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मोहल्ला क्लिनिक होंगे असरदार!

Last Updated- December 14, 2022 | 11:07 PM IST

करीब एक दशक तक ‘मोहल्ला क्लिनिक’ दिल्ली में आम आदमी पार्टी (आप) की सरकार की सफलताओं में गिना जाता रहा। इस सरकार ने प्राथमिक स्वास्थ्य सेवा को यहां के निवासियों के लिए ज्यादा सुलभ बनाया और इस साल फरवरी में अरविंद केजरीवाल को फिर से सत्ता में वापस लाने में मदद की है। लेकिन इसके बाद फिर कोविड-19 का दौर आ गया। मोहल्ला क्लिनिक ने मध्य सितंबर से कोविड-19 के लिए लोगों की जांच शुरू कर दी। लेकिन पिछले छह महीनों में ये प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र जांच के लिए तैयार नहीं दिखे और इसी वजह से कोरोनावायरस के खिलाफ  लड़ाई में इनकी स्थिति बेहद खराब है।  
10 सितंबर से पहले, पश्चिमी दिल्ली के पीरागढ़ी इलाके में केवल एक मोहल्ला क्लिनिक ही कोविड मरीजों की जांच कर रहा था। 30 जून से पहले इसने 1,500 से अधिक लोगों की जांच की। पीरागढ़ी में क्लिनिक के बाहर खड़ी 55 साल की रीना देवी कहती हैं, ‘मैं किसी भी दूसरी क्लिनिक में जाने से डरती हूं क्योंकि अगर मैंने कोविड-19 की जांच कराई तो मुझे किसी क्वारंटीन सेंटर में भेजा जा सकता है। कौन जानता है कि वहां मेरा क्या होगा?’ यह क्लिनिक रैपिड ऐंटीजन और सीरोलॉजिकल जांच कराता है। यहां रोजाना 100 लोगों की जांच का लक्ष्य रखा गया है। सितंबर के मध्य तक इसने 70 सीरोलॉजिकल जांच की है। क्लिनिक में मौजूद जिला निगरानी अधिकारी और राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन से जुड़ी डॉक्टर अलका चौधरी कहती हैं, ‘यहां दिन में 200 से अधिक जांच करने के लिए संसाधन हैं, लेकिन लोगों की भागीदारी कम देखी जा रही है।’
मोहल्ला क्लिनिक में जांच दो शिफ्ट में होती है, यानी सुबह सुबह 7 से शाम 7 बजे तक खुले रहने वाली क्लिनिक में सुबह 9 बजे से 12 बजे तक जांच होती है और सुबह 8 से दोपहर 2 बजे तक चलने वाली क्लिनिक में जांच दोपहर 2 बजे से शाम 5 बजे तक होती है। मोहल्ला क्लिनिक के केंद्रीय अधिकारी शैली कामरा कहते हैं, ‘हम अधिकतम केंद्रों में जांच कराने की योजना बना रहे हैं।’ 2015 के बाद से जब आप सत्ता में आई तब उसने अपने वादे के मुताबिक 1,000 मोहल्ला क्लिनिकों में से 484 का निर्माण किया। फिलहाल करीब 450 क्लिनिक चालू हैं।  हालांकि कोरोनावायरस संकट बढऩे पर सरकार ने क्लिनिकों में जांच शुरू नहीं की। दिल्ली में संक्रमण के मामले बढऩे के साथ ही लोगों ने बेड, वेंटिलेटर और ऐंबुलेंस की कमी की शिकायत करनी शुरू कर दी।
मोहल्ला क्लिनिक के एक डॉक्टर कहते हैं, ‘जब 2 मार्च को एक व्यक्ति संक्रमित पाया गया तब हम सभी अपनी सुरक्षा को लेकर चिंतित थे लेकिन सरकार ने हमें व्यक्तिगत सुरक्षा उपकरण किट नहीं दिए। हम लगभग छह महीने तक अपने जीवन को खतरे में डालकर काम करते रहे।’ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जब 24 मार्च को देशव्यापी लॉकडाउन की घोषणा की उसके बाद से प्राथमिक स्वास्थ्य सेवा बेहद प्रभावित हुई और करीब 150 से अधिक मोहल्ला क्लिनिकों के बंद होने की सूचना मिली थी। चालू क्लिनिकों की संख्या में और कमी आई जब 27 मार्च को मोहल्ला क्लिनिक के डॉक्टर संक्रमित पाए गए। इन वजहों से सरकारी अस्पतालों की तृतीय श्रेणी पर दबाव बढ़ गया।
मई-जून में राजधानी में संकट और बढ़ गया और दिल्ली में राज्य सरकार ने अस्पतालों की खिंचाई की और साथ ही मरने वालों की तादाद बताने और दिशानिर्देशों का उल्लंघन करने के लिए नोटिस जारी किए गए। आप सरकार ने ही एक विवादास्पद आदेश भी जारी किया जिसमें केवल दिल्ली के ही निवासियों को अस्पताल में भर्ती होने की अनुमति दी गई और इस तरह अस्पतालों में प्रवेश प्रतिबंधित कर दिया गया। हालांकि इस आदेश को उप राज्यपाल ने अवैध बता दिया। सर्वोच्च न्यायालय की आलोचना के बाद दिल्ली सरकार ने हस्तक्षेप करने के लिए केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से संपर्क किया।
अब आप सरकार ने अपना पूरा ध्यान मोहल्ला क्लिनिकों पर देना शुरू कर दिया है और इसके लिए सरकार ने बाजारों और बस स्टैंडों पर जांच शिविर लगाना शुरू कर दिया क्योंकि कुछ हफ्ते तक संक्रमण के मामले में कमी आने के बाद अब रोजाना के मामलों में फिर से तेजी देखी जा रही है। मोहल्ला क्लिनिक के डॉक्टरों का कहना है कि उन्हें सुरक्षात्मक किट के अलावा कम भीड़ वाली जगहों की कमी की वजह से भी अपनी सुरक्षा की चिंता सता रही है। दोहरी शिफ्ट में भी काम करने से भी मदद नहीं मिल रही है।
बिज़नेस स्टैंडर्ड ने राष्ट्रीय राजधानी में 12 सामुदायिक क्लिनिकों का दौरा किया। ज्यादातर स्थानों पर डॉक्टरों ने मास्क, दस्ताने और सैनिटाइजर की कमी के बारे में शिकायत की। उन्होंने कहा कि ऐसी स्थिति में काम करते वक्त शारीरिक दूरी का मानदंड भी पर्याप्त नहीं है। पश्चिमी दिल्ली के एक डॉक्टर का कहना है, ‘सरकार क्लिनिक का इस्तेमाल जांच के आंकड़े बढ़ाने के लिए कर रही है। दिल्ली की संक्रमण दर को कम करने के लिए वे हमें खतरे में डाल रहे हैं। ऐसी छोटी जगह में भीड़ का प्रबंधन करना मुश्किल है।’ दिल्ली सरकार ने 3 अक्टूबर को कोविड-19 के लिए 39,306 जांच कराई जिसमें से 5.74 फीसदी मामले पॉजिटिव निकले। बार-बार दिल्ली सरकार और आप से फोन कॉल और टेक्स्ट मेसेज के जरिये संपर्क करने की कोशिश की गई लेकिन कोई जवाब नहीं मिल पाया।
वेल्लोर के क्रिश्चियन मेडिकल कॉलेज से सेवानिवृत्त प्रोफेसर जैकब जॉन कहते हैं, ‘दिल्ली सरकार हर पखवाड़े जांच की रणनीति बदलती रही है लेकिन यह वायरस से दो कदम पीछे ही रही है। सरकार मार्च में लोगों को मोहल्ला क्लिनिकों में जाने के लिए कह सकती थी जब दिल्ली में संक्रमण बढऩे की शुरुआत हुई थी। हालांकि अब यह सही वक्त है जब क्लिनिकों का सही इस्तेमाल हो सकता है पर जांच की सही व्यवस्था दुरुस्त होनी जरूरी है।’
जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में सेंटर ऑफ सोशल मेडिसन ऐंड कम्युनिटी हेल्थ में प्रोफेसर रितु प्रिया मेहरोत्रा ​​का कहना है कि मोहल्ला क्लिनिकों में कोविड जांच शुरू करने का फैसला स्वागत योग्य था लेकिन रैपिड ऐंटीजन जांच के गलत नतीजे चिंता का विषय है। मेहरोत्रा कहती हैं, ‘दिल्ली को जांच करने में केरल मॉडल का अनुसरण करना चाहिए जिसमें स्वास्थ्य कार्यकर्ता की सहायता करने के लिए नागरिकों को आमंत्रित किया गया था।’

First Published - October 4, 2020 | 10:53 PM IST

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