पहले के समय में आम तौर पर मोटा अनाज खाया जाता था। यह अनाज पौष्टिक अनाज या स्मार्ट फूड्स के रूप में अपना रुतबा फिर से स्थापित कर रहा है। मोटा अनाज चिकित्सकीय और पौष्टिक गुणों के मामले में चावल, गेहूं और मक्के से बेहतर है। छोटे बीजों वाले इन अनाजों में मूल्यवान पौष्टिक तत्त्व होते हैं। ये पौष्टिक तत्त्व जीवनशैली से जुड़ी बीमारियों से लड़ने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इन खूबियों के अलावा मोटे अनाज की फसल को प्राप्त करना आसान होता है। इन्हें कम पानी और कम लागत की जरूरत होती है। ये फसलें कीड़ों, रोगों और जलवायु परिवर्तन के दबावों को आसानी से झेल लेती हैं।
लिहाजा ये छोटी जमीन के मालिकों के शुष्क, अर्ध-शुष्क और सूखाग्रस्त क्षेत्रों में खेती करने के लिए उपयुक्त हैं। भारत में खेती किए जाने वाले प्रमुख मोटे अनाज ज्वार, बाजरा और रागी हैं। मोटे अनाज के कुल उत्पादन में इनकी हिस्सेदारी करीब 80 फीसदी है। अन्य मोटे अनाज कंगनी, कुटकी, सनवा, छोटी कंगनी, बर्री और कोदरा हैं। हालांकि कुट्टू और चोलाई या रामदाना को आंशिक रूप से मोटा अनाज कहा जा सकता है। ऐसे कई अनाजों की पैदावार एशिया और अफ्रीका में होती है। भारत दुनिया भर में मोटे अनाज के उत्पादन और खपत को बढ़ाने के लिए दो मुख्य कारणों से नेतृत्व कर रहा है।
पहला, भारत ने संयुक्त राष्ट्र महासभा में 2021 के दौरान साल 2023 को मोटे अनाज का अंतरराष्ट्रीय साल बनाने की घोषणा करने का प्रस्ताव पेश किया था और इसे सफलतापूर्वक पारित कराया था। दूसरा, भारत कई मोटे अनाजों का घर है और यह मोटे अनाजों का सबसे बड़ा उत्पादक है। वैश्विक स्तर पर मोटे अनाज के उत्पादन में भारत की हिस्सेदारी करीब 40 फीसदी है। भारत ने कुछ मोटे अनाजों को हजारों साल पहले अपना लिया था। इनका उल्लेख प्राचीन वैदिक साहित्य में भी मिलता है। यजुर्वेद में प्रियंगव, श्याम-मक्का और अनवा का उल्लेख है।
ये छोटे अनाज स्वास्थ्य के लिए बहुत फायदेमंद होते हैं और पौष्टिकता से परिपूर्ण होते हैं। इनमें कार्यात्मक यौगिक जैसे रेशे युक्त, धीमी गति से पचने वाले कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, कैल्शियम, लोहा, जस्ता, मैग्नीशियम, बी-कॉम्प्लेक्स विटामिन और फाइटो-केमिकल्स होते हैं। यह कई प्रकार के कवकों, बैक्टीरिया और वायरल संक्रमणों से लड़ने में फायदेमंद होते हैं। इसके अलावा मोटे अनाज ग्लूटेन से मुक्त होते हैं। ये ग्लूटेन की संवेदनशीलता से पीड़ित लोगों के लिए गेहूं के विकल्प के रूप में काम करते हैं। मोटे अनाज गैर एसिड बनाने वाले, आसानी से पचने वाले और ऐंटीऑक्सीडेंट युक्त गैर एलर्जिक खाद्य पदार्थ होते हैं। ये कई स्वास्थ्य विकारों के खिलाफ रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने में मदद करते हैं। मधुमेह, हृदय रोगों और कैंसर के प्रति संवेदनशील लोगों को मोटे अनाज का सेवन करने की सिफारिश की जाती है।
हरित क्रांति और सार्वजनिक वितरण प्रणाली की शुरुआत से पहले तक मोटे अनाज आम लोगों विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों के दैनिक आहार का प्रमुख हिस्सा थे। सार्वजनिक वितरण प्रणाली में मुहैया कराए गए सब्सिडी के चावल और गेहूं ने मोटे अनाज का स्थान हासिल कर लिया। जीवनशैली और खानपान में बदलाव के कारण लोगों ने ‘प्राचीन’ समय के सेहतमंद मोटे अनाज की जगह बारीक अनाज (कम पौष्टिक) चावल और गेहूं को पसंद करना शुरू कर दिया। इसका परिणाम यह हुआ कि समग्र खाद्य टोकरी में मोटे अनाज की हिस्सेदारी घट गई। हरित क्रांति से पहले समग्र खाद्य टोकरी में मोटे अनाज की हिस्सेदारी 20 फीसदी थी। यह हरित क्रांति के बाद गिरकर बमुश्किल पांच से छह फीसदी हो गई।
मांग लगातार कम होने और सरकार की ओर से बाजार में मदद नहीं मिलने से मोटे अनाज की पैदावार निरंतर कम होती चली गई। लिहाजा मोटे अनाज का क्षेत्रफल निरंतर गिरता गया। हाल यह हो गया कि हरित क्रांति से पहले जितने क्षेत्र में मोटे अनाज की खेती होती थी, वह उसके आधे क्षेत्र में होने लगी। हालांकि रोचक तथ्य यह है कि मोटे अनाज की उत्पादकता दोगुनी से अधिक हो गई। महत्त्वपूर्ण बात यह भी है कि मोटे अनाज सहित गिनी-चुनी फसलों में ही वैश्विक औसत उत्पादन से अधिक भारत का औसत उत्पादन है। भारत में मोटे अनाज की औसत उत्पादकता 1239 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर है जो वैश्विक उत्पादकता 1229 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर से अधिक है। इसका प्रमुख कारण यह है कि मोटे अनाज की ज्यादा पैदावार देने वाली कई किस्मों और हाईब्रिड किस्मों का विकास किया गया है। इससे एग्रोनॉमिक्स की कई प्रैक्टिस बेहतर हुई हैं।
मोटे अनाज पर अनुसंधान और विकास की पहल को 2018 के बाद बहुत प्रोत्साहन मिला। वर्ष 2018 को मोटे अनाज के राष्ट्रीय वर्ष के रूप में मनाया गया। इस छोटे से समय में व्यावसायिक खेती के लिए चार बायो-फोर्टिफाइड हाईब्रिड (पोषक तत्त्व-समृद्ध जीन के साथ प्रत्यारोपित) सहित एक दर्जन से अधिक उपज-वर्धित किस्में जारी की गई हैं। इसके अलावा मोटे अनाज के 67 मूल्य वर्धित उत्पादों के वाणिज्यिक उत्पादन के लिए प्रौद्योगिकी विकसित की गई हैं और ये स्टार्टअप व किसान उत्पादक संगठनों सहित 400 से अधिक उद्यमियों को दी गई हैं। राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन के तहत मोटे अनाज का उप-अभियान भी शुरू किया जा चुका है। कुछ राज्यों में मध्याह्न भोजन योजना के तहत स्कूली बच्चों को मोटे अनाज के व्यंजन मुहैया कराए जा रहे हैं। सरकार के महत्त्वपूर्ण पोषण कार्यक्रम ‘पोषण मिशन अभियान’ के तहत समाज के कमजोर वर्गों के बच्चों और महिलाओं को मोटे अनाज के व्यंजन उपलब्ध कराए जा रहे हैं।
बहरहाल इस महत्त्वपूर्ण तथ्य को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता है कि एक समय में जो स्थान मोटे अनाज को प्राप्त था, उसे वह बढ़ावा मिलने पर भी पारंपरिक भोजन में पूरी तरह से प्राप्त नहीं कर पाएगा। एक समय मोटे अनाज की चपाती, इडली, डोसा बनाए जाते थे। हाल यह था कि आज जो पारंपरिक व्यंजन गेहूं, चावल या रागी से बनाए जा रहे हैं, वे सभी मोटे अनाज से बनाए जाते थे। हालांकि आधुनिक किस्म के स्नैक्स और प्रचलित स्वाद के अनुसार मूल्य वर्धित उत्पाद के जरिये मोटे अनाज की खपत बढ़ाई जा सकती है। लिहाजा यह जरूरी हो गया है कि मोटे अनाज पर आधारित प्रसंस्करण खाद्य इकाइयों में व्यापक स्तर पर निवेश किया जाए।