केंद्र सरकार ने गुजरात और उत्तर प्रदेश की राज्य सरकारों से कहा है कि वे उन श्रम कानूनों के बारे में बताएं, जिन्हें उन्होंने अध्यादेश लाकर निलंबित करने का प्रस्ताव रखा है।
मई की शुरुआत में यूपी और गुजरात सरकारों ने कुछ प्रमुख श्रम कानूनों को 3 साल के लिए निलंबित करने का प्रस्ताव किया था, जिससे कोविड-19 महामारी के कारण चीन से बाहर निकलने को इच्छुक कंपनियों के निवेश को आकर्षित किया जा सके।
उत्तर प्रदेश सरकार के एक अधिकारी ने नाम सार्वजनिक न किए जाने की शर्त पर कहा, ‘केंद्र सरकार ने जानकरी मांगी है और कहा है कि उन खास श्रम कानूनों का उल्लेख करें, जिन्हें राज्य सरकार ने प्रस्तावित अध्यादेश के माध्यम से निलंबित करने की योजना बनाई है। हमने अपनी प्रतिक्रिया केंद्र को भेजी है, जिसमें ब्योरा दिया गया है।’ अधिकारी ने कहा कि केंद्रीय श्रम एवं रोजगार मंत्रालय से 8 जून को इस सिलसिले में जानकारी मांगे जाने संबंधी पत्र मिला था।
गुजरात सरकार के एक वरिष्ठ अधिकारी ने भी पुष्टि की कि इसी तरह की जानकारी मांगे जाने संबंधी पत्र उन्हें मिला था, जिसका जवाब भेजा गया है। राज्य सरकारों ने कहा है कि प्रमुख श्रम कानूनों में औद्योगिक विवाद अधिनियम 1947 और कॉन्ट्रैक्ट लेबर (नियमन एवं उन्मूलन) अधिनियम 1970 शामिल हैं, जिन्हें अस्थायी ररूप से पूरी तरह से रद्द करने का प्रस्ताव है।
श्रम कानूनों के कुछ अन्य प्रावधान लागू रहेंगे, लेकिन जो कुछ निश्चित कल्याणकारी योजनाओं, लाइसेंसिंग, काम करने की स्थिति की जरूरतों और फैक्टरियों की जांच से संबंधित हैं, उन्हें खत्म करने की मांग की गई है।
दो राज्य सरकारों ने राष्ट्रपति की मंजूरी के लिए मसौदा अध्यादेश भेजा है, जिसे उन राज्यों के राज्यपालों ने मंजूरी दे दी है। श्रम से जुड़े मसले भारत के संविधान में समवर्ती सूची में हैं ऐसे में राज्य अपने कानून बना सकते हैं, लेकिन उनके लिए केंद्र से मंजूरी लेनी होगी, जिससे केंद्र के कानूनों में संशोधन किया जा सके।
केंद्र सरकार से सलाह लेने के बाद राष्ट्रपति उन अध्यादेशों पर अंतिम फैसला करेंगे। राष्ट्रपति का अंतिम फैसला लंबित है और केंद्र सरकार ने श्रम कानून में काट छांट के किसी प्रस्ताव को लेकर अनिच्छा व्यक्त की है।
दो राज्यों द्वारा निवेश आकर्षित करने के लिए श्रम कानून को खत्म करने के प्रस्ताव के बारे में पूछे जाने पर पिछले महीने केंद्रीय श्रम एवं रोजगार मंत्री संतोष कुमार गंगवार ने बिजनेस स्टैंडर्ड से एक साक्षात्कार में कहा था ‘श्रम कानूनों को हटाने का कोई सवाल ही नहीं है। मेरे खयाल से श्रम कानूनों से दूर रहने का प्रस्ताव व्यावहारिक नहीं है।’
भाजपा शासित उत्तर प्रदेश ने मई के पहले सप्ताह में एक अध्यादेश को मंजूरी दी थी, जिसमें राज्य की सभी विनिर्माण इकाइयों को अगले 3 साल के लिए करीब सभी श्रम कानूनों से मुक्त किया गया है। गुजरात सरकार ने भी इसका अनुशरण करते हुए अध्यादेश को मंजूरी दी, लेकिन उन इकाइयों को 1200 दिन की छूट का प्रस्ताव किया, जो नई इकाइयां स्थापित होंगी। मजदूरी, सुरक्षा और महिलाओं व बच्चों से जुड़े प्रावधान बरकरार रखे गए हैं।
बहरहाल अध्यादेशों में उन अधिनियमों का उल्लेख नहीं किया गया है, जिसे राज्य सरकारें अस्थायी समय के लिए वापस लेना चाहती हैं। उदाहरण के लिए यह उल्लेख किया गया है कि महिलाओं के रोजगार से संबंधित विभिन्न श्रम कानून बने रहेंगे, लेकिन यह साफ नहीं किया गया है कि क्या इसमें सभी कानून शामिल हैं। विशेषज्ञों ने आगे कहा कि कंपनियों को कर्मचारी भविष्य निधि योजना और कर्मचारी राज्य बीमा योजना का अनुपालन करना होगा, जिसका संचालन केंद्र सरकार द्वारा होता है, भले ही राज्य सरकार उन्हें 3 साल या उससे ज्यादा समय के लिए रद्द करना चाहती हैं।
कोविड-19 के कारण प्रभावित कारोबार और नौकरियां प्रभावित हुई हैं। इसे देखते हुए दोनों राज्य सरकारों ने निवेश आकर्षित करने के लिए कंपनियों को श्रम कानून से 3 साल के लिए छूट देने के अध्यादेश को सही ठहराया है। उत्तर प्रदेश सरकार ने कहा है कि देशबंदी की वह से उलटा विस्थापत हुआ है और राज्य में उन विस्थापित लोगों को नौकरियों की जरूरत है।
