बिहार विधानसभा चुनावों की गहमागहमी के बीच दूसरे राज्यों में हुए उपचुनावों पर किसी का ध्यान ही नहीं गया। अब कर्नाटक को ही लीजिए। यहां के दो विधानसभा क्षेत्रों- बेंगलूरु के राजराजेश्वरी नगर (आरआर नगर) और तुमकुर के सीरा में उपचुनाव हुए। ये दोनों ही सीटें पुराने मैसूर इलाके में आती हैं जहां राजनीतिक रूप से प्रभावी समुदाय वोक्कालिगा का दबदबा रहा है। पूर्व प्रधानमंत्री एच डी देवेगौड़ा और उनके बेटे पूर्व मुख्यमंत्री एच डी कुमारस्वामी वोक्कालिगा समुदाय से ही संबंधित हैं। कर्नाटक की राजनीति में लंबे समय से या तो वोक्कालिगा या फिर लिंगायत समुदायों का प्रभुत्व रहा है। मौजूदा मुख्यमंत्री बी एस येदियुरप्पा लिंगायत समुदाय से आते हैं। यह अलग बात है कि लिंगायत समुदाय से ताल्लुक रखने के बावजूद येदियुरप्पा के लिए कभी भी कई धड़ों में बंटी कर्नाटक भाजपा के भीतर राह आसान नहीं रही है। आम तौर पर राज्य में सत्तारूढ़ पार्टी के ही पक्ष में उपचुनावों के नतीजे आते रहे हैं लेकिन इस बार के उपचुनाव दो वजहों से दिलचस्प थे। ऐसी उम्मीद की जा रही थी कि इन दोनों सीटों को देवेगौड़ा की पार्टी जनता दल सेक्युलर (जद-एस) वोक्कालिगा समुदाय की अच्छी संख्या के कारण जीत लेगी। भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) का येदियुरप्पा-विरोधी गुट पार्टी के भीतर एवं बाहर के अपने विरोधियों को चुनौती देने के लिए येदियुरप्पा के बेटे विजयेंद्र के नाकाम होने पर मौके को भुनाना चाहता था। दूसरी तरफ कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष डी के शिवकुमार वोक्कालिगा समुदाय से संबंधित हैं और आर आर नगर सीट उनके भाई डी के सुरेश के लोकसभा क्षेत्र का हिस्सा है। कांग्रेस ने 2019 के आम चुनाव में पूरे राज्य में अकेली यही सीट जीती थी। ऐसे में अधिकतर लोगों को यही लग रहा था कि इस सीट पर कांग्रेस की जीत होनी ही है।
लेकिन असल में तो सीरा सीट के उपचुनाव ने सबको चौंकाया। यह कांग्रेस एवं जद-एस का गढ़ रहा है। चुनावी आंकड़ों के नजरिये से देखने पर यहां भाजपा की जीत की संभावना एकदम नहीं थी। भाजपा पिछले 40 साल में इस सीट को कभी भी नहीं जीत सकी थी और हमेशा ही भाजपा के उम्मीदवार यहां तीसरे स्थान पर या उससे भी नीचे रहते आए हैं। इसका सबसे अच्छा प्रदर्शन 2.5 लाख मतों में से करीब 24,000 मत हासिल करने का रहा है। वोक्कालिगा समुदाय की यहां भारी तादाद है और उसके बाद अनुसूचित जाति, जनजाति, पिछड़ी जातियों एवं मुस्लिम मतदाताओं का स्थान आता है। लिंगायत मतदाता बमुश्किल 5,000 हैं।
समय-समय पर ऐसी अटकलें चलती रहती हैं कि भाजपा आलाकमान येदियुरप्पा को हटाने की सोच रहा है। दोनों उपचुनावों को जीतना कोई बड़ा मुद्दा नहीं था, ऐसा नहीं था कि मध्य प्रदेश की तरह इस सरकार का वजूद ही खतरे में था। कर्नाटक में सियासी इबारत थोड़ी अलग थी। दरअसल 77 साल के येदियुरप्पा के विरोधी अक्सर आलाकमान को 75 साल की सक्रिय उम्रसीमा की याद दिलाते रहते हैं, ऐसे में यह आभास होना मुश्किल नहीं है कि कर्नाटक में नेतृत्व परिवर्तन की जरूरत जल्द ही पड़ेगी। किसी नेता के लिए अपना रसूख साबित करने का इससे बेहतर मौका भला क्या होगा? कर्नाटक में अपने बेटे विजयेंद्र को आगे बढ़ाने की येदियुरप्पा की कोशिशों का तगड़ा विरोध हुआ है। जब प्रदेश उपाध्यक्ष विजयेंद्र को इन दोनों सीटों के उपचुनाव का अभियान प्रमुख बनाया गया तो कोई विरोध नहीं हुआ। असल में, सोच यह थी कि इस शख्स को ऐसा काम सौंप दो जो वह कर न सके और फिर उसे नाकाम साबित कर दिया जाए। सीरा से कांग्रेस ने छह बार के विधायक एवं पूर्व मंत्री टी बी जयचंद्र को अपना उम्मीदवार बनाया था। वहीं जद-एस उम्मीदवार के पक्ष में समूचे देवेगौड़ा परिवार ने प्रचार किया था। इनमें देवेगौड़ा, कुमारस्वामी, पूर्व मंत्री रेवन्ना, हासन के सांसद प्रज्वल रेवन्ना एवं देवेगौड़ा के पौत्र निखिल कुमारस्वामी भी शामिल हैं। देवेगौड़ा ने प्रचार के दौरान कहा था, ‘विजयेंद्र्र के जद-एस उम्मीदवार को मात देने वाले बयान ने मेरे सामने एक चुनौती पेश की है और मैं यहां पर जद-एस को खत्म नहीं होने दूंगा।’
लेकिन 10 नवंबर को जब उपचुनाव के नतीजे आए तो कांग्रेस एवं जद-एस दोनों ही दलों को शर्मिंदगी का सामना करना पड़ा। सीरा में भाजपा के उम्मीदवार डॉ सी एम राजेश गौड़ा ने 13,000 मतों के अंतर से जीत दर्ज की। वहीं आर आर नगर में तो भाजपा उम्मीदवार की जीत का अंतर 57,000 से भी अधिक था। विधानसभा चुनाव के लिहाज से यह जीत का बहुत बड़ा अंतर है। यह परिणाम आने के बाद शिवकुमार ने कहा, ‘सरकार ने अधिकारियों का दुरुपयोग किया है। पैसे के इस्तेमाल के बारे में तो चर्चा भी नहीं की जा सकती। लेकिन सच यह है कि हम नाकाम रहे। लोगों ने हमें उस तरह मत नहीं दिए जैसी हमें उम्मीद थी।’ जद-एस तो इस हार के सदमे से उबर ही नहीं पाई है। सीरा सीट पर उपचुनाव जद-एस विधायक के निधन के कारण हुआ था और पार्टी ने उनकी विधवा को अपना उम्मीदवार बनाया था।
विजयेंद्र के सहयोगियों का कहना है कि चुनाव खत्म नहीं होने तक वह सीरा में ही मौजूद रहे और इसने जीत की बुनियाद रखी। दिसंबर 2019 में जब विजयेंद्र के निर्देशन में भाजपा ने केआर पेट सीट पर जद-एस की नाक से नीचे से जीत छीन ली थी तो उसे महज तुक्का बताया गया था। लेकिन इस बार की जीत ने साबित कर दिया कि ऐसा नहीं था।
किसी चुनावी जीत को लेकर बहस की अधिक गुंजाइश नहीं होती है। विजयेंद्र ने खुद को साबित कर दिया है और अब वह अपने पिता की जगह लेने के लिए अगली कतार में खड़े हो गए हैं। हालांकि पार्टी का एक धड़ा इससे खुश नहीं है लेकिन वह किस तरह हमला बोलेगा? और विजयेंद्र इसका किस तरह जवाब देंगे? इस दिलचस्प कहानी का अगला अध्याय बासव कल्याण सीट का उपचुनाव होगा जहां के विधायक का कोविड संक्रमण के चलते निधन हो गया है। क्या वहां से खुद विजयेंद्र उम्मीदवार होंगे? उन्हें मंत्री बनने से कौन रोक सकता है? इसके बारे में किसे कुछ पता है?
