भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) की मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) की बैठक शुरू हो गई है। अर्थशास्त्री एवं बाजार के जानकार इस मौद्रिक नीति से जुड़ी दो महत्त्वपूर्ण बातों पर एक राय रखते हैं। पहली बात, आरबीआई इस वर्ष के लिए मुद्रास्फीति संबंधी अपने अनुमानों में कमी करेगा और दूसरी बात यह कि आर्थिक वृद्धि से जुड़े अनुमानों में कोई बदलाव नहीं होगा।
जून में हुई एमपीसी की बैठक में आरबीआई ने चालू वित्त वर्ष में उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई) आधारित मुद्रास्फीति 3.7 फीसदी रहने का अनुमान लगाया था, जो अप्रैल में व्यक्त अनुमान 4 फीसदी से कम था। जून में सीपीआई मुद्रास्फीति कम होकर 77 महीनों के निचले स्तर 2.1 फीसदी पर आ गई थी। चालू वित्त वर्ष में मुद्रास्फीति आरबीआई के अनुमान से कम रही है और यह पूरे साल में औसतन 3.4 फीसदी के आस-पास रह सकती है।
जून में हुई एमपीसी बैठक में आरबीआई ने चालू वित्त वर्ष के लिए सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की वृद्धि दर के अनुमान (6.5 फीसदी) में कोई बदलाव नहीं किया था। फरवरी में हुई बैठक में वित्त वर्ष 2026 के लिए जीडीपी वृद्धि दर 6.7 फीसदी रहने का अनुमान लगाया था मगर अप्रैल में इसे घटाकर 6.5 फीसदी कर दिया गया। यह मूडीज रेटिंग और एसऐंडपी ग्लोबल रेटिंग के अनुमान के अनुरूप ही है।
वित्त मंत्रालय ने जून के लिए जारी अपनी मासिक आर्थिक समीक्षा में वृद्धि दर को लेकर सतर्क अनुमान जताया है। मौद्रिक नीति में ढील और बैंकों के मजबूत बहीखातों के बावजूद ऋण आवंटन दर सुस्त रही है। यह चिंता की बात है। ऋण आवंटन की धीमी रफ्तार और निजी निवेश में सुस्ती देश की आर्थिक वृद्धि के लिए जोखिम माने जा रहे हैं। इस बीच, अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) ने ‘वैश्विक हालात में सुधार’ और कम मुद्रास्फीति का हवाला देकर वित्त वर्ष 2026 के लिए भारत की आर्थिक वृद्धि दर का अनुमान अप्रैल में व्यक्त 6.2 फीसदी से बढ़ाकर 6.4 फीसदी कर दिया है। आईएमएफ ने वित्त वर्ष 2027 के लिए भी वृद्धि दर का अनुमान बढ़ाकर 6.4 फीसदी कर दिया है। कैलेंडर वर्ष के आधार पर
आईएमएफ ने 2025 में भारत की आर्थिक वृद्धि दर 6.7 फीसदी और 2026 में 6.4 फीसदी रहने का अनुमान जताया है। हालांकि, भारत के लिए फिलहाल बाहरी हालात नरम नहीं माने जा सकते मगर ऐसा लग रहा है कि आरबीआई इस, सप्ताह एमपीसी की बैठक में चालू वित्त वर्ष के लिए 6.5 फीसदी आर्थिक वृद्धि दर का अनुमान बरकरार रख सकता है।
जून में एमपीसी की बैठक में रीपो दर में फरवरी से लगातार तीसरी बार कटौती की गई थी। चार महीने की इस अवधि में रीपो दर 6.5 फीसदी से कम होकर 5.5 फीसदी रह गई। हालांकि, जून में आरबीआई ने अपना रुख ‘उदार’ से बदल कर ‘तटस्थ’ कर लिया था। कुछ अर्थशास्त्रियों को लगता है कि इस बार भी एमपीसी की बैठक में रीपो दर में एक और कटौती की जाएगी जिससे यह कम होकर 5.25 फीसदी रह जाएगी। उनका कहना है कि मुद्रास्फीति नरम है और आर्थिक वृद्धि दर अब भी कमजोर है इसलिए ब्याज दरों में कटौती की गुंजाइश बनी हुई है। जून में औद्योगिक उत्पादन सूचकांक (आईआईपी) घट कर 1.5 फीसदी रह गया जो पिछले 10 महीनों में सबसे कम था।
उनका कहना है कि अगर नीतिगत दरों में कमी की गुंजाइश अब भी मौजूद है तो इसमें देरी क्यों की जाए? मगर क्या फिलहाल रीपो दर स्थिर रखने के पक्ष में दिख रहे कारण अधिक मजबूत नहीं हैं? अगर इसमें 100 आधार अंक की कमी उपभोक्ता मांग बढ़ाने में सफल नहीं रही है तो 25 आधार अंक की और कटौती से कितना फर्क पड़ेगा? क्या आरबीआई को फरवरी से जून के बीच हुई रीपो दर में कटौती का असर दिखने का इंतजार नहीं करना चाहिए? वैसे भी भारत की आर्थिक वृद्धि दर के लिए कोई बड़ा खतरा नजर नहीं आ रहा है। इसके अलावा रुपये की चाल पर भी ध्यान रखना होगा। स्थानीय स्तर पर ब्याज दर कम होने से डॉलर से जुड़ी परिसंपत्तियां निवेशकों को अपनी ओर अधिक खींचने लगती हैं। इससे डॉलर मजबूत हो जाता है और रुपया कमजोर दिखने लगता है।
आरबीआई पिछले कुछ समय से वैरिएबल रेट रिवर्स रीपो (वी-आरआरआर) नीलामियों एवं अन्य माध्यमों से वित्तीय प्रणाली में मौजूद आवश्यकता से अधिक नकदी निकालने का प्रयास कर रहा है। आरबीआई रीपो दर में कमी के लिए अक्टूबर में होने वाली मौद्रिक नीति की समीक्षा तक इंतजार कर सकता है। तब तक वैश्विक हालात को लेकर स्थिति अधिक साफ हो जाएगी और जून तिमाही के आर्थिक वृद्धि दर के आंकड़े भी उसके सामने होंगे। इनके अलावा, मॉनसून की स्थिति साफ होगी और अमेरिकी केंद्रीय बैंक फेडरल रिजर्व की नीतिगत दर निर्धारक संस्था फेडरल ओपन मार्केट कमिटी (एफओएमसी) की बैठक भी हो जाएगी।
जैसा कि पहले से अनुमान जताया जा रहा था, जुलाई के अंतिम सप्ताह में हुई एफओएमसी की बैठक में लगातार पांचवीं बार दरों को लेकर यथास्थिति (दर 4.25 से 4.50 फीसदी) कायम रही। हालांकि, इस बैठक में मतदान का अधिकार रखने वाले 11 सदस्यों में से 2 ने ब्याज दर में बदलाव नहीं करने के निर्णय का विरोध किया। नीतिगत वक्तव्य मोटे तौर पर पहले की तरह ही रहा। इसमें अनिश्चित आर्थिक हालात का जिक्र किया गया। मुद्रास्फीति ‘कमोबेश ऊंचे स्तरों’ पर रही और बेरोजगारी दर भी ‘कम’ दर्ज की गई। अमेरिकी अर्थव्यवस्था की स्थिति से जुड़े इसके आकलन में भी मोटे तौर पर कोई बड़ा बदलाव नहीं हुआ। अगर आरबीआई अक्टूबर में ब्याज दर में आखिरी चरण की कटौती करने का निर्णय लेता है तो भी इस सप्ताह एमपीसी की बैठक में फिलहाल रुख तटस्थ ही रहना चाहिए। यह सच है कि अब ब्याज दरों में बस एक और कटौती की गुंजाइश बची हो सकती है और नीतिगत दर में बड़ी कमी के आसार तो नजर नहीं आ रहे हैं।
कम आधार प्रभाव को देखते हुए सीपीआई मुद्रास्फीति वित्त वर्ष 2027 में चालू वित्त वर्ष की तरह ही नरम नहीं रह सकती है। आरबीआई गवर्नर ने मौद्रिक नीति समीक्षा के बाद संवाददाता सम्मेलन में संकेत दिए थे कि सीपीआई मुद्रास्फीति 4.5 फीसदी रह सकती है। मुद्रास्फीति बढ़ने पर वास्तविक ब्याज दर (नीतिगत दर में मुद्रास्फीति दर घटाने पर शेष दर) कम हो जाएगी। मगर इस पर अटकल लगाने का यह वक्त माकूल नहीं है। फिलहाल तो नीतिगत दर पर यथास्थिति बरकरार रहने की सूरत ही अधिक बनती दिख रही है।
(लेखक जन स्मॉल फाइनैंस बैंक में वरिष्ठ सलाहकार हैं।)