अमेरिका के राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने वैश्विक मंच से अपनी एक अहम बात फिर रखी है। संयुक्त राष्ट्र की 80वीं वर्षगांठ पर अपने संबोधन में अमेरिका के राष्ट्रपति ट्रंप ने जलवायु परिवर्तन को एक ‘बड़ा धोखा’ बताया और इससे जुड़े हुए ऐसे सभी लोगों को, जिनमें हम सभी शामिल हैं, धूर्त तक कह दिया है जो वास्तव में इस दिशा में तत्काल कार्रवाई की वकालत करते हैं।
रोष भरे अंदाज में उन्होंने अपने भाषण में यूरोप को हरित ऊर्जा अपनाने के लिए लताड़ा और कहा कि इससे लागत और बढ़ेगी जिससे वृद्धि की रफ्तार कम हो जाएगी। उन्होंने जलवायु परिवर्तन के विज्ञान को खारिज कर दिया और उन्होंने यह तक कह दिया कि कोयला स्वच्छ है। लेकिन मैं आपकी बुद्धिमता को कमतर दिखाने या यह समझाने के लिए ऐसा नहीं लिख रही हूं कि ट्रंप क्यों गलत हैं। हम जलवायु परिवर्तन की वास्तविकता को जानते हैं क्योंकि चरम स्तर की मौसमी घटनाएं हमारी दुनिया में देखी जा रही हैं जो अपने साथ आर्थिक तबाही और मानवीय त्रासदी ला रही हैं।
सवाल यह है कि जब ट्रंप ने संयुक्त राष्ट्र महासभा में बात की तब वह वास्तव में किसे संबोधित कर रहे थे? मेरा मानना है कि हमें इसी पर चर्चा करनी चाहिए। वह उस भव्य कमरे में मौजूद नेताओं से यह बात नहीं कर रहे थे और वह आप या मेरे जैसे लोगों के लिए भी यह बात नहीं कर रहे थे। वह सीधे तौर पर अमीर दुनिया और ‘अमीर बनने की कगार पर पहुंचने वाली दुनिया’ दोनों में मौजूद बड़ी संख्या में सामान्य, मध्यम और कामकाजी वर्ग के लोगों को संबोधित कर रहे थे, जो मानते हैं कि उन्हें वैश्वीकृत अर्थव्यवस्था में ठगा और वंचित किया गया है।
ट्रंप यह संदेश सुनिश्चित करना चाहेंगे कि इन सभी के मन में इस बात की मुहर लग जाए कि दरअसल यह समस्या प्रवासियों का बढ़ता हस्तक्षेप है जिनके बारे में उनका यह भी ख्याल है कि वे मूल नागरिकों की आजीविका छीन रहे हैं। उनके मुताबिक कमजोर सरकारें इसे होने दे रही हैं और कोई सजा भी नहीं दे रही हैं और फिर इसे बढ़ती जीवन लागत, घटती वास्तविक मजदूरी और हरित ऊर्जा को अपनाने की लागत से जोड़ा जाता है, जिसके बारे में ट्रंप कहते हैं कि यह पश्चिमी सभ्यता के पतन का कारण बनेगा। पवनचक्की, जो पारंपरिक प्रणालियों की तुलना में कम लागत पर स्वच्छ बिजली बनाती है, ट्रंप उस पर भी जीवन स्तर को घटाने का आरोप लगता है।
वह चाहते हैं कि यह संदेश पूरी दुनिया में फैले विशेष रूप से पश्चिमी देशों में ताकि लोग ‘सनकी वामपंथियों’ (उनके शब्द, मेरे नहीं) के खिलाफ हो जाएं। हमें संयुक्त राष्ट्र में उनके संदेश को एक राजनीतिक प्रयास के रूप में देखना चाहिए ताकि लोगों को ‘सही दिशा’ की ओर मोड़ा जा सके और उन सरकारों से दूर किया जा सके जो सामाजिक न्याय और जलवायु से जुड़े कदमों में भरोसा करती हैं। हमें यह भी स्पष्ट होना चाहिए कि पश्चिमी देशों में गहरा असंतोष है जो मुक्त-व्यापार वैश्वीकरण वाले शासन के वास्तुकार थे और जिन्होंने आर्थिक विकास का नेतृत्व किया।
ट्रंप इसमें और उबाल लाने की कोशिश कर रहे हैं ताकि इससे पश्चिम की राजनीति में बदलाव लाया जा सकें, खासतौर पर कम से कम उन जगहों पर जहां दुनिया में बदलाव की सख्त जरूरत को लेकर प्रतिबद्धता है। वह चाहते हैं कि ऐसी सरकारें विफल हों ताकि बहुपक्षवाद, वैश्विक एकजुटता और जलवायु कार्रवाई के खिलाफ खड़े पक्षों की जीत हो सके। यह एक ऐसे व्यापक पैमाने पर शासन परिवर्तन की बात है जो पहले कभी नहीं देखा गया। ऐसा वास्तव में हो भी रहा है। यूरोप की महत्त्वाकांक्षी जलवायु नीति को गतिरोध का सामना करना पड़ रहा है। यूरोपीय आयोग उत्सर्जन कटौती लक्ष्यों के अगले दौर पर समझौते करने में विफल रहा। अब इन नीतियों के प्रति विरोध बढ़ रहा है और यह कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि उन पक्षों की ओर आकर्षण बढ़ा है जो जलवायु परिवर्तन से दूर हटते हैं, ठीक उसी तरह जैसे कि ट्रंप करते हैं।
अमेरिका के राष्ट्रपति इस आंदोलन को तेज करना चाहते हैं ताकि दुनिया उनके पक्ष में हो जाए। जलवायु परिवर्तन इस राजनीतिक खेल में एक मोहरा बन गया है, जो ऊर्जा के कारोबार और अन्य चीजों में सख्त आर्थिक हितों से प्रेरित है। इसके लिए ट्रंप को जलवायु एजेंडे को ‘कट्टर वामपंथी सनकी’ लोगों के काम के रूप में दर्जा दिए जाने और उसे खारिज करने की दरकार है। इसका अर्थ यह भी है कि जो कोई भी जलवायु परिवर्तन से पैदा हुए ‘अस्तित्व के संकट’ जैसी परिस्थितियों को लेकर चिंतित है या यहां तक कि ऊर्जा तंत्र से प्रदूषण खत्म करने की जरूरत पर जोर देता है, वह इस ‘जागरूक’ ब्रिगेड का हिस्सा है। यह वास्तव में बाकी समाज को एक पक्ष में शामिल होने के लिए मजबूर करता है और ऐसा ही कुछ महामारी के दौरान हुआ था या उस वक्त भी हुआ था जब ब्रिटेन ने यूरोपीय संघ (ईयू) छोड़ने के लिए मतदान किया था। यह इस मुद्दे को और विषाक्त बनाता है और यह पूरा विमर्श कुलीन वर्ग बनाम अन्य तक केंद्रित हो जाता है। इससे भी खराब बात यह है कि यह विज्ञान और विशेषज्ञों को बदनाम करता है और इन्हें इस तरह से दर्शाया जाता है जैसे ये सामान्य लोगों की कठिन परिस्थितियों या वास्तविकताओं से पूरी तरह अनजान हों। हमें इस तरह की ब्रांडिंग से लड़ना चाहिए क्योंकि यह ट्रंप के अपमानजनक शब्दों से कहीं अधिक नुकसान करता है।
उदाहरण के तौर पर, भारत जैसे देशों में हमारे जैसे पर्यावरणविदों की इस तरह की लेबलिंग वास्तव में हमारे संदेशों और काम को कमजोर कर सकती है। जब हमें विकास-विरोधी कहा जाता है तब यह वास्तव में इस तथ्य से ध्यान हटाता है कि पर्यावरण और विकास एक ही सिक्के के दो पहलू हैं।
यही कारण है कि हमने सावधानीपूर्वक और जानबूझकर यह सुनिश्चित करने की दिशा में काम किया है कि जलवायु-परिवर्तन नीतियां हमारे देशों में विकास की रणनीतियों का हिस्सा हों। हमारे लिए,आर्थिक विकास के लिए ऐसी राह तलाशना समझदारी है जो प्रदूषण के बगैर आएं। हालांकि हम यह भी समझते हैं कि हमारी विभाजित और असमान दुनिया में इस तरह के विचार हमारे साझा घर, हमारे ग्रह पृथ्वी को नष्ट कर सकते हैं इसलिए हम दुनिया को दिए गए इस संबोधन को सिर्फ ट्रंप की एक और बयानबाजी के रूप में खारिज नहीं कर सकते हैं। यह वास्तव में जलवायु परिवर्तन के विचार की वास्तविक ‘हकीकत’ को खत्म करने की एक सावधानीपूर्वक तैयार की गई रणनीति है।
(लेखिका सेंटर फॉर साइंस ऐंड एनवायरनमेंट से जुड़ी हैं)