बहुत पुरानी बात नहीं है जब उद्योग जगत के अंदरखानों और मीडिया में यह चर्चा जोरों पर थी कि उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश में मिलने वाली विभिन्न कर राहत और सुविधाओं के कारण उत्तर प्रदेश के छोटे और मझोले उद्योग वहां चले जाएंगे।
इसके अलावा इन राज्यों में बिजली संकट भी नहीं गहराया है जबकि उत्तर प्रदेश में उद्योगों को बिजली की कमी, खस्ताहाल बुनियादी ढांचा, लालफीताशाही, जटिल कर संरचना और राजनीतिक अस्थिरता से जुझना पड़ता है। हालांकि, अब लगता है कि सूरते हाल बदल रहे हैं।
उत्तर प्रदेश के उद्योग निदेशालय द्वारा कराए गए एक सर्वेक्षण के मुताबिक कोई भी उद्योग पहाड़ी राज्यों में पूरी तरह से स्थानांतरित नहीं हुआ है। कुछ कंपनियों ने अपनी दूसरी फैक्ट्ररी या सहायक इकाइयों की स्थापना इन राज्यों में जरूर की है लेकिन उनके कारोबार का आधार अभी भी उत्तर प्रदेश ही बना हुआ है। सर्वेक्षण के नतीजों को मानें तो उद्योगों ने सिर्फ कर राहत हासिल करने के लिए ही पलायन की है। यह रिपोर्ट केन्द्र को भी सौंपी गई है।
उत्तर प्रदेश में छोटे, लधु और मझोले (एमएसएमई) अपने अस्तित्व को बनाए रखने की कला सीख गए हैं। हालांकि, बेहतर बुनियादी ढांचा, बिजली, विपणन और वित्तीय सुविधाओं के लिए लड़ाई अभी भी जारी है। उत्तर प्रदेश में इस समय 3.5 लाख से अधिक एमएसएमई इकाइयां हैं जबकि पांच साल पहले इनकी संख्या महज 1 लाख थी। ये एमएसएमई इकाइयां ग्रामीण, कस्बाई और शहरी क्षेत्रों के लाखों लोगों को रोजगार मुहैया कराती हैं।
प्रदेश के जिन जिलों में इन इकाइयों की संख्या सबसे अधिक है उनमें कानपुर, मुरादाबाद, लखनऊ, आगरा, फिरोजाबाद, भदोही, मेरठ, अलीगढ़ और गाजियाबाद शामिल हैं। हालांकि यह भी सही है कि एक समय में पूरब का मैनचेस्टर कहे जाने वाले औद्योगिक शहर कानपुर की चमक फीकी पड़ने के पीछे बिजली संकट और सरकार की उपेक्षा को आसानी से समझा जा सकता है। कानपुर आज बीमार इकाइयों और औद्योगिक प्रदूषण से जूझ रहा है।
राज्य में छोटे और मझोले उद्योग मुख्यत: चमड़ा, कागज, चिकन, हस्तशिल्प, मशीनरी, आटो कलपुर्जा, प्लास्टिक, ब्रासवेयर, कपड़ा, कांच का सामान, खाद्य प्रसंस्करण, कालीन, दवा और रसायन के कारोबार से संबंधित हैं। इसके अलावा बनारस की प्रसिद्ध बनारसी साड़ी और लखनऊ के चिकन जैसे परांपरागत उद्योग आज भी अपनी पहचान बनाए हुए हैं।
उत्तर प्रदेश में एमएसएमई को फिर मजबूत बनाने के लिए राज्य सरकार ने क्लस्टर एप्रोच को अपनाने का फैसला किया है। इस योजना के तहत राज्य में 145 औद्योगिक क्लस्टर बनाए जाएंगे। ये क्लस्टर लखनऊ, कानपुर, अलीगढ़, मुरादाबाद, आगरा, भदोही और बरेली जैसे जिलों में बनाए जाएंगे। आधिकारिक सूत्रों ने बताया है कि इस बारे में एक प्रस्ताव मंजूरी के लिए केन्द्र के पास भेजा गया है और ऐसे 80 समूहों के लिए विस्तृत परियोजना रिपोर्ट (डीपीआर) दाखिल कर दी गई है।
क्लस्टर कार्यक्रम के तहत सरकार प्रशिक्षण, विपणन और आसान ऋण जैसी सुविधाओं के अलावा 10 करोड़ रुपये का अनुदान भी देगी। क्लस्टर विकास कार्यक्रम केन्द्रीय एमएसएमई मंत्रालय की एक परियोजना है जिसके तहत एक जैसे उद्योगों के समूह एक क्लस्टर तैयार करते हैं। क्लस्टर को कई सुविधाएं मिलती है जो अकेली इकाइयों के लिए उपलब्ध नहीं हैं।
इस योजना का मकसद प्रौद्योगिकी उन्नयन, नई परियोजनाओं के लिए सुविधा विकास, उत्पादन की प्रक्रिया में सुधार, उत्पादन की गुणवत्ता में सुधार और घरेलू तथा अंतरराष्ट्रीय बाजारों से जुड़ाव उद्योगों की प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा देना है। सरकार अध्ययन टूर, उद्योगों से संबंधित शोध और विकास, सेमिनार और कार्यशाला का आयोजन कर इन उद्योगों की मदद करेगी।
किसी एक उद्योग से संबंधित 100 इकाइयां हैं। जैसे कि भदोही का कालीन उद्योग। बड़ी संख्या में औद्योगिकी इकाइयों के होने के बावजूद इनका क्लस्टर नहीं है और इस कारण इन्हें वे सुविधाएं नहीं मिल पाती हैं जो एक क्लस्टर के लिए तय की गई हैं। इस योजना के तहत औद्योगिक इकाइयां एक सोसाईटी या एक स्पेशल परपस व्हीकल (एसपीवी) तैयार करती हैं जिन्हें मिलने वाली सुविधाओं का लाभ सभी सदस्यों को समान रूप से मिलता है।
सूत्रों ने बताया कि अभी तक मुरादाबाद, आगरा, कानपुर, वाराणसी, बरेली, लखनऊ, मेरठ और अलीगढ़ के करीब 25 संगठनों ने इस तरह के क्लस्टर बनाने की इच्छा जताई है। उदाहरण के लिए उत्तर प्रदेश निर्यात आयोग आयोग चिकन उद्योग के लिए लखनऊ में एक क्लस्टर स्थापित करने की योजना बना रहा है। इसके अलावा प्रौद्योगिकी उन्नयन योजना के तहत सरकार संयंत्र और मशीनरी के लिए दो लाख रुपये का अनुदान देगी जबकि प्रौद्योगिकी के आयात के लिए 2.5 लाख रुपये दिए जाएंगे।
सूत्रों ने बताया है कि उद्योग निदेशालय के पास बड़ी संख्या में ऐसे मामले सामने आ रहे हैं। इस तरह की सुविधाएं अगले वित्त वर्ष के दौरान मिलने की उम्मीद है। इसके अलावा कानुपर स्थित उत्तर प्रदेश लघु उद्योग निगम छोटे उद्योगों को लौह अयस्क, कोयला और अलौह धातुओं जैसे कच्चे माल की आपूर्ति करता है।
आयोग विपणन सुविधाओं की पेशकश भी कर रहा है। बीते वित्त वर्ष के दौरान निगम ने उत्तर प्रदेश के 188 छोटे उद्योगों को 40,000 टन लोहे और इस्पात की आपूर्ति की थी। उद्योग समूहों ने छोटे और मझोले उद्योगों के लिए सस्ती और अबाध बिजली आपूर्ति करने की मांग की है।