ऐसा प्रतीत होता है कि एक त्रासदी घटित हो रही है। कोविड संक्रमण में लगातार इजाफा और टीकों की कमी हो रही है। सरकारों ने जगह-जगह स्थानीय स्तर पर लॉकडाउन लगाना शुरू कर दिया है और बड़े पैमाने पर लॉकडाउन की चर्चा सुनाई दे रही है। श्रमिकों का एक हिस्सा दोबारा अपनी आजीविका को लेकर चिंतित हो उठा है। हालांकि टीके भी बन चुके हैं लेकिन एक वर्ष पहले की तरह असंगठित क्षेत्र के श्रमिक ही रोजगार को लेकर सर्वाधिक संवेदनशील हैं। यदि कोई अंतर है भी तो वह यह कि वायरस को लेकर लोगों के मन में डर कम हो गया है और लोग पहले की तरह सावधानी नहीं बरत रहे हैं। लेकिन इस बीच आजीविका गंवाने का डर पहले की तरह बना हुआ है। यदि अचानक लॉकडाउन लगाने का साल भर पहले का निर्णय गलत था तो इन दिनों टीकों की कमी, वंचितों और श्रमिकों के लिए सुरक्षा ढांचे का न होना दिक्कत की बात है।
लॉकडाउन को लेकर अनिश्चितता का सबसे पहला शिकार होते हैं असंगठित क्षेत्र में काम कर रहे प्रवासी श्रमिक, दिहाड़ी मजदूर और छोटे-मोटे कारोबारी। इनकी तादाद 12 करोड़ से अधिक हो सकती है और ये कुल रोजगारशुदा आबादी का 30 प्रतिशत हो सकते हैं। इस बार यह नहीं माना जा सकता है कि आजीविका गंवाने को लेकर जोखिम सबके लिए समान है। अप्रैल 2021 के शुरुआती दो सप्ताह के आंकड़े बताते हैं कि बेरोजगारी की दर 8 फीसदी से अधिक तेजी से बढ़ी है और श्रम भागीदारी दर घटकर 40 फीसदी रह गई है।
मार्च 2021 में करीब 39.8 करोड़ लोग रोजगारशुदा थे जो 2019-20 के 40.35 करोड़ से 54 लाख कम हैं। यह आंकड़ा भ्रामक है। इसमें काफी नुकसान छिपाया गया है। नुकसान की शहरी और ग्रामीण की समझ बताती है कि अभी सबसे बुरी स्थिति आनी शेष है। हम मार्च 2021 के रोजगार की तुलना 2019-20 से करके वायरस के हमले के एक साल बाद रोजगार पर कोविड-19 के असर का आकलन करने की कोशिश कर रहे हैं।
लोगों के रोजगार गए और 2020-21 में रोजगार पाना मुश्किल हो गया। जिन श्रमिकों ने रोजगार गंवाया था वे एक पेशे से दूसरे में चले गए। बहुत बड़ी तादाद में लोग खेती के काम में लग गए क्योंकि अन्य तमाम पेशों में उनको नाकामी हाथ लगी। यही कारण है कि मार्च 2021 में खेती में 2019-20 की तुलना में 90 लाख ज्यादा लोग जुड़े हुए थे। 2020-21 की लगभग हर तिमाही में कृषि उत्पादन में 2 से 3 फीसदी की बढ़ोतरी की बात कही गई। श्रम में 8 फीसदी वृद्घि के साथ श्रम उत्पादकता में तीव्र गिरावट आई। हमारा मानना है कि श्रमिकों के इतनी बड़ी तादाद में कृषि कार्यों से जुडऩा प्रछन्न बेरोजगारी है। इससे यह बात छिप जाती है कि मार्च 2021 में रोजगार की चुनौती 54 लाख रोजगार गंवाए जाने से कहीं अधिक बड़ी है।
2020-21 में रोजगार की सबसे अधिक हानि वेतनभोगी वर्ग को हुई। मार्च 2021 तक 7.62 करोड़ वेतनभोगी कर्मचारी थे। यह 2019-20 के 8.59 करोड़ के आंकड़े से 98 लाख कम था।
अधिकतर वेतनभोगी शहरी इलाकों में काम करते हैं। 2019-20 में वेतनभोगियों में शहरी भारत की हिस्सेदारी 58 फीसदी थी। परंतु गंवाए गए 98 लाख रोजगार में इनकी हिस्सेदारी केवल 38 फीसदी थी। ग्रामीण भारत में 60 लाख से अधिक वेतनभोगियों ने रोजगार गंवाए। इनमें से अधिकांश खेती के काम में लग गए होंगे। ग्रामीण भारत में करीब 30 लाख कारोबारी बेरोजगार हो गए। गांवों में खेती करने वालों की संख्या 90 लाख बढ़ी। यानी ग्रामीण क्षेत्रों में वेतन वाले रोजगार और कारोबार गंवाने वाले लोग कृषि कार्य में संलग्न हो गए हैं। यानी मार्च 2021 में कृषि रोजगार में बढ़ोतरी उन लोगों की बदौलत हुई जो अपने गैर कृषि कार्य गंवा चुके थे। इसे शहरों से गांवों की ओर होने वाला पलायन नहीं कहा जा सकता।
शहरी इलाकों में लॉकडाउन या लॉकडाउन की आशंका शहरों से गांवों की ओर पलायन को जरूर गति दे सकता है। महाराष्ट्र में रेलवे प्लेटफॉर्म पर भीड़ और उत्तर भारत के लिए विशेष ट्रेनों की घोषणा यह संकेत देती है कि लोगों में एक बार फिर आजीविका गंवाने का डर पैदा हो गया है। खबरों के मुताबिक महाराष्ट्र, गुजरात और दिल्ली से लोग उत्तर प्रदेश, बिहार तथा अन्य उत्तरी राज्यों की ओर जा रहे हैं।
इसका शुरुआती असर दिल्ली और मुंबई में खुदरा और रेस्तरां कारोबार पर पड़ा और अब यह आपूर्ति शृंखला के लॉजिस्टिक्स वाले हिस्से को भी प्रभावित कर रहा है। दुख की बात है कि आंशिक लॉकडाउन के साथ प्रताडऩा की खबरें भी आती हैं। डर केवल आजीविका जाने का नहीं बल्कि आजादी गंवाने का भी है।
मार्च 2021 में वेतनभोगियों द्वारा गंवाए रोजगार में अधिकांश ग्रामीण इलाके में थे लेकिन 2020-21 के स्तर की तुलना में शहरों में भी इस अवधि में 37 लाख लोगों ने रोजगार गंवाए।
लॉकडाउन अगर दोबारा लगा तो वह शहरी क्षेत्रों में रोजगार को आने वाले समय में भी प्रभावित करेगा। दोबारा लॉकडाउन की शुरुआत और वेतन वाले रोजगार में लगातर गिरावट ने लोगों को एक बार फिर चिंतित कर दिया है। वेतन वाले रोजगार में कमी से यह संकेत भी निकलता है कि नए रोजगार मिलने की संभावना क्षीण हुई है।
इस बार सरकार पहले जैसा सख्त लॉकडाउन लगाने से बचती दिख रही है। शायद उसने कुछ सबक लिए हैं। ऐसे में यह मानना उचित होगा कि ये लॉकडाउन ज्यादा नुकसानदेह नहीं होंगे। परंतु वे सुधार की प्रक्रिया को अवश्य बाधित करेंगे जो पहले से अधूरी है। मार्च 2021 में श्रम की भागीदारी 40.2 फीसदी थी जबकि 2019-20 में यह 42.7 फीसदी थी। वहीं रोजगार की दर 39.4 फीसदी से घटकर 37.6 फीसदी रह गई। वहीं बेरोजगारी दर अभी भी 6.5 फीसदी के ऊंचे स्तर पर है हालांकि 2019-29 में वह 7.6 फीसदी के साथ कहीं अधिक ऊंची थी।