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मिट्टी से जुड़ा दूध: विवादों के बावजूद ‘वीगन मिल्क’ की बढ़ रही लोकप्रियता

भारत दुनिया का सबसे बड़ा डेरी उत्पादक है और यहाँ दूध की आपूर्ति प्रचुर है। फिर भी, वीगन मिल्क ने देश में अपना एक विशेष बाजार बना लिया है। बता रहे हैं

Last Updated- July 27, 2025 | 10:37 PM IST

सामान्य दूध की तरह दिखने वाला वनस्पति आधारित अनूठा पेय, जिसे आमतौर पर वीगन मिल्क भी कहा जाता है, आजकल भारत सहित पूरी दुनिया में तेजी से लोकप्रिय हो रहा है। लेकिन डेरी किसान इसे गाय के दूध की तरह पोषक मानने को तैयार नहीं हैं। उनका मानना है कि गौवंश के दूध में ऐसे बेजोड़ गुण होते हैं, जो किसी अन्य पदार्थ में हो ही नहीं सकते। सोयाबीन, बादाम, चावल, काजू, जई, नारियल, अखरोट, मूंगफली तथा सन के बीज आदि से तैयार यह कृत्रिम दूध उन लोगों के लिए उपयुक्त माना जाता है जो सामान्य दूध को पचा नहीं पाते या उन्हें इससे एलर्जी है अथवा हाई ब्लड प्रेशर, कोलेस्ट्रॉल जैसी समस्या है, जिससे हृदय रोग और स्ट्रोक का खतरा बढ़ जाता है। यही नहीं, स्वास्थ्य के प्रति जागरूक और कम वसा या कैलोरी वाले उत्पाद चाहने वाले लोग भी इसे अधिक पसंद करते हैं। एक बात और, जहां गौवंश दूध की आपूर्ति कम है, उन क्षेत्रों में कृत्रिम दूध खूब पिया जा रहा है।

भारत में भी वीगन मिल्क अपना खास बाजार बनाने में कामयाब रहा है, लेकिन डेरी दूध का दुनिया का सबसे बड़ा उत्पादक देश होने के कारण यहां इसकी पर्याप्त मात्रा में आपूर्ति होती है। देश में दूध की प्रति व्यक्ति उपलब्धता 471 ग्राम प्रति दिन है, जो वैश्विक औसत 322 ग्राम से कहीं अधिक है। भारतीय चिकित्सा परिषद की अनुशंसा के मुताबिक आदर्श रूप में दैनिक दूध की खपत 280 ग्राम होनी चाहिए। स्वास्थ्य के प्रति जागरूक उपभोक्ताओं को आकर्षित करने के लिए अधिकांश वीगन मिल्क निर्माता इसे अधिक पोषक बनाने के लिए इसमें प्रोटीन, एंजाइम, लिपिड और खनिजों का मिश्रण कर रहे हैं। यहां तक कि कृत्रिम रंग, सुगंध और स्वाद बढ़ाने वाले तत्व भी इसमें मिलाए जाते हैं कि ताकि लोग उसकी तरफ ज्यादा से ज्यादा आकर्षित हों और गैर-कार्बोनेटेड शीतल पेय में विविधता की तलाश करने वाले उपभोक्ताओं के बीच भी इनकी मांग बढ़े।

बाजार में इस समय सबसे ज्यादा सोया, बादाम, काजू, ओट और नारियल के वीगन मिल्क उपलब्ध हैं। इनमें से प्रत्येक में अलग-अलग पोषण गुण हाते हैं। उदाहरण के लिए सोया मिल्क में प्रोटीन, लिपिड और कार्बोहाइड्रेट सबसे अधिक पाया जाता है। कैलोरी और प्रोटीन सामग्री इसमें लगभग 7 से 9 फीसदी होती है। इन तत्त्वों के कारण सोया दूध को गाय के दूध के समान ही माना जाता है। बादाम के दूध में संतृप्त वसा की तुलना में असंतृप्त वसा की मात्रा अधिक होती है, इसलिए यह ऐसे लोगों के लिए उपयुक्त माना जाता है जो वजन के प्रति बेहद सचेत रहते हैं। नारियल के सफेद गूदे और पानी से बने नारियल दूध में वसा की मात्रा अधिक होती है, लेकिन प्रोटीन और कार्बोहाइड्रेट बहुत कम होते हैं। दूसरी ओर, ओट मिल्क में आहार फाइबर होता है, जो पाचन और रक्त कोलेस्ट्रॉल और शर्करा को संतुलित बनाए रखने के लिए अच्छा होता है।

लेकिन तमाम गुणों के बावजूद डेरी वैज्ञानिक वनस्पति आधारित इस पेय को दूध मानने को तैयार नहीं हैं। उनका तर्क है कि जानवरों और मनुष्यों की स्तन ग्रंथियों से निकलने वाले स्राव को ही दूध कहा जा सकता है। खाद्य मानकों के लिए संयुक्त राष्ट्र समर्थित कोडेक्स एलिमेंटेरियस आयोग द्वारा तैयार अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त कोड भी उस सामान्य स्तन स्राव को ही दूध के रूप में वर्णित करते हैं, जिसमें कोई मिलावट न हो या उससे कुछ भी निकाला नहीं गया हो। पशुपालन विशेषज्ञों का कहना है कि वनस्पतियों से तैयार पेय को वीगन मिल्क कहना गलत है।

अप्रैल 2024 में नैशनल एकेडमी ऑफ एग्रीकल्चरल साइंसेज द्वारा ‘दूध बनाम वनस्पति आधारित डेरी समतुल्य: मिथक और तथ्य’ शीर्षक से प्रकाशित एक नीति पत्र में कहा गया है कि वनस्पतियों पर आधारित पेय पदार्थों को दूध, दूध का विकल्प या दूध के समतुल्य नहीं कहा जाना चाहिए। विभिन्न पोषक तत्वों का मिश्रण करने के बाद भी ये शायद ही कभी सामान्य दूध का मुकाबला कर सकते हैं। मवेशियों, जैसे गाय, भैंस, बकरी, भेड़, ऊंट एवं घोड़ी आदि प्रजातियों से प्राप्त दूध  500 से अधिक जैविक रूप से सक्रिय स्थूल और सूक्ष्म पोषक तत्वों का जटिल मिश्रण होता है, जो विभिन्न चिकित्सीय गुणों के अलावा, मानव पोषण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। दूध मानव विकास और शरीर प्रणालियों के रखरखाव के लिए लगभग संपूर्ण भोजन है। मानव जाति युगों से दूध का सेवन करती आ रही है। इस नीति पत्र में बताया गया है, ‘वनस्पतियों पर आधारित दूध की मांग आवश्यकता की वजह से नहीं, बल्कि अधिक किफायती और फैंसी खाद्य स्रोत के रूप में उभरने से बढ़ रही है।’

फिर भी, मांग-आपूर्ति गतिशीलता के आधार पर वीगन मिल्क का बाजार घरेलू और वैश्विक स्तर पर लगातार फैलता जा रहा है। दुनिया के अन्य हिस्सों की तुलना में अमेरिका, यूरोप और महासागरीय क्षेत्रों के विकसित देशों में इसने बहुत तेजी से अपनी जगह बनाई है। अंतरराष्ट्रीय व्यापार सूचना फर्म ग्लोबल डेटा का अनुमान है कि 2023 और 2027 के बीच भारत में दूध के विकल्पों का बाजार 6 से 8 फीसदी प्रति वर्ष की दर से बढ़ेगा। एक अन्य संस्था इंटरनैशनल मार्केट एनालिसिस रिसर्च ऐंड कंसल्टिंग ग्रुप का मानना है कि देश में वीगन मिल्क का वर्तमान बाजार आकार लगभग 85.55 करोड़ डॉलर का है। वर्ष 2033 तक इसके 10 फीसदी से अधिक की वार्षिक वृद्धि के साथ 216.63 करोड़ डॉलर तक पहुंचने की संभावना है। दूसरी ओर, इन दुग्ध पदार्थों का वैश्विक बाजार 2018 में 11.16 अरब डॉलर से बढ़कर 2023 में 19.67 अरब डॉलर तक पहुंच गया, जो 12 फीसदी की वार्षिक वृद्धि को दर्शाता है। सोया, बादाम, ओट्स, नारियल और चावल से बने दूध सबसे अधिक पसंद किए जा रहे हैं।

इस प्रकार अपने गुणों-अवगुणों और दूध कहा जाए अथवा कोई दूसरा नाम दिया जाए, जैसे विवादास्पद मुद्दों के बावजूद वीगन मिल्क वैश्विक एवं घरेलू खाद्य बाजारों में अपनी जगह बना रहे हैं तथा समय के साथ अपनी पकड़ मजबूत कर रहे हैं।

 

First Published - July 27, 2025 | 10:29 PM IST

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