केंद्र सरकार सबको शिक्षा उपलब्ध कराने के लिए फिर से एक कैबिनेट नोट की तैयारी कर रही है, जिसमें शिक्षा के मद में केंद्र और राज्यों के वित्तीय अनुपात को आपस में सुविधापूर्ण तरीके से बांटने का उल्लेख होगा। दरअसल केंद्र सरकार 6 से 14 साल तक के बच्चों को स्कूल की ओर रूख कराने के लिए प्रयत्नरत है।
राज्य सरकारों को लगता है कि नई प्रतिबद्धता के कारण उन्हें ज्यादा वित्तीय भार सहना पड़ सकता है।
मानव संसाधन विकास मंत्रालय के एक सूत्र के मुताबिक
कै बिनेट की हामी भरने के बाद शिक्षा के अधिकार विधेयक को बजट सत्र में लाया जा सकता है, जिसमें 6 से 14 साल तक के बच्चों को मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा उपलब्ध कराने का प्रावधान है।
मंत्रालय के एक उच्चाधिकारी के मुताबिक राज्यों का वित्तीय अनुपातों को लेकर चिंतित होना सही नहीं है। दरअसल केंद्र और राज्यों के बीच लागत का विभाजन कर लिया जाएगा। अभी इस लागत के अनुपात तय नहीं किये गए हैं, लेकिन केंद्र राज्यों को इस मद में हरसंभव मदद देगी। लागत को लेकर एक सुविधाजनक और आम राय पर अनुपात तय कर लिया जाएगा। उनके मुताबिक सर्व शिक्षा अभियान के तहत प्राथमिक शिक्षा कार्यक्रम को कार्यान्वित किया जा चुका है। इसलिए जब इस नये विधेयक को लाया जाएगा, तो इस तरह की कोई समस्या नहीं आएगी। सर्व शिक्षा अभियान स्कूलों में 85 प्रतिशत बुनियादी ढांचों का निर्माण करने के लिए सक्षम है। इस तरह की प्रक्रियाओं का मुख्य उद्देश्य राज्यों को सुविधा प्रदान करना ही तो है।
इस विधेयक के तहत 6 से 14 साल तक के बच्चों को अनिवार्य शिक्षा देने क े लिए नामांकित किया जाएगा। इस विधेयक में शिक्षा को एक अधिकार के रूप में पेश किया जाएगा, जिससे बच्चों की शिक्षा पर मां-बाप को खर्च का निर्वहन नहीं करना पड़ेगा। इसके तहत मां- बाप को वे हर सुविधाएं मुहैया कराई जाएगी, जो बच्चों के पढ़ाई को जारी रखने में बाधक होगी। साथ हीं बच्चों के नामांकन और स्क्रीनिंग शुल्क को भी समाप्त करने का प्रावधान हो सकता है। इस विधेयक में बच्चों को शिक्षा उपलब्ध कराना माता-पिता या अभिभावक की जिम्मेदारी घोषित की जाएगी, जो अनिवार्य होगा।
इस विधेयक के तहत राज्यों को तीन साल के अंदर बच्चों के घर के नजदीक स्कूल की व्यवस्था करनी होगी। अगर ऐसा संभव न हो, तो स्कूल तक पहुंचने के लिए यातायात की व्यवस्था करनी होगी। इस विधेयक के तहत बच्चों को दंड देना वर्जित होगा।
