विश्व के दो मुख्य बाजार और शानदार प्रदर्शक भारत और अमेरिका ने पिछले महीने के दौरान अलग अलग प्रदर्शन दर्ज किए। नैशनल स्टॉक एक्सचेंज (एनएसई) का निफ्टी 50 सूचकांक 26 सितंबर को बनाए अपने 26,216 के ऊंचे स्तर से 5 प्रतिशत गिर गया है। इसके विपरीत अमेरिका में एसऐंडपी 500 समान अवधि के दौरान 2 प्रतिशत तक चढ़ा है और उसने कई नए ऊंचे स्तर बनाए हैं।
शुक्रवार को एसऐंडपी 500 और डाउ जोंस, दोनों ने लगातार छठे सप्ताह तेजी दर्ज की, जो 2023 के आखिर से सबसे लंबी तेजी थी। इसके विपरीत घरेलू निफ्टी और बीएसई के सेंसेक्स ने लगातार तीसरे सप्ताह गिरावट दर्ज की, जिससे उसमें अगस्त 2023 के बाद से सबसे लंबे समय तक कमजोरी का रिकॉर्ड बना।
हालांकि भारत और अमेरिका एक-दूसरे के साथ कदम से कदम मिलाकर नहीं चल रहे हैं, लेकिन महामारी के बाद से दोनों काफी हद तक एक-दूसरे के साथ कदम से कदम मिलाकर चल रहे हैं।
तो फिर हाल में पैदा हुए इस मतभेद का कारण क्या है?
अमेरिकी बाजारों में तेजी को लचीली अर्थव्यवस्था, फेडरल रिजर्व द्वारा ब्याज दरों में कटौती तथा मोटे तौर पर सकारात्मक आय रिपोर्टों से समर्थन मिला है। दूसरी ओर, भारत में हाल की मंदी का कारण विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (एफपीआई) द्वारा 9 अरब डॉलर से अधिक की निकासी, बड़ी कंपनियों की निराशाजनक आय और अंतर्निहित आर्थिक गति की मजबूती पर संदेह है।
मैक्वेरी द्वारा पिछले सप्ताह जारी एक रिपोर्ट में कहा गया, ‘भारत के इक्विटी बाजारों को तिहरी चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है- कमजोर सकल घरेलू उत्पाद वृद्धि, ऊंची ईपीएस उम्मीद (17 प्रतिशत) और ऐतिहासिक तौर पर ऊंचा मल्टीपल (23 गुना)।’
विदेशी पूंजी की निकासी घरेलू मांग को बढ़ावा देने के लिए चीन द्वारा उठाए गए नीतिगत उपायों के अनुरूप है, जिसके कारण स्थानीय शेयरों में 30 प्रतिशत की वृद्धि हुई है – जिनमें से अधिकांश अभी भी 15 गुना के पीई मल्टीपल से नीचे कारोबार कर रहे हैं।
विश्लेषकों ने चेतावनी दी है कि चीन की तुलना में भारत का अपेक्षाकृत ऊंचा मूल्यांकन एफपीआई प्रवाह को कम कर सकता है, जिससे वैश्विक और उभरते बाजारों के मुकाबले भारत के अल्पावधि प्रदर्शन पर नकारात्मक असर पड़ सकता है।