दिल्ली उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश यशवंत वर्मा के खिलाफ भ्रष्टाचार और गंभीर कदाचार के आरोपों को लेकर महाभियोग प्रस्ताव सोमवार को लोकसभा और राज्यसभा में पेश किया गया। यह प्रस्ताव उस समय लाया गया जब मार्च में उनके लुटियंस दिल्ली स्थित आवास में आग लगने के बाद, एक स्टोररूम से जली हुई नकदी से भरी बोरियां बरामद हुई थीं।
लोकसभा अध्यक्ष ओम बिड़ला को सौंपे गए महाभियोग प्रस्ताव पर कुल 145 सांसदों ने हस्ताक्षर किए हैं। इसमें विपक्ष और सत्तापक्ष दोनों के नेता शामिल हैं:
प्रस्ताव भारतीय संविधान के अनुच्छेद 124, 217 और 218 के तहत दिया गया है, जो उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति और हटाने से संबंधित हैं।
राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ को सौंपे गए समान प्रस्ताव पर 63 सांसदों ने हस्ताक्षर किए हैं। कांग्रेस सांसद सैयद नासिर हुसैन ने जानकारी दी कि INDIA गठबंधन इस मुद्दे पर पूरी तरह एकजुट है। उन्होंने कहा कि जांच प्रक्रिया अब शुरू होगी और दोष सिद्ध होने पर न्यायाधीश को हटाया जाएगा।
मार्च 2025 में, न्यायमूर्ति वर्मा के सरकारी आवास में आग लगने की घटना हुई थी। आग बुझाने के बाद स्टोररूम से नकदी से भरी और जली हुई बोरियां मिली थीं, जिससे पूरे न्यायिक तंत्र में हलचल मच गई। इसके बाद उच्चतम न्यायालय द्वारा गठित एक आंतरिक जांच समिति ने पाया कि न्यायाधीश और उनके परिवार का उस स्टोररूम पर गुप्त और सक्रिय नियंत्रण था। समिति ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि यह कदाचार इतना गंभीर है कि न्यायाधीश वर्मा को पद से हटाया जाना चाहिए।
जज के खिलाफ महाभियोग की क्या है कानूनी प्रक्रिया ?
भाजपा नेता रविशंकर प्रसाद ने कहा,
“न्यायपालिका की ईमानदारी, पारदर्शिता और स्वतंत्रता तभी सुनिश्चित होगी जब न्यायाधीशों का आचरण उच्चतम स्तर का हो। आरोप गंभीर हैं, इसलिए महाभियोग प्रस्ताव जरूरी था।”
कांग्रेस सांसद के. सुरेश ने कहा कि पार्टी इस प्रस्ताव का पूरा समर्थन करती है और यह कदम लोकतंत्र की रक्षा के लिए उठाया गया है।
केंद्रीय संसदीय कार्य मंत्री किरेन रिजिजू ने भी रविवार को पुष्टि की थी कि सभी प्रमुख दलों की इस मुद्दे पर सहमति है।
न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा ने किसी भी गलत कार्य से इंकार किया है। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट की इन-हाउस जांच समिति की रिपोर्ट के अनुसार, उनके और उनके परिवार के पास उस स्टोररूम पर स्पष्ट नियंत्रण था जहाँ से नकदी मिली। इससे समिति ने निष्कर्ष निकाला कि उनका आचरण न्यायाधीश पद पर बने रहने योग्य नहीं है।
यदि स्पीकर और सभापति दोनों प्रस्तावों को स्वीकार करते हैं, तो अगले चरण में जांच समिति का गठन होगा। समिति की रिपोर्ट के आधार पर संसद दोनों सदनों में दो-तिहाई बहुमत से न्यायाधीश को हटाने का प्रस्ताव पारित कर सकती है।