नेपाल में चल रही राजनीतिक हलचल का असर भारतीय परियोजनाओं पर भी दिखने लगा है।
नेपाल के प्रधानमंत्री पुष्प कमल दहल ‘प्रचंड’ के इस्तीफे के बाद से ही नेपाल में अस्थिरता का माहौल है। इस परियोजना से जुड़े अधिकारियों ने बताया कि वहां के हालात के कारण भारत-नेपाल सीमा पर प्रस्तावित 6,000 मेगावाट क्षमता वाली पंचेश्वर बांध परियोजना टल सकती है।
प्रंचड के इस्तीफे के बाद एक अधिकारी ने बताया, ‘जहां पंचेश्वर बांध परियोजना की बात है तो नेपाल के मौजूदा हालात देखते हुए इसके भविष्य पर कुछ भी कहना मुमकिन नहीं है।’
पिछले साल नवंबर में विस्थापित हुए लोगों की समस्या को समझने के लिए प्रचंड टिहरी बांध देखने आए थे और उसके बाद उन्होंने पंचेश्वर परियोजना शुरू करने में दिलचस्पी दिखाई थी। वह बांध के पावरहाउस में भी गए थे। यह पावरहाउस एशिया में सबसे ऊंचा पावरहाउस है।
टिहरी घूमने के बाद प्रचंड ने उत्तराखंड के मुख्यमंत्री भुवन चंद्र खंडूड़ी के साथ लंच भी किया था। इसी दौरान दोनों नेताओं ने पंचेश्वर बांध की परियोजना के बारे में विस्तार से बातचीत की थी। पंचेश्वर परियोजना भारत और नेपाल द्वारा मिलकर बनाई जा रही है। इस परियोजना पर लगभग 30,000-40,000 करोड़ रुपये लागत आने का अनुमान है।
उस समय प्रचंड ने खंडूड़ी से और भी कई पनबिजली परियोजनाओं पर साथ काम करने की इच्छा जताई थी। दिलचस्प बात यह है कि आमतौर पर बड़े बांधों का विरोध करने वाले उत्तराखंड ने पंचेश्वर परियोजना को एक अपवाद करार देते हुए इसके लिए अपनी मंजूरी दे दी थी।
इस बांध को विकसित करने के लिए पंचेश्वर विकास प्राधिकरण के तहत नेपाल और भारत के वरिष्ठ अधिकारियों की एक टीम का गठन किया गया था। इस बांध के लिए विस्तृत रिपोर्ट बनाने वाली समिति में राज्य के ऊर्जा सचिव भी शामिल हैं। इस परियोजना को 1996 की महाकाली संधि के तहत प्रस्तावित किया गया था।
शुरुआत में नेपाल में माओवादी सरकार बनने के साथ ही इस बांध परियोजना के भविष्य पर सवाल उठने लगे थे। लेकिन प्रचंड की भारत यात्रा के बाद इस परियोजना पर छाए आशंका के बादल काफी हद तक छंट गए थे। अधिकारियों ने बताया कि अब नेपाल के हालात और बनने वाली सरकार पर ही इस परियोजना का भविष्य निर्भर करेगा।
टिहरी बांध परियोजना से तीन गुना ज्यादा बड़ी पंचेश्वर परियोजना पिथौरागढ़ और चंपावत जिले के साथ ही नेपाल से सटे कुछ इलाके तक फैलेगी। इस परियोजना में 12 इकाइयां हैं और प्रत्येक इकाई की क्षमता 540 मेगावाट है। इस परियोजना के कारण पिथौरागढ़ से कई हजार लोगों के विस्थापित होने की आशंका है।
इस परियोजना का 80 फीसदी हिस्सा भारत में और बाकी हिस्सा नेपाल में होगा। इस प्रस्तावित साइट पर दो भूमिगत बिजली परियोजनाएं भी होंगी। माना जा रहा है कि पंचेश्वर बांध की ऊंचाई 238 मीटर से बढ़ाकर 315 मीटर कर दी गई है।
इसके साथ ही इस परियोजना के लिए एक बढ़ा सा जलाशय भी बनाने की योजना है और इसके लिए परियोजना के आसपास के लगभग 100 गांवों की जमीन ले ली जाएगी। लेकिन इस मामले से जुड़े सूत्रों का कहना है कि जितनी बड़ी यह परियोजना है उसके मुकाबले विस्थापित होने वाले लोगों की संख्या काफी कम है।
राज्य के इन दोनों जिलों में काफी भूकंप आते रहते हैं। हालांकि इस परियोजना पर भी टिहरी परियोजना की तरह पर्यावरणविदों की भौंहे टेढ़ी हो रखी हैं। पर्यावरणविदों का तर्क है कि उन्हें दूसरी टिहरी नहीं चाहिए।
भारत और नेपाल मिलकर बना रहे हैं यह परियोजना
परियोजना पर आएगी 30,000-40,000 करोड़ रुपये की लागत
उत्तराखंड के पिथौरागढ़ और चंपावत जिले में प्रस्तावित थी यह परियोजना
80 फीसदी हिस्सा भारत और बाकी हिस्सा होगा नेपाल में
राज्य और नेपाल के वरिष्ठ अधिकारियों की टीम तैयार क रेगी विस्तृत रिपोर्ट
परियोजना के जलाशय के लिए आसपास के 100 गांवों की जमीन ली जाएगी
पर्यावरणविदों ने किया परियोजना का विरोध, कहा नहीं चाहिए दूसरी टिहरी
परियोजना के तहत दो भूमिगत पनबिजली परियोजनाओं का विकास भी किया जाएगा
