हाड़ तोड़ मेहनत से निजात दिलाना ही कृषि मशीनीकरण का मुख्य उद्देश्य नहीं है, अलबत्ता यह बेहद जरूरी और वांछित परिणामों में से निश्चित तौर पर एक है। खेती-बाड़ी के कामकाज में दक्षता और गुणवत्ता सुधारने, लागत घटाने और कृषि की उत्पादकता और लाभप्रदता बढ़ाने के लिए मशीनों का उपयोग अनिवार्य लगता है।
कई राज्यों में कृषि मजदूरों की बढ़ती किल्लत और मजदूरी की दरों में लगातार वृद्धि के कारण भी मशीनों से खेती के काम को बढ़ावा मिल रहा है। हालांकि भारत में कृषि मशीनीकरण का मौजूदा स्तर आधिकारिक तौर पर 47 प्रतिशत है और यह दूसरे देशों की तुलना में कम है। जैसे चीन में यह 60 फीसदी है तो ब्राजील में 75 प्रतिशत है।
कृषि के लिहाज से अग्रणी देशों में जहां जमीन की जोत बड़ी है और खेती से जुड़ी आबादी का अनुपात तुलनात्मक रूप से बहुत ही कम है, वहां 95 प्रतिशत कृषि कार्य यांत्रिक रूप से किए जाते हैं। भारत में इस स्तर का मशीनीकरण न तो जरूरी है और न ही वांछनीय है। लेकिन कृषि मशीनीकरण का मौजूदा दायरा निर्विवाद रूप से बहुत अच्छा नहीं है और इसे बढ़ाए जाने की जरूरत है।
असल में खेती में इंजीनियरिंग औfarmerर टेक्नालॉजी का इस्तेमाल किसी भी आकार के खेत में हो सकता है। यह न केवल बड़े बल्कि छोटे खेतों के लिए भी कारगर हो सकता है। इस तथ्य पर कृषि पर संसद की स्थायी समिति ने भी जोर दिया है। पिछली जुलाई में पेश अपनी रिपोर्ट में समिति ने छोटी, सीमांत और छितरी हुई कृषि जोतों, जो भारत में बहुत बड़ी संख्या में है, के लिए न केवल मशीनों के ज्यादा इस्तेमाल का समर्थन किया बल्कि यह सलाह भी दी कि इन खेतों में छोटे छोटे रोबोट और आर्टिफिशल इंटेलिजेंस (एआई) का उपयोग किया जाए।
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भारत में करीब 86 फीसदी कृषि जोत आकार में 2 हेक्टेयर से भी कम है और यह छोटी और सीमांत कृषि जोतों की श्रेणी में आती है। समिति ने सिफारिश की है कि खासतौर पर छोटे खेतों में इस्तेमाल के लिए एआई, रोबोट और यांत्रिक उपकरणों का विकास करने और बढ़ावा देने के लिए ठोस प्रयासों की जरूरत है।
इस रिपोर्ट के हिसाब से देखें तो कृषि मशीनीकरण के फायदे ज्यादा और व्यापक हैं। जहां इससे श्रम की जरूरत में 20 से 30 प्रतिशत की कमी आ सकती है वहीं मशीनों से बोआई करने से बीजों का इस्तेमाल 15 से 20 प्रतिशत तक घट सकता है और अंकुरण को 7 से 25 फ़ीसदी तक बढ़ावा मिल सकता है। इसी तरह उचित औजारों के उपयोग से खरपतवार हटाने की लागत में 20 से 40 प्रतिशत की कमी आ सकती है।
इतना ही नहीं, मशीनीकरण से फसलों की संख्या 5 से 20 प्रतिशत तक बढ़ सकती है जिससे कुल फसल उपज में 13 से 23 फीसदी का इजाफा हो सकता है। लिहाजा इस समिति ने सरकार से कहा है कि वह कृषि यंत्रीकरण का 75 प्रतिशत का उद्देश्य हासिल करने के लिए काम करे जिससे कि यह लक्ष्य निर्धारित 25 वर्ष से पहले ही हासिल किया जा सके।
रोजमर्रा के खेती के काम मशीनों से कराने का किसानों का फैसला कृषि मजदूरों की लागत और उनकी उपलब्धता के अलावा दूसरी कई बातों पर निर्भर करता है। इनमें सबसे प्रमुख हैं, किसान की आर्थिक हैसियत, फसलों का पैटर्न, सिंचाई के लिए पानी की उपलब्धता और कृषि पारिस्थितिकी के हालात। सबसे महत्त्वपूर्ण है कृषि उपकरण खरीदने या किराये पर लेने के लिए ऋण या सब्सिडी तक किसान की पहुंच। इससे यह स्पष्ट होता है कि पंजाब, हरियाणा, पश्चिमी उत्तर प्रदेश और कुछ दक्षिणी राज्यों में कृषि का मशीनीकरण क्यों बहुत ज्यादा है लेकिन पूर्वोत्तर क्षेत्र में यह लगभग नगण्य है।
भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) के एक आकलन के अनुसार अनाज, दलहन, तिलहन, मिलेट और कपास तथा गन्ने जैसी वाणिज्यिक फसलों के लिए बीजों से पौध तैयार करने में सबसे ज्यादा यांत्रिक गतिविधियां शामिल हैं। इन सब मामलों में मशीनीकरण का औसत स्तर 70 फीसदी से अधिक है।
गेहूं की बोआई 65 फीसदी तक यांत्रिक तरीके से होती है जबकि करीब 80 प्रतिशत क्षेत्र में धान के पौधरोपण का कार्य अभी भी मानव द्वारा किया जाता है। हालांकि फसल कटाई की गतिविधियों में मशीनों का इस्तेमाल-लगभग 65 फीसदी-गेहूं और चावल के लिए करीब-करीब बराबर सा है। कपास की तुड़ाई आमतौर पर मानवजनित ही है।
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इसके अलावा यह भी सच्चाई है कि अपने पास कृषि मशीनरी होना कई किसान परिवारों के लिए प्रतिष्ठा का प्रतीक बन गया है। यह स्थिति कृषि के लिहाज से कई प्रगतिशील क्षेत्रों के किसानों की है। इसका नतीजा यह हुआ है कि किसान अपनी कृषि जोत की तुलना में बड़े आकार और क्षमता के ट्रैक्टर और अन्य मशीनरी खरीद रहे हैं। इस कारण उधार ली गई राशि का बड़ा हिस्सा अनावश्यक रूप से उन कृषि उपकरणों में फंस गया है जिनका इस्तेमाल साल में सीमित अवधि के लिए होता है।
इस तरह का निरर्थक निवेश कस्टम हायरिंग सेंटर और कृषि मशीनरी बैंक जैसे सुविधा केंद्रों के जरिये कृषि मशीनों तक किसानों की पहुंच में सुधार करके टाला जा सकता है। ऐसे केंद्र जरूरत पड़ने पर इस तरह के उपकरण उनको उधार दे सकते हैं। इसमें कोई संदेह नहीं कि इस तरह के केंद्रों की स्थापना सरकार प्रायोजित कृषि मशीनीकरण के उप मिशन के महत्त्वपूर्ण उद्देश्यों में से एक है।
लेकिन जैसा कि संसदीय समिति की रिपोर्ट में कहा गया है, इस दिशा में प्रगति उतनी नहीं है जितनी होनी चाहिए। केवल 38,000 कस्टम हायरिंग सेंटर और करीब 17,700 कृषि मशीनरी बैंक अभी तक देश में बन सके हैं। यह बहुत ज्यादा नाकाफी हैं।
इसके साथ ही छोटी और साधारण मशीनों के डिजाइन को भी प्रोत्साहित करने की जरूरत है जिनको लघु और मझोले उद्योग छोटी जोत के इस्तेमाल के लिए बना सकते हैं। इससे देश में कृषि मशीनीकरण की रफ्तार को तेजी देने में मदद मिलेगी।