‘मंथन के बाद अमृत ही निकलता है, जो विष निकलता है शिव उसे पी जाते हैं।’ मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने जब मंत्रिमंडल विस्तार से एक दिन पहले यह बात कही तो वह यह स्वीकार कर रहे थे कि अपने मंत्रिमंडल सहयोगियों के नाम को अंतिम रूप देने में उन्हें भारी दबाव का सामना करना पड़ रहा था। यह तो शुरू से तय था कि बतौर मुख्यमंत्री चौहान को चौथे कार्यकाल में मनचाहे मंत्री नहीं मिल पाएंगे। नाम बाहर आते ही यह बात साबित भी हो गई। रामपाल सिंह, राजेंद्र शुक्ला और गौरीशंकर बिसेन जैसे पुराने सहयोगियों के नाम इस बार मंत्रियों के रूप में नजर नहीं आ रहे हैं। भाजपा सरकार की वापसी में अहम भूमिका निभाने वाले संजय पाठक का नाम भी मंत्रियों की सूची में नहीं था।
सिंधिया का दबदबा
ज्योतिरादित्य सिंधिया, जिनकी बगावत के कारण कमल नाथ के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार गत मार्च में गिरी थी, वह इस मंत्रिमंडल विस्तार के बाद विजेता के तौर पर उभरे हैं। सिंधिया के 11 समर्थकों को मंत्रिमंडल में स्थान मिला है। इन मंत्रियों में महेंद्र ङ्क्षसह सिसोदिया, प्रभुराम चौधरी, प्रद्युम्र सिंह तोमर, इमरती देवी, तुलसी सिलावट और गोविंद सिंह राजपूत पिछली कांग्रेस सरकार में भी मंत्री थे। कांग्रेस से अलग हुए 22 विधायकों में से 14 अब भाजपा की सरकार में मंत्री हैं। राजनीतिक विश्लेषक राकेश दीक्षित कहते हैं, ‘सिंधिया ने भाजपा में आने की पूरी कीमत वसूली है। यह कीमत शिवराज सिंह चौहान को चुकानी पड़ी है। जो भाजपा नेता मंत्री नहीं बन पाए वे आगामी उपचुनाव में पार्टी के हितों के खिलाफ काम कर सकते हैं।’
दीक्षित ने ग्वालियर-चंबल के इलाके में सिंधिया के प्रभाव की बात को नकारते हुए कहते हैं कि यदि ऐसा होता तो 2003, 2008 और 2013 के विधानसभा चुनावों में भी कांग्रेस को उस इलाके में जीत मिली होती। वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक गिरिजा शंकर कहते हैं कि सिंधिया ने जो भी सौदेबाजी की वह सीधे भाजपा के शीर्ष नेतृत्व के साथ की गई। ऐसे में भाजपा के कुछ नेता भले ही नाराज हैं लेकिन वे देरसबेर मान जाएंगे।
उपचुनाव अहम
ग्वालियर-चंबल और मालवा क्षेत्र में ही अधिकांश उपचुनाव होने हैं। इन क्षेत्रों को मंत्रिमंडल में असंगत रूप से ज्यादा प्रतिनिधित्व दिया गया है। मंत्रिमंडल में 11 नए मंत्री ग्वालियर-चंबल इलाके से हैं और यहां से कुल मंत्री 12 हो गए हैं। मालवा से सात नए मंत्री बने हैं और कुल मंत्रियों की तादाद आठ हो गई है। 230 सदस्यों वाली विधानसभा में भाजपा के 107 विधायक हैं और उसे बहुमत हासिल करने के लिए नौ और विधायकों की जरूरत है। आशंका है कि मंत्रिपरिषद में स्थान न पाने वाले भाजपा नेता और सिंधिया के विरोधी नेता उनकी तरक्की बरदाश्त नहीं करेंगे। नरेंद्र सिंह तोमर, जयभान सिंह पवैया, प्रभात झा और नरोत्तम मिश्रा ऐसे ही नेता हैं। चौहान के लिए आगे की राह बहुत मुश्किल है। एक भाजपा नेता कहते हैं कि पाठक और बिसेन पार्टी नेतृत्व से काफी नाराज हैं और यह नाराजगी उपचुनाव में भारी पड़ सकता है।
