने वाले बाबू के मुताबिक किसान जो उर्वरक और कीटनाशक इस्तेमाल करते हैं, उनसे यमुना नदी में प्रदूषण फैलता है। उन्होंने कहा, ‘ये तत्व भूजल में मिलकर उसे भी दूषित कर देते हैं।’
पर्यावरण बनाम मानवाधिकार
यमुना नदी के पुनरुद्धार और पुनर्विकास का मसला दो पाटों में फंस गया है। एक तरफ पर्यावरण की फिक्र है, जिसकी वजह से नदी का पुनरुद्धार किया जा रहा है। दूसरी तरफ इस तरह की कार्रवाई से यमुना खादर में रहने वाले लोगों की रिहाइश और आजीविका पर खतरा मंडराने लगा है।
हाउसिंग ऐंड लैंड राइट्स नेटवर्क की प्रोग्राम ऑफिसर अनघा जे कहती हैं, ‘किसानों को मनमाने ढंग से बेदखल किया जा रहा है और उनकी फसल बरबाद की जा रही है। अधिकारियों को ‘अतिक्रमण’ के बारे में पिछले कई वर्षों से पता था क्योंकि निवासियों के पास मतदाता पहचान पत्र, ड्राइविंग लाइसेंस जैसे दस्तावेज हैं।’ उनका कहना है कि इस वजह से उस जगह पर किसानों का दावा बनता है मगर उसे माना नहीं जा रहा है।
दिल्ली झुग्गी बस्ती पुनर्वास एवं पुनर्स्थापन नीति, 2015 कहती है कि 2015 से पहले बनी झुग्गी बस्तियों को ‘वैकल्पिक आवास प्रदान किए बिना ध्वस्त नहीं किया जाएगा।’ अनघा कहती हैं कि नीति तो है मगर उसका पालन करने की जरूरत है। उन्होंने कहा, ‘जहां से लोगों को हटाना है, वहां सर्वेक्षण कर पात्रता तय की जाए और पात्र लोगों को वैकल्पिक आवास प्रदान करने के बाद ही बेदखली की जाए। मगर इस प्रक्रिया का पालन ही नहीं किया जा रहा।’
अनघा कहती हैं कि केवल किसान समस्या पैदा नहीं कर रहे हैं। उनका कहना है कि नदी को प्रदूषित करने में बड़ा हाथ उद्योगों का भी है, लेकिन सबसे ज्यादा खामियाजा किसानों को भुगतना पड़ रहा है। मगर बाबू का कहना है कि मुख्य समस्या औद्योगिक प्रदूषण नहीं है क्योंकि शहर में बहुत अधिक उद्योग नहीं हैं। घरों से निकला गंदा पानी और कचरा यमुना में छोड़ा जाना असली और गंभीर समस्या है।
आगे की राह
पर्यावरण बनाम मानवाधिकार का यह झगड़ा पहले ही कानूनी लड़ाई में बदल चुका है क्योंकि यमुना खादर से लोगों की बेदखली को कई अदालतों में चुनौती दी गई है। मगर कई विशेषज्ञों को लगता है कि बीच का रास्ता निकाला जा सकता है।
सी आर बाबू का कहना है कि प्रभावित किसानों की आजीविका के लिए बायोडाइवर्सिटी पार्कों में वेटलैंड का इस्तेमाल मछली पालने के लिए किया जा सकता है। उन्होंने बताया कि विशेषज्ञ समिति ने एनजीटी के समक्ष इसकी सिफारिश भी की है।
प्रोजेक्ट एका फाउंडेशन के साथ इस मसले पर काम करने वाले कानून के छात्र देव पाल मौर्य का कहना है कि किसानों को फलों और सब्जियों के बजाय डूब क्षेत्र में फूल उगाने की अनुमति दी जा सकती है क्योंकि इसकी अच्छी मांग है। उन्होंने कहा कि बायोडाइवर्सिटी पार्कों के रखरखाव में भी उनके कौशल का इस्तेमाल किया जा सकता है।
इधर विशेषज्ञों, डीडीए और नीतियों के बीच फंसे किसान उम्मीद छोड़ चुके हैं। राम प्रकाश को लगता है कि सारी झुग्गियां तोड़ दी जाएंगी। उनके परिवार ने इस सीजन में जमीन पर कुछ नहीं बोया और बच्चों ने भी स्कूल जाना बंद कर दिया। उन्हें पता ही नहीं कि आगे वह क्या करेंगे। पूछने पर वह केवल इतना कहते हैं, ‘हर कोई जिंदा रहने का कोई न कोई तरीका ढूंढ लेता है। हम भी ढूंढ लेंगे।’