मध्य प्रदेश में लालफीताशाही से राज्य के मंत्री परेशान हैं। बीते साल विशेष आर्थिक क्षेत्र का दर्जा हासिल करने वाले क्रिस्टल आईटी पार्क इंदौर के निजीकरण की प्रक्रिया अभी भी अधर में लटकी हुई है।
कैबिनेट दर्जे वाले मंत्री ने बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया कि नौकरशाही सरकार के लिए चीजों को मुश्किल बनाने में लगी हुई है। मंत्री ने कहा कि उन्होंने इंदौर के प्रमुख बिजनेस लोकेशन में स्थित बहुमंजिला आईटी पार्क के निजीकरण की उम्मीद ही छोड़ दी है। इस आईटी पार्क की कीमत कई करोड़ रुपये आंकी जा रही है।
उन्होंने बताया कि ‘इस मसले पर नौकरशाही की बादशाहत है। किसी न किसी वजह से वे हर बार निजीकरण की प्रक्रिया को पीछे ढकेल देते हैं।’क्रिस्टल आईटी पार्क को सेज का दर्जा मिले हुए करीब एक साल बीत चुका है लेकिन राज्य सरकार अभी तक पार्क के निजीकरण पर कोई फैसला नहीं कर सकी है।
स्थिति की गंभीरता का अंजादा इस बात से लगाया जा सकता है कि कोई भी साफ्टवेयर कंपनी पार्क में एक इंच जमीन लेने के लिए आगे नहीं आई है जबकि पार्क को बने हुए डेढ़ साल हो चुके हैं। पूरे भवन में करीब 5.5 लाख वर्ग फीट जगह है।
उन्होंने कहा कि ‘मैंने निजी क्षेत्र की दो बड़ी कंपनियों को आमंत्रित किया था। उन्होंने भवन के अधिग्रहण की योजना को लगभग अंतिम रूप दे दिया था लेकिन हमारी नौकरशाही के तो अलग ही अंदाज हैं। उन्हें तो बस देरी करनी है।’ भानवारकौन में इंदौर विश्वविद्यालय के करीब स्थित इस आईटी पार्क में 44 करोड़ रुपये का निवेश किया जा चुका है और कुल प्रस्तावित निवेश 80 करोड़ रुपये का है।
लेकिन अभी तक यहां किसी स्थानीय कंपनी ने भी अपना डेरा नहीं जमाया है। इससे पहले 2006 में इंदौर स्थित औद्योगिक केन्द्र विकास निगम ने पार्क में टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज (टीसीएस), विप्रो, एसकेआईएल और इंफोसिस जैसे आईटी दिग्गजों को पार्क तक लाने की कोशिश की थी। निगम पार्क की नोडल एजेंसी है।उद्योग सूत्रों ने बताया है कि ‘भूखंड का आकार भवन की कीमत देरी की प्रमुख वजह है। इसकी कीमत 60 करोड़ रुपये है।
जबकि आईटी पार्क की कुल कीमत 150 करोड़ रुपये के करीब होनी चाहिए। इस भवन के डिजायन में कुछ दिक्कत है इसलिए आखिरकार भवन को गिराना ही पड़ेगा। इसलिए शहर के प्रमुख स्थान पर स्थित इस जमीन को स्थानीय रियल एस्टेट डिवेलपर्स ले सकता है।’ बताया जाता है कि पूर्ववर्ती डिजायन के मुताबिक बेसमेंट में दो मंजिलें बननी थीं जबकि आठ ऊपर जबकि बाद में इसे बदलकर बेसमेंट में एक और ऊपर नौ मंजिल कर दिया गया। इससे सरकार को अतिरिक्त खर्च उठाना पड़ा।
नौकरशाही की राय थोड़ी अलग है। निजीकरण के मामले से करीब से जुड़े एक सरकारी अधिकारी ने बताया कि ‘आईटी पार्क का भवन अभी विवादों में है। डिवेलपर्स ने पैनल कार्रवाई के खिलाफ अदालत में याचिका दायर की है। ऐसे में नौकरशाही बोलीदाता की छंटनी कैसे कर सकती है, यदि वादी जीत जाता है तो जिम्मेदार कौन होगा?’