खबरोंके अनुसार भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) इस बात पर विचार कर रहा है कि केंद्र सरकार से संपर्क करके उसके मंच के जरिये सरकारी बॉन्ड में निवेश करने वाले खुदरा निवेशकों को कर रियायत दी जाए। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गत सप्ताह आरबीआई रिटेल डाइरेक्ट स्कीम की शुरुआत की। इस वर्ष के आरंभ में घोषित यह योजना व्यक्तिगत निवेशकों को एक ऑनलाइन पोर्टल के माध्यम से ‘रिटेल डाइरेक्ट गिल्ट अकाउंट’ खोलने में सक्षम बनाती है। इससे खुदरा निवेशकों को सरकारी प्रतिभूतियों के प्राथमिक निर्गम और द्वितीयक बाजार दोनों में हिस्सेदारी लेने की क्षमता मिलेगी। व्यक्तिगत निवेशकों को सीधे आरबीआई के साथ खाता खोलने देने और बॉन्ड बाजार में भागीदारी करने देने के पीछे का विचार एकदम स्पष्ट है। इससे न केवल व्यक्तिगत निवेशकों के लिए सरकारी बॉन्ड में निवेश करना सहज होगा बल्कि समय के साथ निवेशकों की तादाद में भी इजाफा होगा।
बहरहाल, खुदरा भागीदारी को बढ़ावा देने के लिए कर लाभ का विस्तार करना अनावश्यक है और इससे बचा जाना चाहिए। हकीकत तो यह है कि आरबीआई का व्यक्तिगत बॉन्ड निवेशकों के लिए कर लाभ का सुझाव देना ही विचित्र है। अनुमान यही है कि यह प्लेटफॉर्म निवेशकों की तादाद बढ़ाएगा लेकिन इस बात की संभावना बहुत कम है कि यह सरकारी उधारी कार्यक्रम में कोई अहम हिस्सेदारी कर पाएगा। आरबीआई ने गत वित्त वर्ष में यानी महामारी वाले वर्ष में सरकारी उधारी के कार्यक्रम को बगैर किसी खास हलचल के और अपेक्षाकृत कम ब्याज दरों के साथ निपटाया। केंद्रीय बैंक और सरकार दोनों को यह मानना होगा कि जरूरी नहीं कि नया खुदरा बॉन्ड प्लेटफॉर्म आम परिवारों की वित्तीय बचत में इजाफा करे। यह ज्यादा से ज्यादा परिवारों के डेट पोर्टफोलियो में बदलाव ला सकता है। ऐसे में कर लाभ को विस्तारित करने का परिणाम सरकार के लिए राजस्व क्षति के रूप में ही सामने आएगा जिससे बचा जाना चाहिए। यह दलील दी गई है कि खुदरा बॉन्ड निवेश को उसी तरह विस्तार दिया जा सकता है जैसा कि डेट म्युचुअल फंड योजनाओं को दिया गया।
सच तो यह है कि कर लाभ समाप्त करके सभी डेट उपायों को एक समान स्तर पर लाया जाता। इससे न केवल कर ढांचा सहज होगा बल्कि इससे व्यक्तिगत निवेशकों को भी अपने लायक योजनाओं का आकलन करने का अवसर मिलेगा। यह बात भी ध्यान देने लायक है कि ऐसे तमाम प्रमाण हैं जिनके मुताबिक खुदरा निवेशक बिना समुचित समझ के वित्तीय योजनाओं में निवेश करते हैं ताकि उन्हें कर लाभ मिल जाए। यह सही है कि भारत सरकार के बॉन्ड जोखिम रहित हैं लेकिन बाजार में इस चरण में प्रवेश करने वाले निवेशक अगर अगले कुछ वर्ष में बॉन्ड बेचने का निर्णय करते हैं तो उन्हें पूंजी का नुकसान हो सकता है क्योंकि ब्याज दरों के मौजूदा स्तर से ऊपर जाने का अनुमान है। ऐसे में आरबीआई के लिए बेहतर होगा कि वह पहले जागरूकता फैलाए और निवेशकों को बॉन्ड बाजार के संभावित जोखिम से अवगत कराए। मौजूदा हालात में कर व्यवहार नहीं बल्कि आरबीआई की नीतियां ही खुदरा निवेशकों को सरकारी बॉन्ड में निवेश से रोकेंगी। आरबीआई ने नीतिगत ब्याज दर को मुद्रास्फीति की दर से नीचे रखा है। इसका असर बाजार की ब्याज दरों पर भी पड़ा है। यह सही है कि आरबीआई ने ऐसा आर्थिक वृद्धि की मदद के लिए किया है लेकिन इससे डेट निवेश अनाकर्षक हो गया है। आरबीआई ने नीति को सामान्य करने की प्रक्रिया शुरू की है लेकिन इसमें कुछ समय लगेगा और उसके बाद ही नीतिगत दरें वास्तव में सकारात्मक हो सकेंगी। इसके अलावा खुदरा निवेशकों के पास उच्च प्रतिफल वाली अल्प बचत योजना में निवेश का विकल्प भी है। आरबीआई ने सरकारी बॉन्ड में निवेश को सहज बनाकर अच्छा किया लेकिन निवेशकों को उसे अपनाने के लिए प्रेरित करने की जरूरत नहीं है।
