आर्टिफिशयल इंटेलीजेंस (एआई) यानी कृत्रिम मेधा के सिरे ग्रीक मिथकीय कथाओं तक विस्तारित हैं लेकिन यह शब्द चलन में तब आया जब विज्ञान गल्प कथाएं लोकप्रिय हुईं। द टर्मिनेटर जैसी फिल्मों ने मनुष्यों और एआई वाली मशीनों की लड़ाई की कल्पना पेश की। इजरायल का हार्पी ड्रोन इसका उदाहरण है जो एक खास क्षेत्र में उड़ता हुआ तय लक्ष्य को नष्ट कर सकता है।
एआई कंप्यूटर विज्ञान का विषय है जहां कंप्यूटर और मशीनें मिलकर मनुष्यों की नकल करती हैं। हमारा सामना रोज ही एआई से पड़ता है। मसलन संगीत प्रसारण सेवाएं, आवाज पहचानने की सुविधा और सीरी या एलेक्सा जैसी सहायक सेवाएं। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस शब्द सबसे पहले जॉन मैकार्थी ने दिया था।
जुलाई 2015 में ब्यूनस आयरस में एआई पर हुए संयुक्त अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में शोधकर्ताओं ने चेतावनी दी थी कि एआई संपन्न हथियारों की होड़ खतरनाक हो सकती है। उन्होंने ऐसे स्वचालित हथियारों पर रोक की मांग की थी जो मनुष्यों की पहुंच से बाहर हों। इस चिंता के बावजूद चीन, रूस और अमेरिका तथा भारत ऐसे हथियार बनाने की होड़ में शामिल हैं। सन 2018 में संयुक्त राष्ट्रकी पारंपरिक हथियार संबंधी शिखर बैठक में अमेरिका, रूस, दक्षिण कोरिया, इजरायल तथा ऑस्ट्रेलिया ने उस वार्ता का विरोध किया जो इन हथियारों का एक स्तर तय करने और इन पर पूर्ण प्रतिबंध लगाने की दिशा में बढ़ सकती थी। हाल ही में दो भारतीय शोधकर्ताओं सेंटिलियस कंसल्टिंग सर्विसिज के गौरव शर्मा और सिंबायोसिस लॉ स्कूल की पूर्व प्रोफेसर रूपल राउतदेसाई ने एक अप्रकाशित पर्चा लिखा, ‘एआई और सशस्त्र बल: विधिक और नैतिक चिंता।’ शर्मा और राउतदेसाई एआई को दो भागों में बांटते हैं: पहला हिस्सा संकीर्ण एआई का है जहां संगीत, खरीदारी की अनुशंसा और चिकित्सा आदि। इसके बाद सामान्य एआई आती है जो वैसी क्षमताएं रखती है जैसी कि पूर्ण संज्ञानात्मक व्यक्ति रखता है। व्यापक सहमति यही है कि सामान्य एआई तक कुछ दशक बाद ही पहुंचा जा सकेगा। परंतु इसकी कोई व्यापक परिभाषा नहीं है। एआई का इस्तेमाल रोजमर्रा के काम में होने लगा है। खासकर सेना भी इसका इस्तेमाल कर रही है तो तमाम कानूनी चिंता उठना लाजिमी है। सरकार और नीति निर्माताओं को नियमन के पहले इसे सही ढंग से परिभाषित करना होगा। अगस्त 2017 में वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय ने एक कार्यबल का गठन किया था ताकि विभिन्न क्षेत्रों के विकास में एआई के इस्तेमाल की संभावनाएं तलाशी जा सकेें। कार्य बल ने मार्च 2018 में रिपोर्ट सौंप दी लेकिन उसकी अनुशंसाओं में विभिन्न वैधानिक मसलों के बारे में कुछ नहीं कहा गया है। रिपोर्ट में केवल यह कहा गया है कि भारत को अंतरराष्ट्रीय नियम निर्माण में हिस्सा लेना चाहिए और द्विपक्षीय सहयोग के साथ श्रेष्ठ व्यवहार की साझेदारी करनी चाहिए।
एआई का सबसे अहम और दिलचस्प उपयोग सैन्य गतिविधियों में होता है। सेनाओं के लिए इसके कई लाभ हैं। मसलन युद्ध के दौरान भारी भरकम डेटा का विश्लेषण करना। प्रासंगिक सूचनाओं को जल्दी और प्रभावी ढंग से अलग-अलग करके सेना को निर्णायक कदम उठाने में मदद मिल सकती है। येल लॉ स्कूल की रेबेका क्रूट ने स्वचालित हथियार प्रणाली को परिभाषित करते हुए कहा कि यह एक ऐसी हथियार प्रणाली है जो उन निष्कर्षों पर आधारित होती है जो पहले से विश्लेषित हों और स्वतंत्र रूप से लक्ष्य चुन सकें। जिन मामलों में किसी सीमा पर मानव हस्तक्षेप की आवश्यकता होती है उसे अद्र्ध-स्वचालित कहा जाता है।
अंतरराष्ट्रीय संदर्भ में स्वचालित हथियार प्रणाली की कोई मान्य परिभाषा नहीं है लेकिन अंतरराष्ट्रीय रेड क्रॉस समिति ने दिसंबर 2015 में अपने अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में प्रस्ताव रखा था कि स्वचालित हथियार प्रणाली से अभिप्राय एक व्यापक संदर्भ में होना चाहिए जिसमें ऐसी हथियार प्रणाली शामिल हों जो बिना मानव हस्तक्षेप के हवा, जमीन या समुद्र में स्वायत्तता से लक्ष्य चिह्नित कर प्रहार कर सकें।
उन्नत तकनीक वाली सेनाओं के पास ऐसी क्षमता है और वे उसे और बेहतर बना रही हैं। अमेरिका उन्नत हथियार प्रणाली में काफी निवेश कर रहा है। इसमें ऐसे कंप्यूटर शामिल हैं जो अपने निर्णय सैन्य कमांडरों को समझा सकते हैं। विज्ञान गल्प का हिस्सा मानी जाने वाली ऐसी प्रणालियां जल्दी हमारे सामने आ सकती हैं।
भारत भी अपवाद नहीं है। फरवरी 2018 में रक्षा मंत्रालय ने भारतीय सेना में एआई के इस्तेमाल की व्यवहार्यता जांचने के लिए अध्ययन किया। इस कार्य बल की विषयवस्तु गोपनीय है लेकिन प्रेस विज्ञप्ति से पता चलता हैकि रिपोर्ट ने देश के रक्षा क्षेत्र में एआई के इस्तेमाल में संस्थागत हस्तक्षेप और नीति को लेकर अनुशंसा की है।
भारत का एआई आधारित हथियार प्रणाली विकसित करने पर विचार करना सही दिशा में उठाया गया कदम है। बहरहाल हमें कानूनी और नैतिक उलझनों पर भी पूरा ध्यान देना होगा। ये प्रणालियां ऐसी होती हैं कि एक बार इन्हें सक्रिय करने के बाद इंसानी हस्तक्षेप की जरूरत नहीं पड़ती। सन 2013 में एक अंतरराष्ट्रीय बैठक में यह निर्णय लिया गया कि 2014 में अनौपचारिक बैठक करके इस विषय में निर्णय लिया जाएगा। तब से अब तक विभिन्न बैठकों में भारत का रुख यही रहा है कि ऐसी हथियार प्रणालियों को अंतरराष्ट्रीय मानव मानकों के अनुरूप होना चाहिए। भारत ने आगामी वर्षों में सार्थक मानव नियंत्रण की बात की और यह भी कहा कि इनकी परिभाषा स्पष्ट होनी चाहिए। जिनेवा समझौते के अनुसार भी नए हथियारों की विधिक समीक्षा का ढांचा आवश्यक है।
एआई आधारित हथियारों के इस्तेमाल के पक्ष में तमाम दलीलें दी जाती हैं, मसलन इससे सैनिकों की जान कम जाएगी जबकि इसके विरोध में कहा जाता है कि इससे युद्ध भड़काना आसान हो जाएगा जिससे युद्ध में हताहतों की तादाद और बढ़ेगी। लब्बोलुआब यह कि जब भी कोई देश एआई आधारित हथियार प्रणाली अपनाता है तो कई प्रकार के वैधानिक और नैतिक मसले उठते हैं।
