औद्योगिक और बुनियादी ढांचा विकास में प्रदूषण को एक अपरिहार्य हिस्सा स्वीकारते हुए देश का उद्योग जगत अब धीरे-धीरे लेकिन निश्चित रूप से केंद्र और राज्य सरकारों के ‘चक्रीय अर्थव्यवस्था’ के दृष्टिकोण के साथ कदम मिला रहा है।
बुधवार को लखनऊ में बिज़नेस स्टैंडर्ड समृद्धि कार्यक्रम में ‘बुनियादी ढांचा और पारिस्थितिकीय संतुलन’ पर एक चर्चा में हिस्सा लेते हुए, उत्तर प्रदेश पावर ट्रांसमिशन कॉरपोरेशन लिमिटेड (यूपीपीटीसीएल) के प्रबंध निदेशक मयूर माहेश्वरी ने कहा कि सरकार ने उद्योग के लिए एक चक्रीय अर्थव्यवस्था का रोडमैप तैयार किया है जो सरकारी और निजी, दोनों क्षेत्रों की कंपनियों के लिए है।
उन्होंने कहा कि चक्रीय अर्थव्यवस्था प्रदूषण को रोकने और पर्यावरण को बचाने के लिए बहुत ज़रूरी है और यह निजी क्षेत्र की कंपनियों के लिए अच्छा मौका भी है क्योंकि अब ‘मैदान खुला’ है। उन्होंने कहा, ‘उदाहरण के तौर पर कोयले से चलने वाले बिजली घरों में कृषि क्षेत्र के जैविक अपशिष्ट से तैयार किए गए छर्रे (पेलेट) का इस्तेमाल किया जाता है जिससे पराली जलाने की समस्या कम हो सकती है, खासतौर पर दिल्ली-एनसीआर(राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र) में।’
उन्होंने यह भी कहा कि शहरों के ठोस कचरे को भी ईंधन के तौर पर इस्तेमाल किया जा रहा है, हालांकि अभी इसकी रफ्तार थोड़ी धीमी है। बिजली बनाने वाली कंपनियां सड़कों के निर्माण के लिए राख (फ्लाई ऐश) की आपूर्ति के लिए भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (एनएचएआई) के साथ मिलकर काम कर रही हैं।
वहीं, उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (यूपीपीसीबी) के अध्यक्ष रवींद्र प्रताप सिंह ने कहा कि उद्योग और विकास जरूरी है लेकिन प्रदूषण को रोकने के तरीके भी मौजूद हैं, खासतौर पर जल प्रदूषण को। उन्होंने कहा, ‘पहले चीनी उद्योग को सबसे ज्यादा प्रदूषण फैलाने वाला माना जाता था, लेकिन अब 80-90 फीसदी चीनी से जुड़े क्षेत्र चक्रीय अर्थव्यवस्था के तरीके से जुड़ गए हैं। ज्यादातर चीनी मिलों में अपने घरेलू बिजली घर हैं।’
चक्रीय अर्थव्यवस्था एक ऐसा आर्थिक मॉडल है जिसका मकसद चीजों को दोबारा इस्तेमाल करके कचरे और प्रदूषण को खत्म करना है।
इंडो-अमेरिकन चैंबर ऑफ कॉमर्स, उत्तर प्रदेश समन्वय समिति के अध्यक्ष, मुकेश बहादुर सिंह ने याद दिलाया कि प्रयागराज महाकुंभ 2025 में 50 करोड़ से अधिक लोग आए थे लेकिन कोई बीमारी नहीं फैली क्योंकि सब इंतजाम ठीक थे। उन्होंने कहा, ‘विकास की प्रक्रिया रोकी नहीं जा सकती है लेकिन पर्यावरण को कम से कम नुकसान होना चाहिए और लक्षित कदमों के जरिये प्रदूषण कम किया जा सकता है।’ उन्होंने पर्यावरण के बारे में जागरूकता फैलाने पर भी जोर दिया, जैसे कि शुद्ध शून्य उत्सर्जन, कार्बन क्रेडिट, जलवायु वित्तपोषण, चक्रीय अर्थव्यवस्था आदि।
यूनियन बैंक ऑफ इंडिया के महाप्रबंधक राजेश कुमार ने कहा कि बैंक बुनियादी ढांचा से जुड़ी परियोजनाओं को आसानी से ऋण दे रहा है और हरित परियोजनाओं को बढ़ावा देने के लिए ब्याज में छूट भी दे रहा है। वहीं उद्यमी रजत मोहन पाठक ने कहा कि प्रदूषण विकास का नतीजा है और कंपनियों को शोधन संयंत्र लगाने में मदद करनी चाहिए ताकि पर्यावरण को कम नुकसान हो।