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एमपीसी में विविधता

Last Updated- December 14, 2022 | 11:02 PM IST

सरकार ने आखिरकार सोमवार को भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) की मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) में बाहरी सदस्यों की नियुक्ति कर दी। समिति नीतिगत समीक्षा के लिए 7 से 9 अक्टूबर के बीच बैठक करेगी। सरकार ने सदस्यों की नियुक्ति कुछ देरी से की जिससे बचा जा सकता था। यह नियुक्ति अकादमिक जगत तक सीमित रखी गई लेकिन अच्छी बात यह है कि सदस्यों में काफी विविधता भी रखी गई है। डॉ. जयंत वर्मा वित्तीय मामलों के विशेषज्ञ हैं, वह भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड के भी सदस्य रह चुके हैं। वह वित्तीय बाजारों में नीतिगत कामों से संबद्ध रहे हैं और कई विशेषज्ञ समितियों में भी काम कर चुके हैं।
डॉ. आशिमा गोयल प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद में भी काम कर चुकी हैं और फिलहाल उनका शोध राजकोषीय और मौद्रिक नीतियों पर केंद्रित है। लचीले मुद्रास्फीति लक्ष्य और विनिमय दर भी उनके शोध में शामिल हैं। वह आरबीआई की तकनीकी सलाहकार समिति की भी सदस्य रह चुकी हैं। मौद्रिक नीति संबंधी निर्णय लेने वाली एमपीसी के गठन और मुद्रास्फीति को लक्षित करने वाले लचीले ढांचे को अपनाने के पहले यह समिति गवर्नर को नीतिगत सलाह देने का काम किया करती थी। वह नीतिगत मसलों पर नियमित टिप्पणियां भी करती रही हैं। उदाहरण के लिए अगस्त में प्रकाशित एक आलेख में गोयल ने कहा था कि आरबीआई को आपूर्ति क्षेत्र की अस्थायी बाधा के कारण उपभोक्ता महंगाई में आई तेजी पर नजर डालनी चाहिए। डॉ. शशांक भिडे के शोध में वृहद आर्थिक मॉडलिंग, बुनियादी ढांचा, गरीबी के विश्लेषण और कृषि समेत विभिन्न क्षेत्र शामिल रहे हैं। स्पष्ट है कि एमपीसी के नए सदस्य वृहद अर्थव्यवस्था, वित्तीय बाजार और कृषि अर्थव्यवस्था को लेकर अपने शोध के कारण नीति निर्माण में विविध प्रकार के विचार प्रस्तुत करेंगे।  इससे समिति की विचार प्रक्रिया में मजबूती आएगी। उदाहरण के लिए केंद्रीय बैंक खाद्य कीमतों के बारे में अनुमान लगाने में लगातार परेशानी का अनुभव करता रहा है जबकि खुदरा मूल्य सूचकांक में उसकी काफी अहमियत है। जाहिर है यह मौद्रिक नीति निर्धारण की दृष्टि से भी अहम है। नीति का पारेषण भी एक अहम मसला है।
डॉ. वर्मा अतीत में यह दलील दे चुके हैं कि बॉन्ड प्रतिफल को कम करने के लिए खुले बाजार का प्रयोग किया जाए। ऐसे में नए सदस्यों की राय और वोटिंग संबंधी निर्णयों को देखना दिलचस्प होगा। बहरहाल, मौजूदा हालात में देखें तो अधिकांश अर्थशास्त्रियों को यही लग रहा है कि एमपीसी नीतिगत दरों को अपरिवर्तित रखेगी। मुद्रास्फीति अभी भी आरबीआई के लक्षित दायरे से बाहर है। बाजार केंद्रीय बैंक से यही आशा करेगा कि वह आने वाली तिमाही के मुद्रास्फीति और वृद्धि के पूर्वानुमान पेश करे। महामारी के बाद से आरबीआई ने ऐसा नहीं किया है। केंद्रीय बैंक के अनुमान से यह जानने में भी मदद मिलेगी कि चालू चक्र में नीतिगत समायोजन की क्या गुंजाइश है।

इसमें दो राय नहीं कि यदि मुद्रास्फीति में इजाफा होता रहा तो निकट भविष्य में एमपीसी के लिए दरों में कटौती करना मुश्किल होगा। यदि वह आर्थिक गतिविधियों को बढ़ावा देने के लिए दरों में कटौती करने का निर्णय लेती भी है तो भी शायद वांछित असर न हो क्योंकि मुद्रास्फीति और राजकोषीय नीति के मोर्चे पर अनिश्चितता है। इसके अलावा आरबीआई को अतिरिक्त पूंजी प्रवाह से भी निपटना होगा। उसे बाजार में निरंतर हस्तक्षेप करना होगा ताकि अनावश्यक मुद्रा अधिमूल्यन को नियंत्रित रखा जा सके क्योंकि यह देश की बाह्य प्रतिस्पर्धा को प्रभावित कर सकता है। बहरहाल इससे तंत्र में रुपया बढ़ेगा और यह बात मुद्रास्फीति संबंधी नतीजों को प्रभावित कर सकती है। शुक्रवार को जब एमपीसी दरों संबंधी निर्णय लेगी तब इन बातों के साथ-साथ एक और राजकोषीय प्रोत्साहन की संभावना को ध्यान में रखना होगा।

First Published - October 6, 2020 | 11:05 PM IST

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