हाल के वर्षों में बड़ी संख्या में कामगार रोजगार के सिलसिले में कृषि क्षेत्र से जुड़े हैं। सीएमआईई के कंज्यूमर पिरामिड्स हाउसहोल्ड सर्वे में यह बात सामने आई है। वित्त वर्ष 2021-22 के दौरान कृषि क्षेत्र में अनुमानित 45 लाख रोजगार बढ़े। कोविड-19 महामारी से प्रभावित वर्ष 2020-21 में देश में रोजगार के अवसरों में 2.17 करोड़ की कमी आई थी मगर कृषि क्षेत्र में 34 लाख नए रोजगार सृजित हुए। वर्ष 2019-20 में भी कृषि क्षेत्र में रोजगार में लगे लोगों की संख्या में 31 लाख की वृद्धि हुई। पिछले तीन वर्षों के दौरान कृषि क्षेत्र में 1.1 करोड़ रोजगार सृजित हुए हैं। दूसरी तरफ शेष अर्थव्यवस्था में रोजगार में 1.5 करोड़ की कमी दर्ज हुई।
कृषि क्षेत्र में रोजगार में इस तेज बढ़ोतरी की व्याख्या प्राय: छद्म रोजगार में बढ़ोतरी के रूप में की गई है। गैर-कृषि क्षेत्रों में लोगों को जब रोजगार नहीं मिलता है तो वे अपने गांव लौट जाते हैं, जहां उनके परिवार कृषि कार्यों से जुड़े होते हैं। ये प्रवासी अपने परिवार के लोगों के साथ कृषि कार्यों में जुट जाते हैं और कृषि कार्यों से जुड़े होने का दावा करते हैं। अतिरिक्त मानव श्रम के जुडऩे से उत्पादन में बहुत वृद्धि नहीं होती है इसलिए ऐसी स्थिति को छिपी बेरोजगारी का नाम दिया गया है।
छिपी बेरोजगारी की इस व्याख्या को बदलने की आश्यकता है। पिछले तीन वर्षों के दौरान कृषि क्षेत्र का प्रदर्शन बढिय़ा रहा है, इसलिए इसमें अतिरिक्त मानव श्रम को समाहित करने की क्षमता पहले से बढ़ गई है। वर्ष 2019-20 में कृषि क्षेत्र की वृद्धि दर 5.5 प्रतिशत रही जबकि इसकी तुलना में गैर-कृषि क्षेत्रों की वृद्धि दर 3.5 प्रतिशत तक सीमित रही। वर्ष 2020-21 में कृषि क्षेत्र की वृद्धि दर 3.3 प्रतिशत रही थी जबकि इसके विपरीत शेष अर्थव्यवस्था में 6.3 प्रतिशत की कमी आ गई। वर्ष 2021-22 में अर्थव्यवस्था के दूसरे क्षेत्रों में गतिविधियों में बड़ी गिरावट आई मगर कृषि क्षेत्र की वृद्धि दर 3.3 प्रतिशत बनी रही। इससे यह निष्कर्ष निकलता है कि प्रतिकूल परिस्थितियों में भी कृषि क्षेत्र का प्रदर्शन प्रभावित नहीं हुआ और इसमें निरंतरता बनी रही। कृषि वस्तुओं की कीमतें भी ऊंचे स्तर पर बनी हुई हैं। पिछले तीन वर्षों के दौरान प्राथमिक खाद्य वस्तुओं के लिए थोक मूल्य सूचकांक (डब्ल्यूपीआई) समग्र डब्ल्यूपीआई की तुलना में 25-30 प्रतिशत अधिक रहा। अपनी फसलों की ऊंची कीमतें मिलने से किसानों को लाभ हुआ है और व्यापार की अनुकूल शर्तों का भी उन्हें फायदा मिला है। इन बातों की पृष्ठभूमि में कृषि क्षेत्र की ओर कामगारों का झुकाव तर्कसंगत लगता है।
हमें यह स्वीकार करना चाहिए कि हमने देश में कृषि क्षेत्र से जुडऩे वाले लोगों की संख्या को छिपी बेरोजगारी बता कर इसका उपहास किया है। मगर किसानों ने अन्य क्षेत्रों में काम करने वाले लोगों की तुलना में अधिक सकारात्मक सोच दिखाई और संतोष जताया है। मार्च 2022 में किसानों का उपभोक्ता धारणा सूचकांक एक वर्ष पूर्व की तुलना में 18.1 प्रतिशत अधिक था। यह संपूर्ण सूचकांक में दर्ज 15.4 प्रतिशत वृद्धि से न केवल बहुत अधिक था बल्कि कारोबारी व्यक्तियों के समूह के सूचकांक में दर्ज 16.1 प्रतिशत तेजी से भी बेहतर रहा। एक वर्ष पहले मार्च 2021 में जब कोविड-19 महामारी की दूसरी लहर के कारण सभी समूहों के लिए उपभोक्ता धारणा सूचकांक कमजोर था तो किसानों का सूचकांक भी कम हुआ था मगर यह सबसे कम प्रभावित हुआ था। मार्च 2022 में किसानों के लिए उपभोक्ता धारणा सूचकांक कुल उपभोक्ता धारणा सूचकांक की तुलना में 21 प्रतिशत अधिक था। यह कारोबार से जुड़े व्यक्तियों के सूचकांक से भी 25.5 प्रतिशत अधिक था। दूसरे सभी वृहद पेशेवर समूहों की तुलना में किसान वर्तमान और भविष्य को लेकर अधिक सकारात्मक सोच का परिचय दे रहे हैं।
मार्च 2022 में 14.9 प्रतिशत किसान परिवारों ने कहा कि उनकी आय एक वर्ष पहले की तुलना में बेहतर रही। 23.2 प्रतिशत परिवारों ने कहा कि उनकी आय की स्थिति बदतर हुई है, जबकि शेष परिवारों ने कहा कि उनकी आय एक वर्ष पूर्व की तरह है। अप्रैल 2020 में लगाए गए लॉकडाउन के बाद से यह किसानों का बेहतरीन आंकड़ा रहा है। इसके अलावा सभी बड़े पेशेवर समूहों में किसानों का यह श्रेष्ठ प्रदर्शन है। इस बात की पूरी संभावना है कि किसान आने वाली तिमाहियों में मजबूत धारणा का परिचय देते रहेंगे। भारत में 2022 में भी लगातार पांचवें वर्ष गेहूं की बंपर पैदावार होने की उम्मीद है। सरकार की तरफ से भी खरीदारी बढ़ रही है और न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) लगातार बढ़ता जा रहा है। रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध शुरू होने के बाद वैश्विक स्तर पर कीमत एक वर्ष पूर्व की तुलना में दोगुनी हो गई हैं। भारतीय मौसम विभाग ने कहा है कि 2022 में वर्षा दीर्घ अवधि के औसत की 99 प्रतिशत तक होगी। किसानों के पास खुश रहने के कई कारण मौजूद हैं। भविष्य के प्रति किसानों की मजबूत धारणा का एक महत्त्वपूर्ण संकेत यह है कि वे ऐशो-आराम की वस्तुएं खरीदने में रुचि दिखा रहे हैं। मार्च 2022 में केवल 10.5 प्रतिशत किसान परिवारों का मानना था कि एक वर्ष पहले की तुलना में उपभोक्ता वस्तु खरीदने का यह बेहतर समय है जबकि 15.5 प्रतिशत परिवारों को लगा कि वर्तमान समय उपभोक्ता वस्तुएं खरीदने के लिए उपयुक्त है। फरवरी 2022 में केवल 12.6 प्रतिशत परिवारों ने यह विचार व्यक्त किया था। ऐसे परिवारों की संख्या मई 2021 से लगातार बढ़ रही है जिन्हें लगता है कि एक वर्ष पूर्व की तुलना में वर्तमान समय उपभोक्ता वस्तुएं खरीदने के लिए अधिक उपयुक्त है। मई 2021 में केवल 2.3 प्रतिशत परिवारों को लगता था कि उन्हें उपभोक्ता वस्तुओं की खरीदारी उसी समय करनी चाहिए। यह बात मानने के पर्याप्त कारण मौजूद हैं कि उपभोक्ता वस्तुएं खरीदने की तरफ किसानों का झुकाव आने वाले समय में भी जारी रहना चाहिए। मगर अप्रैल के शुरुआती आंकड़े थोड़ी कठिनाई की ओर इशारा कर रहे हैं। 27 मार्च और 17 अप्रैल को समाप्त हुए सप्ताहों के दौरान उपभोक्ता धारणा सूचकांक में 7.6 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई। ग्रामीण क्षेत्रों के लिए सूचकांक में 10.3 प्रतिशत गिरावट आई। अगले दो सप्ताहों में हमारे सामने तस्वीर और स्पष्ट हो पाएगी।
