ब्रॉडबैंड कनेक्शन के नजरिये से वीडियो व्यवसाय पर एक नजर डालते हैं। भारत में वीडियो स्ट्रीमिंग करने वाले ओवर-द-टॉप (ओटीटी) ब्रांड की संख्या इस साल जून में बढ़कर 60 हो गई जबकि वर्ष 2016 में यह महज 36 हुआ करती थी। हालांकि ओटीटी कारोबार से प्राप्त राजस्व के 8,000 करोड़ रुपये पर कमोबेश स्थिर रहने की ही संभावना है। इसमें से गूगल के प्लेटफॉर्म यूट्यूब का सबसे ज्यादा 43 फीसदी हिस्सा है जबकि डिज्नी हॉटस्टार और नेटफ्लिक्स इससे बहुत पीछे क्रमश: दूसरे एवं तीसरे स्थान पर हैं।
ऑनलाइन वीडियो परोसने वाले कारोबार पर 2020 में कोविड महामारी का काफी प्रतिकूल असर होगा, वहीं इस बाजार के 2020 से लेकर 2025 के दौरान सालाना 25 फीसदी की चक्रवृद्धि दर से बढऩे का अनुमान है। सिंगापुर स्थित सलाहकार फर्म मीडिया पार्टनर्स एशिया (एमपीए) का मानना है कि अगले पांच वर्षों में भारतीय वीडियो कारोबार करीब 29,000 करोड़ रुपये का हो जाएगा।
अब जरा डीटीएच या केबल कनेक्शन के नजरिये से वीडियो व्यवसाय पर निगाह डालते हैं। करीब 79,000 करोड़ रुपये आकार वाला लिनियर प्रसारण उद्योग न केवल वीडियो व्यवसाय बल्कि भारत में समूचे मीडिया कारोबार का सबसे बड़ा हिस्सा है। देश के सबसे बड़े प्रसारकों में से कई ओटीटी कारोबार में भी अग्रणी भूमिका में हैं। एमपीए के उपाध्यक्ष (भारत) मिहिर शाह कहते हैं, ‘ऑनलाइन वीडियो की हिस्सेदारी में विस्तार जारी रहने के बावजूद टेलीविजन के लिए मांग बरकरार है। वर्ष 2025 तक भारत का कुल वीडियो बाजार 16 अरब डॉलर हो जाने की संभावना है।’पिछले महीने एमपीए द्वारा आयोजित एपोस कार्यक्रम में एशिया-प्रशांत वीडियो उद्योग को लेकर हुई चर्चाओं में इन्हीं बिंदुओं का दबदबा रहा। तमाम बहसों एवं प्रस्तुतियों के माध्यम से ये पांच बातें निकलकर सामने आईं:
पहला, एशिया-प्रशांत वीडियो उद्योग महामारी की चपेट में आकर बरबादी के कगार पर आ चुका है। इस पूरे क्षेत्र में विज्ञापनों से प्राप्त होने वाला राजस्व 2019 की तुलना में 16 फीसदी तक गिर जाएगा और इसके पिछले साल के स्तर पर पहुंचने में कई साल लग जाएंगे। एमपीए के कार्यकारी निदेशक विवेक कुटो कहते हैं कि अकेले भारत के ही विज्ञापन राजस्व को 2019 का स्तर हासिल करने में 34 महीने यानी करीब तीन साल लग जाएंगे।
दूसरा, ग्राहकी आधारित वीडियो-ऑन-डिमांड कारोबार मजबूती के साथ बढ़ते हुए 8.2 करोड़ होने वाला है। भारत में 30 लाख से अधिक घरों में कोई-न-कोई स्ट्रिमिंग सेवा ली जा रही है जबकि एक साल पहले यह संख्या 21 लाख थी। यह उन 16.7 करोड़ घरों से अलग है जो केबल या डीटीएच कनेक्शन के लिए मासिक भुगतान करते हैं। इसके साथ ग्राहकी आधारित राजस्व को भी जोड़ दें तो भारतीय वीडियो उद्योग का आधे से अधिक राजस्व हो जाएगा।
तीसरा, भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण (ट्राई) की तरफ से टेलीविजन पर कार्यक्रम देखने के लिए जारी नई शुल्क व्यवस्था के बाद लॉकडाउन होने से लिनियर प्रसारण उद्योग में बड़े पैमाने पर आपाधापी मची हुई है। भारत में मोबाइल ब्रॉडबैंड उपभोक्ताओं की संख्या 58.8 करोड़ है जबकि फिक्स्ड लाइन ग्राहकों की संख्या 3.3 करोड़ है। शाह का मानना है,’लॉकडाउन के दौरान अपने घरों में सिमटे रहे लोगों को डेटा के नए तरह के इस्तेमाल के बारे में पता चला- मसलन, वर्क फ्रॉम होम और स्टडी फ्रॉम होम। अब फिक्स्ड ब्रॉडबैंड के लिए छिपी हुई मांग है। अगले पांच वर्षों में हम भारत में फिक्स्ड ब्रॉडबैंड कनेक्शन धारकों की संख्या दोगुनी होने की उम्मीद करते हैं।’ उनका यह भी कहना है कि दूरसंचार कंपनियां उन्नयन को अंतिम रूप देने में जुटी हुई हैं, वहीं ट्राई की तरफ से जारी नई शुल्क व्यवस्था ने उपभोक्ताओं के लिए भुगतान-आधारित टीवी सेवा को महंगा बना दिया है। इसने प्रमुख चैनलों की पहुंच और विज्ञापन राजस्व को बुरी तरह प्रभावित भी किया है। इस तरह प्रसारक अपनी वितरण रणनीति का पुनर्मूल्यांकन कर रहे हैं। करीब एक दर्जन चैनल बंद हो चुके हैं जिनमें से कई ने वितरण के लिए ओटीटी विकल्प को तरजीह दी है।
चौथा, एमेजॉन, डिज्नी, गूगल और ऐपल भारत की शीर्ष दस वैश्विक मनोरंजन एवं प्रौद्योगिकी कंपनियों में शामिल हैं। हालांकि एमपीए का कहना है कि यह बात सख्ती से सही नहीं है। एमेजॉन इंडिया के 3.5 अरब डॉलर के राजस्व का बड़ा हिस्सा संभवत: खरीदारी से आता है। डिज्नी के मामले में भारत में उसका 2.5 अरब डॉलर का समूचा राजस्व मीडिया से ही आता है। लेकिन इस सूची से एक बात एकदम सही साबित होती है कि आने वाले वर्षों में वैश्विक तकनीकी एवं दूरसंचार कंपनियां ही इस कारोबार पर दबदबा रखेंगी। शाह कहते हैं, ‘चीन के तेजी से पहुंच से बाहर होते जाने से भारत को वैश्विक रणनीतिकार काफी अहमियत दे रहे हैं।’ फेसबुक, गूगल और अन्य कंपनियों के जियो प्लेटफॉर्म में किए गए निवेश को देखें तो बात समझ में आ जाती है।
पांचवां, स्थानीय कंटेंट का ही राज है। एशिया-प्रशांत देशों में उपभोग हो रहे वीडियो कंटेंट का 90 फीसदी स्थानीय भाषाओं में है। कुटो कहते हैं, ‘ग्राहकी आधारित वीडियो-ऑन-डिमांड सेवा देने वाले वैश्विक प्लेटफॉर्म मुख्यत: मौजूदा लाइब्रेरी का इस्तेमाल करने, वैश्विक मौलिक कार्यक्रम और समझदारी से स्थानीय कंटेंट का अधिग्रहण कर रहे हैं। इस दौरान भारत और कोरिया जरूर अपवाद रहे हैं।’ विज्ञापन समर्थित पहलू पर वह कहते हैं, ‘बड़े स्तर पर स्थानीय भाषा में ऑनलाइन वीडियो की मांग बनी हुई है लेकिन यूट्यूब को छोड़कर किसी भी वैश्विक मीडिया कंपनी का ध्यान इस ओर नहीं है।’
इसके अलावा कुटो का मानना है कि संयुक्त उद्यम, अधिग्रहण या विलय के जरिये राष्ट्रीय या क्षेत्रीय स्तर पर ओटीटी चैंपियन भी उभर सकते हैं। वैसे ऑनलाइन वीडियो बाजार का परिदृश्य स्पष्ट होने में लंबा समय लग जाएगा।