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बजट में शहरीकरण की योजना: शहरी विकास पर सरकारों के जोर का सबसे बेहतरीन समय, तय करनी होगी कई जिम्मेदारियां

अभी देश की 35 प्रतिशत से अधिक आबादी शहरों में रहती है और अनुमान है कि 2050 तक 50 प्रतिशत आबादी शहरों में रहने लगेगी।

Last Updated- August 28, 2024 | 9:56 PM IST

भारत में शहरीकरण की रफ्तार तेजी से बढ़ रही है। अभी देश की 35 प्रतिशत से अधिक आबादी शहरों में रहती है और अनुमान है कि 2050 तक 50 प्रतिशत आबादी शहरों में रहने लगेगी। शहरी विकास पर सरकारों के जोर का इससे बेहतर समय और क्या हो सकता था।

आर्थिक समीक्षा और बजट में समावेशी शहरी विकास की सरकार की परिकल्पना पेश की गई है, जिसमें सस्ते शहरी आवास, रोजगार सृजन विशेष रूप से सेवा क्षेत्र में और युवाओं तथा बुजुर्गों के लिए रहन-सहन की सुगमता बढ़ाने जैसी जरूरतें शामिल की गई हैं। किंतु हाल में कुछ त्रासदियां हुईं, जिनमें राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में करियर बनाने की चाह में आए तीन युवाओं की अवैध बेसमेंट में डूबने से मौत और देश में भारी वर्षा के कारण हुई मौतें शामिल हैं। इन त्रासदियों ने हमारे शहरों की प्रशासनिक खामियां दुरुस्त करने की जरूरत सामने रखी है।

फिर भी इस वर्ष के बजट में शहरी विकास की दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठाए गए हैं। सबसे पहले सभी के लिए किफायती आवास मुहैया कराने के लिए आवश्यक कदम के रूप में ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में पीएम आवास योजना के तहत 3 करोड़ अतिरिक्त घरों का वादा किया गया है। ‘पीएम आवास योजना शहरी’ के दूसरे चरण का लक्ष्य 1 करोड़ गरीब और मध्यम वर्ग के परिवारों की आवास की जरूरतों को पूरा करना है।

दूसरा, शहरों को ‘विकास केंद्रों’ में बदलने के लिए सरकार का इरादा उपनगरीय या शहरों के बाहरी हिस्सों के सुव्यवस्थित विकास के लिए योजना तैयार करने का है। यह विशेष रूप से महत्वपूर्ण है क्योंकि उपनगरीय क्षेत्र आम तौर पर नियमित प्रशासनिक व्यवस्था और उसकी योजना का हिस्सा नहीं बन पाते।

तीसरा, विकास बैंकों के साथ साझेदारी के जरिये शहरी सफाई पर जोर दिया गया है ताकि 100 शहरों में जलापूर्ति, गंदे जल के उपचार और ठोस कचरे के प्रबंधन को बढ़ावा दिया जा सके।

बजट में एक दिलचस्प बात थी पहले से मौजूद शहरों के रचनात्मक पुनर्विकास पर ध्यान देना। इसके लिए पहले औद्योगिक उद्देश्यों में इस्तेमाल की गई जमीन को रिहायश के लिए प्रयोग में लाया जाएगा। इसे ‘ब्राउनफील्ड’ रणनीति कहा गया जिससे जमीन के सही इस्तेमाल के साथ पर्यावरण संरक्षण भी होता है क्योंकि बेकार पड़ी या ठीक से इस्तेमाल नहीं हो रही जमीन भी काम में ली जा सकती है।

चौथा, सरकार चुनिंदा शहरों में 100 साप्ताहिक हाट तैयार कर रेहड़ी-फेरी वालों की मदद की योजना भी बनाएगी।भारतीय शहरों को आर्थिक विकास के इंजन में बदलने के लिए सरकार ने बुनियादी ढांचे, टिकाऊपन, समावेश और प्रसासनिक सुधारों पर संतुलित तरीके से जोर दिया है।

बजट भाषण के दौरान वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने डिजिटल सार्वजनिक बुनियादी ढांचे के इस्तेमाल को शहरी प्रशासन की मुख्य धारा में लाए जाने पर भी जोर दिया। सरकार ने भूमि प्रशान, नियोजन एवं प्रबंधन को बढ़ाकर भू प्रबंधन को प्राथमिकता दी है। उसने शहरी नियोजन एवं उपनियम तैयार करने को भी प्राथमिकता में रखा है, जिसे अगले तीन वर्षों में पूरा किया जाना है।

शहरी स्थानीय निकायों पर राजकोषीय बोझ कम करने के लिए कर प्रशासन और भूमि रिकॉर्ड प्रबंधन के लिए एक उन्नत आईटी-आधारित प्रणाली के इस्तेमाल की बात भी कही गई है। शहरों को अधिक रहने योग्य बनाने और नागरिकों की सुगमता को बढ़ावा देने के लिए 30 लाख से अधिक आबादी वाले 14 बड़े शहरों के लिए परिवहन केंद्रित विकास योजनाएं तैयार और लागू की जाएंगी।

इसके अलावा किराये के घरों के बाजार में पारदर्शिता लाने की कोशिश की जाएगी और ऐसे घरों की संख्या बढ़ाई जाएगी। इसमें औद्योगिक श्रमिकों के लिए डॉरमिटरी शैली की एक साथ रहने की जगहें भी शामिल हैं। किंतु शहरी विकास के ये सघन प्रयास हमारे जैसे तेज शहरीकरण वाले देश में समग्रता के साथ होने चाहिए। इसके अलावा जलवायु परिवर्तन को सहन करने लायक बुनियादी ढांचे पर भी ध्यान देना होगा क्योंकि प्रतिकूल जलवायु परिस्थितियां अक्सर हमारे शहरों को पूरी तरह ठप कर देती हैं।

शहरी निवासियों के रहन-सहन में सुगमता बढ़ाने के लिए शहरी शासन की प्रशासनिक प्रक्रिया पर कड़ा नियंत्रण रहना चाहिए ताकि भ्रष्टाचार न पनप सके। भूमि प्रबंधन पर विचार करते समय अवैध इमारतों और भूमि पर जबरन कब्जे जैसी समस्याओं पर भी चर्चा होनी चाहिए क्योंकि इनकी परिणति अक्सर संघर्ष अथवा हिंसा में होती है।

किराये के मकानों के मामले में सुधार के साथ ऐसे कानून भी लाए जाने चाहिए, जो मकान मालिकों के कर्तव्यों और किरायेदारियों की जिम्मेदारी स्पष्ट रूप से तय करें। किराये पर अंकुश के कारगर तरीकों के बगैर किफायती आवास नहीं मिल सकते। हालांकि बजट में इन बातों पर चर्चा नहीं हुई मगर इसका यह मतलब नहीं कि संबंधित पक्ष आगे चलकर इन पर बात नहीं कर सकते।

भारत@100 की कल्पना में शहरी विकास सबसे अहम पहलुओं में शुमार है। उच्च-आय वाला देश बनने के लिए हम जिस तरह की आर्थिक वृद्धि चाह रहे हैं, उसे तभी हासिल किया जा सकता है, जब हमारे शहरों की योजना कुछ इस तरह बनाई जाए कि उनकी अधिकतम क्षमता पर काम किया जा सके। इसके लिए हमें शहरी इलाकों में रहने वाले हाशिये के समुदायों पर भी निवेश करना होगा ताकि वे आर्थिक लाभ से वंचित न रह जाएं।

विश्व बैंक का कहना है कि वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का 80 प्रतिशत से अधिक हिस्सा शहरों में सृजित होने के कारण बेहतर योजना से शहरीकरण की प्रक्रिया टिकाऊ वृद्धि को तो बढ़ावा देगी ही, उत्पादकता और नवाचार भी बढ़ा सकती है।

विश्व बैंक का यह भी कहना है कि 2047 तक आवश्यक शहरी बुनियादी ढांचे का लगभग 70 प्रतिशत अभी बनाया जाना है। ऐसे में सरकार को हर वर्ष जीडीपी का 1.2 प्रतिशत निवेश करना होगा। हम उस लक्ष्य से बहुत पीछे हैं और आगे बढ़ने के लिए हमें शहरी विकास में सार्वजनिक और निजी निवेश दोनों के विकल्पों को अपनाना होगा।

(कपूर इंस्टीट्यूट फॉर कंपेटटिवनेस इंडिया के अध्यक्ष और देवरॉय प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद के अध्यक्ष हैं। साथ में जेसिका दुग्गल)

First Published - August 28, 2024 | 9:56 PM IST

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