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खेती बाड़ी: जल संचयन, संरक्षण दूर करेंगे पानी की किल्लत

भारत में विश्व की 18 फीसदी आबादी रहती है मगर दुनिया में उपलब्ध जल संसाधन का यहां मात्र 4 फीसदी हिस्सा पाया जाता है।

Last Updated- July 01, 2024 | 9:28 PM IST
जल संचयन, संरक्षण दूर करेंगे पानी की किल्लत, Growing & sustaining a liquid asset

क्या भारत स्वाभाविक तौर पर पानी की किल्लत वाला देश रहा है? जब प्रत्येक वर्ष गर्मी में देश के कई हिस्से पानी की किल्लत का सामना करते हैं तो यह प्रश्न जरूर उभरता है। इसका कोई सीधा-सपाट उत्तर देना आसान नहीं है, क्योंकि इस विषय से जुड़े कई पहलू हैं जिनकी अलग-अलग व्याख्या हो सकती है। परंतु, यह तो निश्चित है कि जल संकट ऐसी समस्या नहीं है,जिसका कोई हल नहीं निकल नहीं सकता।

भारत में विश्व की 18 फीसदी आबादी रहती है और दुनिया में मवेशी की कुल संख्या का 20 फीसदी हिस्सा यहीं पाया जाता है। मगर दुनिया में उपलब्ध जल संसाधन का यहां मात्र 4 फीसदी हिस्सा पाया जाता है। यह स्पष्ट संकेत है कि इस महत्त्वपूर्ण संसाधन की सीमित उपलब्धता के बीच समझ-बूझ के साथ कदम नहीं उठाया गया तो भविष्य में स्थिति और भयावह हो सकती है।

देश में प्रति व्यक्ति पानी की उपलब्धता 1950 के दशक में 3,000 घन मीटर थी, जो अब कम होकर मात्र लगभग 1,486 घन मीटर रह गई है। वर्ष 2031 तक यह और कम होकर 1,367 घन मीटर हो सकती है। यह भी एक संकेत है कि देश में पानी की कमी किस तरह विकराल रूप ले रही है।

मोटा अनुमान यह है कि प्रति व्यक्ति कम से कम 1,700 घन मीटर पानी की आवश्यकता है। अगर पानी की उपलब्धता 1,000 घन मीटर से कम होती है तो परिस्थितियां वाकई खतरनाक स्तर तक पहुंच जाएंगी। पानी की उपलब्धता निरंतर कम होने की आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता। देश के कई हिस्सों में तो जल संकट भीषण रूप ले चुका है या इस स्थिति में तेजी से पहुंच रहा है।

परंतु, जल संसाधन से जुड़ा एक और पहलू भी है जो परेशान करने वाला नहीं है। जल एक नवीकरणीय संसाधन है और प्रकृति इस मामले में थोड़ी दयालु रही है। भारत में वर्षा एवं हिमपात के माध्यम से सालाना लगभग 118 सेंटीमीटर या लगभग 4,000 अरब घन मीटर (बीसीएम) पानी आता है। यह वैश्विक औसत की तुलना में कहीं अधिक है।

परंतु, इस जल का अधिकांश हिस्सा जुलाई से सितंबर में मॉनसून के दौरान आता है और एक बड़ा हिस्सा समुद्र में चला जाता है या बाढ़ लाता है या फिर उपजाऊ मिट्टी बहा कर ले जाता है। एक छोटा हिस्सा ही जलाशयों, तालाब या टैंकों में जमा हो पाता है या भूमिगत जल भंडार में जा पाता है। मगर अफसोस की बात है कि देश में वर्षा जल संग्रहण के लिए अब तक पर्याप्त ढांचा तैयार नहीं हो पाया है।

केंद्रीय जल आयोग (सीडब्ल्यूसी) के अनुमान के अनुसार भारत में कुल जल भंडारण क्षमता केवल 355 अरब घन मीटर है। इनमें उपयोग लायक क्षमता (लाइव स्टोरेज) मात्र 275 अरब घन मीटर है। यह मात्रा 834 अरब घन मीटर की अनुमानित आवश्यकता की तुलना में काफी कम है। पूर्ण क्षमता का इस्तेमाल होने पर भी संग्रहित जल लगभग 170 दिनों तक ही चल सकता है।

कई अन्य देशों ने जल की पर्याप्त उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए काफी अधिक जल संग्रहण क्षमता तैयार की है। उदाहरण के लिए मिस्र में 700 दिनों के लिए पानी जमा रखने की क्षमता है। अमेरिका दो वर्षों तक इस्तेमाल के लिए पर्याप्त जल भंडारण कर सकता है। अगर भारत वर्षा जल का पर्याप्त भंडारण कर लें तो यह शहरी और ग्रामीण क्षेत्र दोनों में ही फसलों की सिंचाई सहित सभी जरूरतें पूरी कर सकता है।

लिहाजा, जल की कमी की समस्या का समाधान जल संग्रह, इसका संरक्षण और विवेकपूर्ण इस्तेमाल है। इसका सबसे उम्दा उपाय यह है कि वर्षा जल का स्थानीय स्तर पर संरक्षण की व्यवस्था शुरू की जाए। ऐसा नहीं है कि नीतियां तैयार करने वाले लोग वास्तव में इस बुनियादी आवश्यकता को नहीं समझते हैं। उन्होंने सही दिशा में कदम बढ़ाते हुए वर्षा जल संरक्षण को काफी पहले मृदा एवं जल संरक्षण कार्यक्रम का एक अभिन्न हिस्सा बनाया है।

वर्ष 2001 में ऐसी सभी नई इमारतों, जिनमें छत का क्षेत्रफल 1,000 वर्ग मीटर था, के लिए वर्षा जल संचयन अनिवार्य कर दिया था। विशेषज्ञों का मानना है कि अधिकांश परिवारों में पानी की जरूरत वर्षा के जल से पूरी की जा सकती है। राष्ट्रीय जल नीति, 2012 में भी वर्षा जल संग्रह पर जोर दिया गया था।

मृदा एवं जल संरक्षण, सिंचाई विस्तार एवं जल संभरण (वाटरशेड) विकास के लिए शुरू किए गए अधिकांश कार्यक्रमों में मूल जगह और मूल जगह से दूर वर्षा जल संरक्षण की व्यवस्था का प्रावधान है। सरकार की योजना जल शक्ति अभियान के अंतर्गत इस उद्देश्य के लिए रकम का आवंटन भी नियमित तौर पर हो रहा है। इसके अलावा, महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) के अंतर्गत हो रहे कार्यों का वर्षा जल संचयन एक प्रमुख हिस्सा रहा है।

हालांकि, मकसद नेक होने के बावजूद योजना तैयार करने के स्तर पर खामी और आधे-अधूरे क्रियान्वयन के कारण इन उपायों के अपेक्षित परिणाम नहीं मिल पा रहे हैं। मनरेगा के अंतर्गत योजनाएं मांग आधारित एवं रोजगारोन्मुखी हैं जहां श्रम की उपलब्धता अलग-अलग समय पर भिन्न होती है। इस कारण से नियमित समय पर या पूर्व निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार प्रस्तावित कार्य संपादित नहीं हो पाते हैं। इसके अलावा वर्षा जल प्रबंधन के विभिन्न पहलुओं जैसे संग्रहण, भंडारण एवं वितरण और जल संचयन ढांचे का प्रबंधन अलग-अलग प्राधिकरणों के हाथ में होने से उम्मीद लायक नतीजे नहीं मिल रहे हैं।

वर्षा जल संरक्षण के लिए व्यापक भौगोलिक स्तर पर योजना तैयार करने की आवश्यकता है। मगर मौजूदा नागरिक प्रशासन में ऐसा कर पाना मुश्किल है। हमें वर्षा जल संचयन एवं संरक्षण को एक जन आंदोलन का रूप देना होगा और कुल जल भंडारण क्षमता में इजाफा करना होगा। इससे जल संकट दूर करने के साथ ही पूरे वर्ष जल की उपलब्धता सुनिश्चित करने में भी मदद मिलेगी।

First Published - July 1, 2024 | 9:28 PM IST

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